सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

शौर्यांजलि का सबक जो आज भी मौजूँ है

शौर्यांजलि का सबक जो आज भी मौजूँ है
१९६५ के भारत और पाकिस्तान के बीच हुये युद्ध मे हासिल हुई जीत के ५० वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में भारतीय सेना २३ सितंबर तक शौर्यांजलि पर्व पूरे एक महीने मनायेगी। यह सिर्फ जीत का जश्न ही सिर्फ नहीं होगा बल्कि भारत के शौर्य और पराक्रम का जश्न होगा।विगत २३ सितंबर १९६५ में ही सीजफायर हुआ था। विगत दिनों तीनों सेनाओं ने इंडिया गेट में अमर जवान ज्योति पर सलामी दी और राष्ट्रपति ने इस दौरान उस युद्ध में शामिल जवानों से मुलाकात भी की और उनके परिजनों से उनके हाल चाल लिये। यह वो युद्ध था जब भारत और पाक के बीच सीधा और उस समय के आधुनिक शस्त्रों के साथ युद्ध हुआ था यह जीत और शौर्यांजलि सिर्फ मेजर रंजीत सिंह दयाल के नेतृत्व से मिली हाजीपीर की जीत मात्र नहीं थी बल्कि यह जीत इस बात का सूचक भी थी की यदि भारत की सेना को स्वंत्रतता दे दीजाये तो पूरा पाकिस्तान भी भारत के कब्जे में आ सकता है।उस वक्त हमारी सेना को १० प्रतिशत और पाकिस्तानी सेना को १७-२० प्रतिशत तक हानि हुई थी। उस वक्त के तत्कालिक प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी का ऐतिहासिक कदम कभी कभी भारत और पाकिस्तान के बीच आश्चर्यजनक स्थिति पैदा कर देता है। जो आज भी बनी हुई है।
हम इस बात को भी नहीं नकार सकते कि यह युद्ध पाकिस्तान की स्थिति खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे की तरह ही कर दिया था । इसी युद्ध का परिणाम था कि पाकिस्तान के कब्जे में आये सिंध के कई इलाके बाद में भारत को नहीं लौटाये गये।ताशकंद समझौता और १९७१ का भारत पाक युद्ध भी इसी युद्ध के बाद टकरावपूर्ण स्थिति के जनक बने। यह जश्न भारत सरकार और सेना भले ही एक महीने मनाये परन्तु यह चिंतन भी करना चाहिये कि पाकिस्तान की राजनैतिक और मनोस्थिति ५० के दशक में क्या थी और आज के दशक में क्या है। क्या पाकिस्तान ने अपने रवैये को भारत के पक्ष में एक रत्ती भर भी झुकाया है? नहीं पाक ने अपने इरादे मजबूत किये हैं उस वक्त अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-८६ सैबर विमान दिये थे जिसके दम पर वह पाकिस्तान भारत के इलाके में कब्जा किया और आज भी वो पाकिस्तान की गुपचुप तरीके से मदद कर रहा है। पहले भी अयूब खान को यह यकीन था कि यदि पाकिस्तान सेना भारत भेज दे तो जम्मू काश्मीर के लोग भारत का विद्रोह कर देगें। और आज भी एनएसए स्तर की बैठक के लिये पाकिस्तान ने दस्तावेजध्डोजियर तैयार करके हुर्रियत नेताओं को भी शामिल करने की बात करने की कोशिश कर रहा था। यह बात और है कि यह वार्ता निरस्त हो गई।
पहले विकसित देशों का दबाव भारत के तत्कालिक प्रधानमंत्री श्री शास्त्री जी के ऊपर बहुत ज्यादा था और आज भी भारत सरकार के ऊपर अन्य देशों और संगढनों का दबाव बहुत ज्यादा है। भारत की सेना का शौर्य उस वक्त इतना ज्यादा था कि वो ६ सितंबर १९६५ को लाहौर की सीमा रेखा तक पहुँच चुकी थी और यदि लौटने का आदेश ना मिलता तो हाजीपीर के बाद अगला झंडा लाहौर में ही फहराता। परन्तु सिस्टम में राजनीति उस वक्त भी हाबी हुई और आज भी हाबी हैं । राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर वार्ता शुरू करने का फैसला भारत ने ही इस बार फिर से पाकिस्तान के लिये लिया था।यह बहुत आश्चर्य का विषय लगा क्योंकि पिछले वर्ष अगस्त में विदेश सचिव स्तर की वार्ता के ठीक पहले पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने राय मशविरे के लिये काश्मीरी अलगाववादियों को आमंत्रित किया था तो भारत ने इस बात पर उचित कदम उठाते हुये वार्ता ही रद्द कर दिया था। उस वक्त पूरे देश ने मोदी सरकार के इस निर्णय का समर्थन किया था। परन्तु जब रूस के एक शहर उफा में मोदी जी की मुलाकात पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ हुई तो पुनः वही मान मनौअल का खेल शुरू हो गया।हमें खुद सोचना चाहिये कि चाहे वो सन ६५ हो या ७१ या फिर कारगिल युद्ध हो, हर जगह ही पाकिस्तान ने अपने मंसूबे स्पष्ट कर चुका है। इधर पिछले कई महीनों से पाकिस्तान के द्वारा लगातार काश्मीर के अलग अलग क्षेत्रों में कई किलोमीटर तक घुसपैठ जारी है। इधर हाफिज सईद और जकी उर रहमान लखवी के उदाहरणों को हम नकार नहीं सकते और यह मानने से इंकार नहीं कर सकते हैं कि पाकिस्तान ही आतंकवाद का फिरकापरस्त बना बैठा है और हमारे सामने खजूर की भाँति ऐंठा हुआ है। दाउद इब्राहिम की पत्नी के पाकिस्तान में उपस्थित होने के संकेत मिल रहे हैं। गुरुदासपुर के आतंकी हमले में पाकिस्तान का बडा हाथ होना और ऊधमपुर में पकडे गये आतंकवादी नवेद का आत्मविश्वास जो लाई डिटेक्टर टेस्ट में निकल कर सामने आये वो आंख मूद कर निगले नहीं जा सकते हैं।अभी जुमा की नमाज में काश्मीर में दोबारा आईएसआईएस और आतंकवादी संगठनों के झंडे लहराये जा रहे हैं और हमारी सरकार उसे नजरंदाज कर रही है।
सबक सीखने की बारी इस बार भारत की सेना और सरकार की है इस बात को हमें अपने दिमाग में गांठ बांध लेना चाहिये। इस सीख के मायने आज भी मौजूँ हैं।हमे अपने सुरक्षा मंत्रालय को आदेश दे देना चाहिये कि पाकिस्तान सिर्फ जम्मू काश्मीर को अपना बनाने का जुनून अपने सिर में भरे हर बार वार्ता के बहाने भारत को छलता रहा है। इसबार भी वह हमें छलने वाला ही थी। पाकिस्तान के सिरफिरेपन का सामना ६५ में जिस प्रकार हमें करना पडा था उसी तरह कभी भी इस बार भी जल्द करना पडेगा। अब हमें पह्ले की तरह भूल नहीं करनी है। हमें भी अपने जुनून उसी पल के लिये जवाब हेतु बचाकर रखना होगा। ताकि इस बार लाहौर और इस्लामाबाद भारत के नक्शे में आ जायें। यही सीख भारत को इस युद्ध की शौर्यांजलि से लेना चाहिये।
अनिल अयान सतना



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