सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

श्रम सुधारो में विलुप्त होता श्रमिक



श्रम सुधारो में विलुप्त होता श्रमिक

श्रमेव जयते का प्रारम्भ  हमारे प्रधान मंत्री जी की नवीनतम योजनाओं में से एक है.इस  योजना का उद्देश्य श्रमिको को अपने जीवन स्तर सुधारने के लिए सरकार के योगदान  को बढ़ाना है.वास्तविकता में आज के समाज में श्रम और श्रमिक की परिभाषा परिवर्तित हो गयी है. श्रम का रूप भी बदला है.

 गौरतलब है कि श्रम सुधार हमेशा से विवादित मुद्दा रहा है। इस पर तब तक कोई मतैक्य नहीं हो सकता, जब तक सरकार कोई ऐसा एजेंडा सामने ना रख दे, जो निवेशकों और श्रमिकों दोनों को अपने हित में लगे। प्रधानमंत्री ने जो कहा, उसका संकेत है कि वह इस अंतर्विरोध से परिचित हैं। उनके द्वारा पेश नजरिए में दो मुख्य बिंदु तलाशे जा सकते हैं। पहला यह कि कारोबार की स्थितियां आसान बनाना आज भारत की सबसे बड़ी जरूरत है। यह मेक इन इंडिया अभियान की सफलता के लिए अनिवार्य है। दूसरा यह कि श्रम सुधारों को श्रमिक वर्ग के नजरिए से देखा जाना चाहिए।


भारत में हम ढाबों, रेस्तरां, बाजारों व होटलों में अक्सर बच्चों को काम करते देखते हैं। ये दृश्य हम में से बहुतों की अंतरात्मा को कचोटते हैं, परंतु कुछ ही समय में हम सब कुछ भूलकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं। बल्कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में हम सब कहीं न कहीं इन बाल श्रमिकों की सेवाएं ले रहे होते हैं।
विश्व श्रम संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 5 से 10 करोड तक घरेलू कामगार हैं, जिनमें से बाल श्रमिकों की संख्या 30 फीसदी तक है। ये बच्चे अक्सर बहुत कम वेतन पर काम करते हैं। इनमें से बहुत से बच्चों से जबरन क्षमता से अधिक काम कराया जाता है। कई बच्चे शारीरिक व यौन शोषण का शिकार होते हैं। भारत में आजादी के बाद बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत से सांविधानिक प्रावधान किए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 है।

पं्रधानमंत्री ने इंस्पेक्टर राज को खत्म करने, भविष्य निधि संबंधी प्रक्रियाओं को सरल बनाने और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए तकनीकी समाधानों का एलान किया है। मगर अभी ये साफ नहीं है कि फैक्टरी इंस्पेक्टर जो निरीक्षण करते हैं, उनके बारे में कंपनियों के स्व-प्रमाणन की विश्वसनीयता को कैसे सुनिश्चित किया जाएगा? औचक निरीक्षण के लिए कंप्यूटर से कारखानों की चयन प्रणाली पर्याप्त होगी, इस बारे में आशंकाओं के निवारण की जरूरत पायेगी। यूनिवर्सल अकाउंट नंबर से बेशक भविष्य निधि का संचालन कर्मचारियों के अनुकूल हो जाएगा। प्रशिक्षण (एपरेंटिसशिप) को प्रोत्साहित करने के बारे में घोषणा भी महत्वपूर्ण है, जिसके मुताबिक प्रशिक्षुओं को दिए गए भत्तों पर खर्च हुई रकम का आधा हिस्सा सरकार कंपनियों को लौटा देगी। इससे कारखाने अधिक से अधिक कर्मियों को व्यावहारिक प्रशिक्षण देने के लिए प्रोत्साहित होंगे, जिससे उन कर्मियों को बेहतर रोजगार मिलने की संभावना बनेगी।हर वक्त की आवश्यकता रही श्रम की आवश्यकता को समझे परखे और उसे नियोजित करे. हम आई आई टी की तरफ भागते है पर हम आई टी आई को भूल जाते है.यहाँ पर यह कैसी विषंगति है.

मोदी के चुनावी नारों में अधिकतम प्रशासन, लघुतम शासन भी शामिल था। यदि वे गैरउत्पादक विभागों को समाप्त कर सकें, अतिरिक्त स्टाफ की सेवाएं ग्रामीण विकास में ले पाएं, गरीबों से ज्यादा अमीरों को फायदा पहुंचाने वाली सबसिडियों में कटौती कर सकें और सामाजिक विकास के ऐसे कार्यक्रमों को समाप्त कर सकें, जो बजट का एक बड़ा हिस्सा निगल लेते हैं और इसके बावजूद जरूरतमंदों की मदद नहीं कर पाते, तो यह एक अच्छी शुरुआत होगी।बहरहाल, मजदूरों के नजरिए से एक बड़ा मुद्दा कारखानों में न्यूनतम मजदूरी, निर्धारित कार्य-स्थितियों और सामूहिक सौदेबाजी के प्रावधानों पर कारगर अमल कराने का भी है। सरकार इसके लिए क्या व्यवस्था करती है, यह देखने की बात होगी। श्श्रमेव जयतेष् के प्रधानमंत्री के नए नारे को साकार करने के लिए यह करना आवश्यक होगा।अन्यथा नारो का उपयोग कहा कहा होता है हम सब इससे वाकिफ है.

अनिल अयान

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