सोमवार, 4 जुलाई 2016

धर्मनिरपेक्षता बनाम कामन सिविल कोड



धर्मनिरपेक्षता बनाम कामन सिविल कोड
      हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर काफी व्यूह रचे गये हैं.इनका उपयोग समय समय पर राजनीति में किया जाता रहा है.यह वो शब्द है जो संविधान में भारत के अंदर रहने वाले हर धर्म के लोगों को अपने धार्मिक क्रियाकलापों को करने की आजादी देता है. भारत इसी की वजह से हर धर्म के लिये सुरक्षित स्थान बना हुआ है.भारत में हर धर्म के लोग रह रहे हैं.किंतु केंद्र सरकार ने गाहे बगाहे कई दशकों के बाद कामन सिविल कोड की अनुशंसा करके धर्मनिरपेक्षता को कटघरे में खडा कर दिया है,सन अठारह सौ चालीस और दोबारा सन उन्नीस सौ पचासी में कामन सिविल कोड को देश में लागू करने की पहल उठी थी परन्तु उस समय गोवा को छोड कर पूरे देश में इसको लेकर काफी हंगामा हुआ और परिणाम हम सबके सामने हैं. पुराने समय में अंग्रेजों ने जोखिम नहीं उठा सके कि वो इस कानून को लागू करने की सोच रहे थे.एक देश एक कानून देखने में और सुनने में इतना अच्छा लगता है परन्तु वास्तविकता  यह है कि इसको लागू करने में सरकार को लोहे के चने चबाने पडेगें. सरकार ने भले ही कानून मंत्रालय को इस पर अपनी अनुशंसा सौंपने को कहा है.सभी पर्शनल ला बोर्डस को एक राय बनाने के लिये कहा है. किंतु क्या ये सब संगढन आसानी से मान जायेगें.क्या इन नियमों के मानने वाले संबंधित धर्म के अनुयाईयों को समझाया जा सकेगा. यह जरूर सोचने का विषय है.
      कामन सिविल कोड से देश के हर नागरिक को एक ही कानून को मानने के लिये बाध्य होना पडेगा चाहे वह किसी भी धर्म का हो.संबंधित व्यक्ति, समुदाय, या फिर परिवार को शादी, तलाक, जमीन जायजाद का बंटवारा, शिक्षा आदि के लिये यूनीवर्शल कानून के आधार पर कार्य करना पडेगा.सभी धर्मों को अपने पर्शनल कानून को छोडने की बाध्यता होगी और अपने धार्मिक उल्लेखों से परे जीवन जीने के लिये बाध्य होना पडेगा.इसका प्रभाव कहीं ना कहीं भारत की धार्मिक एकता पड पडेगा,साथ ही धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले भारत पर अपनी संप्रभुता को बचाये रखने के लिये खतरा उत्पन्न हो जायेगा.समान नागरिक संहिता का सीधा उदाहरण गोआ में देखने को मिल सकता है जहां पर  हर धर्म की शादियों में पति पत्नियों को समान अधिकार प्राप्त हैं,जमीन जायजाद में भी बेटे बॆटी को समान अधिकार मिलता है, वहां पर तलाक लेने के लिये किसी धर्म की पुस्तक की बजाय कानूनन धाराओं को आधार माना जाता है, भारत के अलावा अधिक्तर विकसित और विकासशील देश समान नागरिक संहिता को लागू किये हुये हैं जिनमें फ्रांस, यूके,यूएसए,अस्ट्रेलिया,जर्मनी,और कुछ मुस्लिम देश किंतु हमें यह भी मानना होगा कि इन देशों में हमारे देश की तरह नागरिकों के धर्म में विभिन्नतायें नहीं हैं.सन उन्नीस सौ पचास के बाद से यह मुद्दा समय समय पर गर्माता रहा है किंतु किसी पार्टी ने अपने राजनैतिक लाभ हानि और वोटों के धुर्वीकरण के डर से इस पर बहस करना और इस मामके को तूल देना सही नहीं समझा,अब भाजपा यदि इसको खंगालने का जिम्मा उठा रही है तो उसकी सरकार के लिये इसे लागू करना चुनौती का विषय जरूर बन जायेगा. उसे कहीं ना कहीं मुस्लिम समुदाय के वोटों के ध्रुवीकरण के रिस्क को भी  उत्तर प्रदेश मे झेलना होगा. क्योंकि हमारे देश ने जब हर धर्म को धार्मिक स्वतंत्रता विरासत में देरखी हैं.अगर छीना जायेगा तो निश्चित है कि धार्मिक विद्रोह का सामना सरकार को करना ही पडेगा.
