मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

तलाक की राजनैतिक जग्दोजहद

तलाक की राजनैतिक जग्दोजहद.
बहुत दिनों से तीन तलाक के कहन पर काफी घमासान मचा हुआ है.देश में संप्रदाय में शामिल और गैर संप्रदाय के लोग जानबूझ कर अपनी बयान बाजी करने पर उतारू हो रहे थे.विशेष रूप से मुस्लिम संप्रदाय में प्रचलित यह प्रथा,उसका संवैधानिक अस्तित्व और स्त्री स्वतंत्रता पर काफी उद्बोधन दिये गये.महिला सशक्तीकरण के नाम पर महिला संगठनों ने और महिला नेत्रियों ने इस मुद्दे को उछालने वालों पर काफी फब्तियां कसी.मुद्दे के परे जाकर कुछ मुस्लिम बाहुल्य इलाकों को इस पर जबरन घसीटने की कोशिश भी मीडिया के द्वारा की गई.चर्चाओं का बाजार गरम रखने के लिये एक से एक विशेषज्ञ बुलाये गये.परन्तु यह परिणाम नहीं निकाला जा सका कि क्या तीन तलाक कह देन भर से मुस्लिम संप्रदाय से परिवार विघटित हुये या फिर मात्र सरियत में लिखे होने की वजह से इसका राजनैतिक फायदा उठाया गया.यह सब सोचने का विषय था कि हमारे आस पास कितने मुस्लिम परिवार इस तीन तलाक कहने बस से जीवन भर के लिये अलग हो गये.क्या हमारा समाज उन परिवारों को दोबारा जोडने के लिये कोई पहल नहीं किया.इस पर कभी कोई चर्चा नहीं की गई.ना ही इस विभेदनकारी शब्द की समाज में या समुदाय में होने वाले प्रभावों की प्रायोगिकता की जांच करना उचित समझा गया.
      वास्तविकता तो यह है कि हर धर्म और संप्रदाय में पति पत्नी के बीच के संबंधों को बनाने और विच्छेदन के लिये अपने अपने तरीके से नियम कानून बनाये गये हैं.मुस्लिम पर्शनल ला बोर्ड कहीं ना कहीं इस मामले को अपने संज्ञान में हमेशा से रखता चला आया है.जो उस संप्रदाय के लिये आला कमान और सांप्रदायिक कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिये मदद करता है,.इस्लाम में अरबी शब्द तलाक के लिये यह कहा गया कि कोई भी पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक कहकर अलग रहने के लिये कह सकता है.लेकिन इसमें यह भी कहा गया कि यह तीन बार तलाक के जरिये अलग रहने की स्थिति तीन माह अर्थात तीनमाहवारी के अंतराल में ही संभव है.जिसे कुरान में तलाक हलाला कहा गया(कुरान:६५:१)और यह कानून साउदी अरब में बहुत पहले से चला आ रहा है.कितु पहले दो बार तलाक देने के बाद यदि उनके परिवार और मौलवियों के सानिध्य में उनकी काउंसिलिंग करके पति पत्नी दो बारा भी साथ में तीन माह के अंतराल के बाद रह सकते हैं. किंतु सिया और सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय इस मामले में भिन्न मत रखते हैं.सुन्नी संप्रदाय का यह मानना है कि तीन बार तकाल कह देने बस से कोई भी पति पत्नी को एक बार में अलग नहीं कर सकता .बल्कि उसे अपने मौलवियों और अपने परिवार के बुजुर्ग लोगों से काउंसिलिंग करके साथ में रहने की इस्लाह भी पालन करना होता है.इसे ही. तीन महीनों की यह अवधि विचार करने के लिये होती है इसे ही इस्लाम में इद्दाह और इद्दत कहा जता है.शिया मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक का कोई भी प्रावधान नहीं रखा गया.उनके यहां दो गवाहों की मदद से और पारिवारिक सलाह मसविरे के जरिये मामले को सुलझाने का प्रयास किया जाता है.और अंततः जब मामला नहीं सुलझता तो उन्हीं गवाहों और मौलवियों की उपस्थिति में तलाक मान लिया जाता है.इसमें यह जरूरी नही है कि पति पत्नी का सारा जीवन यापन का खर्च वहन करे.महिलाओ के द्वारा भी तलाक के लिये मैरिज कांटेक्ट को खारिज करने का प्रावधान गाजी और गादी के सामने संज्ञान में लाने के बाद  इस संप्रदाय में रखा गया जो कई मुस्लिम देश मान रहे हैं
      मुस्लिम संप्रदाय में सिया और सुन्नी के अलग प्रावधानों के बीच तलाक के तीन स्टेप्स बताये गये.(कुरान सुरा.३/६५/३३/ (अलनिसा/अल अजब/अलतलाक आदि.) तलाक की शुरुआत,इस्लाह,और अंजाम तक पहुचाना. शिया में अल्पकालिक निकाह को अनुमति है जबकि सुन्नी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं रखा गया. तलाक के लिये महिलाओं(खुला दरार और अगादी) और पुरुषों को बराबरी के अधिकार सरियत में दिये गये. तो फिर हम यह क्यों कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय में महिला सशक्तीकरण की बात नहीं की गई.और वहां सिर्फ पुरुषवादी सोच हावी है. सवाल यह है कि हम अपने मुद्दे को इतना धर्म और संप्रदाय के ग्रंथों के तथ्यों के आधार पर देख्ते हैं.इस लिये इस तरह के मुद्दे सिर्फ धार्मिक विश्वास को राजनैतिक मिलावट के स्तर तक लाने की तरह है. संप्रदाय कोई भी हो किंतु स्त्री और पुरुष दोनों के सामाजिक और पारिवारिक अधिकारों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया है.

