सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

मोदी कार्यकाल का एक साल

मोदी कार्यकाल का एक साल
विगत १६ मई को मोदी सरकार ने एक वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया।माननीय नरेंद्र भाई मोदी का सत्ता में आना ही भारत की जनता के लिये  एक आश्चर्यजनक घटना थी। कांग्रेस के दंश को दस वर्ष तक झेलने के बाद भारत की जनता ने भाजपा को पूर्ण बहुमत से मोदी को सरकार चलाने की बागडोर सौंपी। एक वो दिन था और एक आज का दिन है। दिन,महीना और साल जनता को इस सरकार के रवैये से वाकिफ होने में ज्यादा देर नहीं लगी। आज जनता को पता चल चुका है कि सरकारें वहीं रहती हैं,सोच वही रहती है,राजनीति वही रहती है सिर्फ काम करने का ढंग बदल जाता है। जनता के घर का धन सरकार देश के लिये कितना इस्तेमाल होता है यह किसी से छिपा नहीं है।कांग्रेस की हर कमी को लोकसभा चुनाव प्रचार में भाजपा ने मोदी के माध्यम से इस्तेमाल किया,गुजरात का यह राजनैतिक व्यक्तित्व बनारस से जब विजयी हुआ तो लगा कि यह राजनीति का जादूगर है।राजनीति में एक बडे परिवर्तन का समय आ चुका है।ना खाऊँगा ना खाने दूँगा की नीति ने जनता को बहुत प्रभावित किया।मुद्रा बैंक की स्थापना भी अर्थशास्त्र की दृष्टि से एक सराहनीय कदम था। काश्मीर से लेकर नेपाल तक आपदा प्रभावित स्थानों में अपने हाथ खोल कर मदद करना एक सुविचारिक पहल थी साथ ही साथ विदेश यात्राएँ भी सार्थक पहल थी। भारत के स्तर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने और पडोसी राष्ट्रों के प्रति अपनी समप्रभुता को मजबूत करने की पहल भी मोदी का प्रभावी कदम था।
इन सब के चलते मोदी के कार्यकाल में उनके कैबिनेट मंत्रियों की फिसलती जुबान ने कहीं ना कहीं सरकार को हमेशा विवादों में रखा।इस एक साल में भारतीय जनता पार्टी के पुराने जमाने के धुरंधर नेताओं की छुट्टी होने के बाद कुछ चेहरे जनता के सामने भाजपा के परचम को थामें नजर आये।जिसमें अमित शाह इनके सेनापति के रूप में जनता से रूबरू हुये।इस सरकार की कई योजनायें देखा जाये तो सिर्फ राजस्व बढाने के लिये ही प्रारंभ की गई।इनके प्रायोगिक रूप में आने पर यह सामने आया कि जनता हमेशा की तरह इस बार भी परेशान हुई।इसके अंतर्गत जन धन योजना के बीमा लाभांश के लालच में जनता ने अपना पैसा ही सरकार को खातों के माध्यम से दान कर दिया। और जिनको बीमा का पैसा मिलना भी था वो इसलिये खाली हाथ वाले बने रहे क्योंकि बैंको से पैसा निकालने की औपचारिकता ही उनकी सिरदर्द बन गई। भूमि अधिग्रहण और क्लीन इंडिया की पहल भी कुछ ऐसी ही रही।सरकार विवादों आखिरकार घिर ही गई।सरकार के द्वारा दागी मंत्रियों को कुर्सियाँ सौंपने के विवाद में भी मोदी सरकार विवादों में घिरी रही। विदेशी दौरों के बौछार करने वाले हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे रिकार्ड बना लिया।परन्तु इन यात्राओं का परिणाम लगभग शून्य ही नजर आया। यात्राओं के दौरान देश के विकास के लिये जो भी वायदे जनता के सामने आये वह सिर्फ फाइलों में सिमट कर रह गई हैं।स्मार्ट सिटी और गंगा एक्शन प्लान जैसे कुछ सपने ऐसे थे जो पूरे होने में अधिक समय लेने वाले है। एक साल पूरा होते होते डीजल पेट्रोल और रसोई गैस के दामों में बढोत्तरी भी जनता की कमर टॊडने जैसे ही रहा।
सरकार ने जितने भी वायदे चुनाव प्रचार के समय किये वो पूरे होने की बजाय अल्पकालिक रियायत के रूप में सामने आये।परमानेंट निदान और लाभ की बजाय घुमा फिरा कर जनता को हेरा फेरी के चक्कर में फंसा दिया। नमो नमो का असर सरकार के छः माह पूर्ण होने के बाद ही निचले स्तर के चुनावों में देश के कई राज्यों में करारी हार का सामना करना पडा।देश के वो मुद्दे जिसमें मोदी सरकार को तेज तर्रार फैसले लेना चाहिये था वहाँ पर वो मौन होकर विपक्षी दलों से ही हाथ मिलाकर कुर्सी हथिया ली।जिसमें महाराष्ट्र और जम्मू काश्मीर विधान सभा जीता जागता उदाहरण है। काश्मीर मुद्दे में सरकार का निष्क्रिय रवैया और चीन के सीमा विवाद को सुलझाने के बजाय चीन के रिस्ते को प्लस वन तथा हिंदी चीनी भाई भाई के नारे लगाने वाले मोदी अपने ही जाल में फंसते नजर आ रहे हैं। एफ डी आई की दरों में लगातार हुई बढोत्तरी ने यह साबित कर दिया किया मोदी भारत को विदेशियों का बाजार बनाना चाहते हैं। भारत को आर्थिक लाभ पहुँचाने बजाय भारत को वो प्लेटफार्म बनाना चाहते हैं जहाँ अन्य देश के व्यवसायी आकर पैसा कमाये।एक वर्ष में इस सरकार ने जनता का धन धनवानों को सौंप कर देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने का ढोंग किया है। पूरी जनता को पता है कि यह सरकार व्यापारियों और उद्योगपतियों को आंगे बढाने और सबको ऊँचे सपने दिखाने का कार्य कर रही है। बजट ने यह बता दिया कि अच्छे दिन मँहगे दिन में बदल चुके हैं।  मोदी वो जादूगर है जिनके पास वाक्पटुता है और शब्दों का वो माया जाल है जो देश के अलावा विदेशों को भी मोह लेता है।परन्तु हमें नहीं भूलना चाहिये कि जादूगर सिर्फ मनोरंजन करके उँचे सपने दिखाता है। यदि सरकार को आगे बढना है तो जरूरी है कि मूलभूत समस्याओं से निजात पाया जाये। वरना दूर के ढोल सुहावने भले ही हो पर कर्कसत से सरकार भी नहीं बच पायेगी।

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