      भाजपा के चुनावी एजेंडे में समान नागरिक संहिता को लागू करना शामिल था,किंतु सवाल यह उठता है कि जब पूरे देश के पांच राज्यों में आगामी चुनाव आचुके हैं तब ही यह मुद्दा क्यों प्रकाश में लाया गया.राजनीति मे इस तरह से शामिल होने वाले मुद्दे चुनाव के लिये तुडुप का इक्का शाबित होते हैं. बहरहाल बात यह है कि यह संहिता देश के कानून को एक लीक में लाने का काम करेगी परन्तु इसके लागू होने में इतनी मुश्किले अन्य धर्म के लोग खडा करेंगें कि सरकार के वोट बैंक के धार्मिक आयात निर्यात का अनुपात डगमगा जायेगा.यदि धार्मिक अडंगा न हो तो यह कहीं ना कहीं भारत को एकता के मूल मंत्र में पिरो सकता है. किंतु समस्या इस बात पर है कि यहां पर आज भी कानून को मानने वाले हिंदू, सिख,जैन,और बौद्ध धर्म के लोग मौजूद हैं. वहीं दूसरी ओर मुस्लिम,ईसाई,और पारसी धर्म के अनुयायियों के लिये उनके धर्म के पर्सनल ला बोर्ड बने हुये हैं.जिनके धार्मिक नियम कायदों के आधार पर आज भी फैसले किये जाते हैं. जो आज भी संविधान के साथ स्तरहीन मजाक हैं क्योंकि अनुच्छेद चौवालिस में समान नागरिक संहिता को लागू करना राज्य की जिम्मेवारी बताई गई है.लेकिन गोआ ही इसे लागू करने में सफलता हासिल किया.इसका लागू ना होना कहीं ना कहीं हमारे द्वारा अपने संविधान के अपमान करने के जैसे ही है,हमें समझना चाहिये कि यह कानून एक पंथ निरपेक्ष और धर्मनिरपेक्ष कानून ही है.
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७

ब्रिटेन के निर्णय से प्रभावित होगा भारत

ब्रिटेन के निर्णय से प्रभावित होगा भारत
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सन १९५० में बने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन अलग हो चुका है. पिछले दिनों हुए जनमत संग्रह से अधिक्तर मत विरोध में डाले गये जिससे कहीं ना कहीं ब्रिटेन को अलग होना पडा. हालांकि ब्रिटिश सरकार ने पहले भी यह घोषणा कर दी थी कि सन दो हजार सत्रह तक वो यूरोपीय संघ से अलग हो जायेगी.इसके पीछे सबसे बडा मुद्दा जो था वह एकल बाजार के तहत सामान प्रशासनिक प्रणाली से यूरोपीय संघ का काम करना जिसमें सिंगल करेंसी यूरो का लागू होना, फ्री ट्रेड के अंतर्गत किसी भी देश का व्यवसाय संघ के किसी भी देश में प्रारंभ करना,प्रवासियों के झमेले में ब्रिटेन के मूल निवासियों के लिये अवसरों की कमी,सालाना मेंबरशिप फीस के निन्यान्वे हजार करोड बचाव,आदि प्रमुख मुद्दे रहे,अब इस निर्णय के बाद यूनाइटेड किंगडम के तीन प्रांत अपनी आजादी के लिये जनमत संग्रह करवाने के लिये पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.जिसमें स्काटलैंड,इंग्लैंड और वेल्स प्रमुख हैं इनका यूरोपीय संघ की ओर झुकाव इनकी आजादी के लिये मूल मंत्र शाबित होगा, अर्थात ग्रेट ब्रिटेन को दोबारा आंतरिक बंटवारे के लिये मन बनाना पडेगा, ब्रिटेन को अपना भविष्य कितना उज्जवल दिखाई पडता है यह तो प्रधानमंत्री कैमरून के निर्णय से जग जाहिर हो रहा है, ब्रिटिश प्रधानमंत्री के राज्य से ही उनके विचारों के विरोध में जनमत होने से वो खासा दुखी दिखाई पडे क्योंकि वो चाहते थे कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य बना रहे,उन्होने जनमत के लिये अपने दूसरे चुनाव प्रचार के दौरान जनता से वादा किये थे और वादे के अनुरूप जनमत संग्रह में उनकी विचारधारा ही खतरे में पहुंच गई, उन्होने नैतिकता के चलते अपने पद से स्तीफा दे दिया और किसी नये नेतृत्व का आह्वान किया,जो पूरे विश्व में काफी सराहा गया,उन्होने राजनीतिक स्वार्थ के को नैतिकता से ज्यादा बडा नहीं होने दिया.