अनिल अयान सतना.

रविवार, 16 अक्तूबर 2016

"मोदी-पुतिन" के मजबूत रिश्तों के ब्रिक्स

 "मोदी-पुतिन" के मजबूत रिश्तों के ब्रिक्स
गोवा को जब आठवें ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी का अवसर सौंपा गया तब वह भाग्यशाली उतना नहीं हुआ होगा जितना कि ब्रिक्स सम्मेलन के इतर भारत और रूस के प्रतिनिधि अर्थात मोदी और पुतिन के रिश्तों की मजबूती के लिये रखे गये नीव के पत्थर के लिये भाग्यशाली सिद्ध हुआ. चीन की हरकतों के बाद उसका बायकाट करने के बाद रूस और फ्रांस का भारत के प्रति नजदीकी भारत की रक्षा शक्ति को सुदृढ बनाने के लिये बहुत जरूरी था. वैसे तो ब्राजील रूस भारत चीन और साउथ अफ्रीका  के संयोजन के बीच भारत और रूस के बीच की नजदीकियां अन्य देशों के लिये सबक बनी हैं.इस सम्मेलन में आतंकवाद को लडने के लिये जिसतरह भौगोलिक सीमाओं को परे रखने की बात की गई है वह भारत की पैरवी और चीन के द्वारा पाकिस्तान सहित आतंकवादी देशों के लिये सबक भी है. ब्रिक्स सम्मेलन में जहां महत्वपूर्ण रूप से  जीडीपी और अर्थव्यवस्था के विकास के लिये जोर दिया जाता है वहीं दूसरी ओर आपसी सौहार्द और भाईचारे को बनाये रखने के लिये भारत की पहल के लिये विश्व परक सम्मान की नजर देश को गौरव प्रदान करता है.साउथ अफ्रीका से शुरू हुआ सफर भारत के हाथों में जब पहुंचा तो देश की सरकार वाकयै इसका लाभ लेने के लिये लालायित नजर आई. भारत का मेजबान के रूप में शामिल होने के अलावा.देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की पहल काबिले तारीफ थी.भारत को पता था कि एशिया के अलावा देशों के साथ अपने रिश्तों की पहल को आगें मंजिल तक पहुंचाना है.इस लिये भारत को रूस का साथ और हाथ थामना पडा. हमे यह स्वीकार करना होगा कि रूस से पांच सूत्रीय करार और इसके पूर्व फ़्रांस से राफेल फाइटर प्लेन का करार देश की सुरक्षा को मजबूत करना ही है.
      ब्रिक्स सम्मेलन के बहाने भारत ने रूस को अपना निर्यातक बनाने के लिये कोई कसर नहीं छोडा. इसके पीछे हमारे प्रधानमंत्री जी की पहल रक्षा मसौदों को मजबूत बनाती है.इसके पहले हमारे देश में रक्षा के बडे बडे घोटाले हुये हैं जिन्हें हम नजरंदाज नहीं कर सकते हैं किंतु यह कोशिश भारत जैसे विकासशील देश की विकसित सोच को विश्व में प्रदर्शित करता है. एक माह में दो मसौदों को वास्तविक रूप से जमीन देना भारत की प्रगति की निशानी ही है.रूस वैसे भी भारत की सैन्य आपूर्ति वाला देश रहा है परन्तु यह भरोसा भारत की आयातक व्यवस्था को तकनीकि रूप से मजबूत करता है.राफेल प्लेन के बाद फाइव एस डिफेंस सिस्टम जो दो हजार बीस तक भारत के सुपुर्द रूस करेगा.इतना ही नहीं के ए २२६ जैसे नई तकनीकि वाले हेलीकाप्टर के निर्माण के लिये रोस्टेक एयरोनाटिक्स लिमिटेड के साथ संयुक्त निर्माण और आयात दोनो मारक छमता को बढाने और मजबूत करने के लिये महत्वपूर्ण समझौता है.एफडीआई जैसे मुद्दे भारत को स्वदेशी के खिलाफ जाने के लिये विवश करती है.मेड इन इंडिया जैसी पालिशी को निस्तोनाबूत करने वाली इस योजना के चलते भारत को पेट्रोलियम क्षेत्र में भी रूस की मदद मिलेगी.जो भारत की आंतरिक पालिसी जो परिवर्तित करने जैसा ही होगा.इस पर सरकार के विषय विशेषज्ञों को विचार करना चाहिये.सितंबर और अक्टूबर के बीच में दो मजबूत और परिणामजन्य समझौतों की जमीन तैयार हो चुकी है.अब यह देखना है कि भारत और रूस के रिश्तों को सुरखाब के पंख लगाने में मोदी और पुतिन कितने सफल सिद्ध होते हैं. विदेशी संबंधों को मजबूत करने की पहल मोदी जी की पहचान बनी हुई है परन्तु देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के तले इसमें भी कमियां निकल ही आती हैं.संसद के सांसदों और जिम्मेवार राजनैतिक पार्टियों को यह चाहिये कि इस प्रकार के मसौदों को देश हित के लिये सकारात्मक रूप से देखें और सरकार को तटस्थ होकर कामकरने के लिये स्वतंत्र करें बस सरकार की स्वतंत्रता घोटाला ना बनने पाये इस बात का अवलोकन करना भी संसद के तत्वों का प्रमुख दायित्व होगा.
      भारत में रहते हुये प्रधानमंत्री जी के द्वारा यह कहा जाना कि एक पुराना दोस्त दो नये दोस्तों से बेहतर होता है,किस वैश्विक नीति को विश्वपटल पर प्रदर्शित करती है यह विचार करने का विषय है.ब्रिक्स के बहाने कई निशाने साधने की नीति कहां तक अंजाम तक पहुंचती है यह तो भविष्य बतायेगा.परन्तु भारत जैसे उपमहाद्वीप में पाक की कमर के नीचे रूस को पुराना दोस्त बनाना. उधर अमेरिका में ट्रंप का मोदीमय होजाना. रूस और फ्रांस की भारत के प्रति नजदीकी,सार्क सम्मेलन का पाकिस्तान से कैंसिल होना,ब्रिक्स में आतंकवाद का मुद्दा आर्थव्यवस्था के मुद्दे के बराबर उठना और इस मसले में चीन के मौन को एक त्रिकोण के रूप में देख सकते हैं जिसमें भारत दुश्मन के दोस्त को भी अपने साथ रखा है और एशिया के परे युरोपीय देशों को मिलाना जिसमें फ्रांस और रूस प्रमुख हैं एक चक्र्व्यूह की तरह है आतंक वाद  के लिये.,रूस जिसने युरोपियन रिपब्लिक के मुख्य देश है उसका सहयोग देश की लडाई के लिये मजबूत और महत्वपूर्ण पक्ष होगा.भारत की आंतरिक विद्वेश्वता को छोड देंतो इस बार का ब्रिक्स सम्मेलन भारत के लिये रक्षा मसौदों का वैदिक मंत्र बनकर उभरा है.एशिया के आतंकपरस्त देशों को यह सम्मेलन कहीं ना कहीं कुरेदा जरूर.अब देखना यह है कि करार और डील के प्रभाव से आतंवादी देश और संगढन क्या फील करते हैं.और भारत इन डील्स को कहां तक अपने फायदे और सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिये उपयोग कर पाता है.
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७