     ब्रिटेन के विलगन से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था डगमगायेगी.इसका असर भारत में भी देखने को मिला है और भविष्य में भी देखने को मिलेगा.अर्थव्यवस्था में शेयर मारकेट के हिसाब से यह घाटे का निर्णय हुआ है. आने वाले वक्त में व्यापार के नये रास्ते खुल भी सकते हैं और बंद भी हो सकते हैं.इस निर्णय से पाउंड की स्थिति डालर के मुकाबले कमजोर हो गई. डालर जितना मजबूत होगा कच्चा तेल भी उतना ही मजबूत हो जायेगा जिससे पेट्रोलियम उत्पाद मंहगे हो जायेगें. ब्रिटेन में लगभग एक हजार भारतीय कंपनिया हैं जिसके व्यवसाय पर काफी गहरा असर पडेगा.टाटा मोटर्स,एयरटेल,फार्मा कंपनियां इसका सबसे प्रभावी उदाहरण हम सबके सामने हैं.एक परिस्थिति यदि ब्रिटेन का विभाजन होता है तो भारत के लिये इंगलैंड और ब्रिटेन आमने सामने वाले देश होंगे जिनके यहां व्यवसाय करने की खातिर उनकी आपसी जग्दोजहद को भी ध्यान में रखना होगा, साथ में ब्रिटेन के अलावा भारत को अन्य देशों से भी यूरोपीय संघ के अनुसार करार करना पडेगा,अगर संघ भारत को ब्रिटेन में व्यवसाय करने से रोकता है तो भारत के ब्रिटेन के साथ रिस्ते खराब होंगे,भारत में चल रहे आई उद्योग की दस से पंद्रह प्रतिशत का लाभ जो ब्रिटेन से हो रहा था वह भी कहीं ना कहीं प्रभावित होगा,भारत के लिये सबसे बडी चुनौती रुपये को पाउंड और डालर के मुकाबले सम्मान जनक स्तर पर बनाये रखना जिसका प्रभाव पेट्रोलिम मंत्रालय में सबसे अधिक देखने को मिलेगा,
     भारत के बहुत से युवा वर्ग यूरोप में अलग अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. जिसमें यूके,ब्रिटेन इंगलैंड,स्काटलैंड आदि,इनकी नौकरियां भी खतरे में पड सकती है, ब्रिटेन में गोवा और अन्य लगभग तीस हजार दक्षिण भारतीय लोग काम कर रहे हैं जिनके लिये मुसीबतें बढेंगी,इस विलगन का असर शिक्षा में भी देखने को मिलेगा अभी तक यूरोपीय युनियन के समझौतों की वजह से ब्रिटेन के स्कूल और प्रोफेशनल कालेजों में भारत के बच्चे दाखिला लेते थे और वहां से भी स्कालरशिप में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विदेशी बच्चे अध्ययन करते थे जो अब कठिनतम हो जायेगा, खास ब्रिटेन के लिये यदि पढाई के अवसर बढेगें तो अन्य देशॊं के लिये भारत को अलग से समझौते करना पडेगा, इस प्रकार का विलगन अल्प समय के लिये नुकसानदेह होगा लेकिन लंबे समय के लिये कहीं ना कहीं फायदेमंद जरूर शाबित होगा.रही बात भारत की तो भारत को ब्रिटेन और अन्य देशॊं के साथ मित्रता के लिये अलग अलग नीतियां बनाना होगा,यदि यूरोपीय यूनियन के देश भारत के सामने यदि ब्रिटेन का साथ छोडने की बात करते हैं तो भारत की स्थिति एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाईं वाली होगी, भले ही वित्त मंत्री अरुणजेटली ने आश्वासन दिया हो कि उनकी तरफ से हर संकट से निपटने के लिये नीतियां मौजूद हैं.परन्तु यह विलगन भारत की अर्थव्यवस्था को अल्पकालिक हानि पहुंचाने के लिये काफी है.अब हमारी सरकार इसके लिये कितनी तैयार है यह आने वाला वक्त बतायेगा,
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७