      

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

समिट के करार पर नतीजा बेकार

समिट के करार पर नतीजा बेकार

सन दो हजार दस से ग्लोबल इंनवेस्टर मीट का सफर खजुराहो से प्रारंभ होकर इस साल तीसरी किस्त अदा की जारही है.अनुदान के पीले चावल इंनवेस्टरों को वितरित करवा दिया गया है.मखमली जाजम दो साल के बाद दोबारा निकाल कर बिछा दी गई है. ऐसा लग रहा है कि मध्यप्रदेश राज्य के व्यापारिक नगरी इंदौर की तस्वीर बदलने वाली है और अन्य शहर भी उद्योगों की आवक की रेवडी खाकर ही रहेंगें.सन दस, बारह और चौदह के बाद इन्वेस्टरोम की आवक फिर से इंदौर की चकाचौध बढायेगी.हमारे मुख्यमंत्री जी नये दिवास्वप्न देख रहें है.विदेशों में अध्ययन करने गये ब्यूरोक्रेट्स वापिस लौट चुके हैं.मध्यप्रदेश को देश की अर्थव्यवस्था का स्वर्ग बनाने के लिये कोई कसर नई छोडी जा रही है.परन्तु क्या इस बार भी पिछली बैठकों की भांति निर्णय सिफर होगा,इंनवेस्टर्स के हाथ में अच्छे खासे कार्यक्रम और मीट के बाद सिर्फ कपिल शर्मा के वचनों के अनुरूप बाबा जी का ठुल्लू ही हाथ लगेगा.पिछली मीटिंग्स का परिणाम देखें तो हवाई सपने देखने वाले इन्वेस्टर्स नंगे हाथों को निहारते रह गये, और जमीनी तौर पर प्रतिशत के नाम पर शून्य इतरा रहा था.शासन भले ही कोई भी आंकडे दिखाये परन्तु हकीकत कुछ और ही रही.हम उम्मीदें लगाये रहे और राजनीति और ज्यादा परिपक्व होती चली गई.सहारा से लेकर टाटा तक मध्य प्रदेश को टाटा बाय बाय करके चलते बने और हमारी सरकार कुछ भी ना कर सकी.खजुराहो से शुरू हुआ यह सफर बीच के ब्रेकर्स में ऐसा उलझा कि अपनी स्पीड को पैसेंजर्स गाडी की तरह कर लिया. कभी इस आफिस कभी उस आफिस.कभी इस विभाग कभी उस विभाग,कभी इस मंत्रीऔर कभी उस मंत्री के यहां से लेट लतीफी का ऐसा ब्रेकर्स लगा कि इन्वेस्टर्स का घोडा रास्ता ही भूल गया.
            आंकडों के अनुसार पिछले तीन मीटिंग्स में तीन सौ निन्न्यानवे परियोजनाओं में से लगभग ढाई सौ परियोजनाये हकीकत में काम नहीं शुरू कर सकी.वजह समय से शासन की तरफ से जमीनी कार्यवाही ना करने की वजह से उनकी लागत में बढोत्तरी हो जाना जो मध्यप्रदेश में शुरु करने का मतलब उनका घाटा ही था. दो हजार बारह में सहारा का एमओयू,फ्यूचर ग्रुप का फूड पार्क निर्मित करने के सपने,महिंद्रा का आटोमोबाइल्स प्लांट जो भोपाल में निर्मित करना,इजराइल की दवा कंपनी टेवा का मेडिकल प्लांट जो पीथमपुर में बनना तय हुआ.जी ग्रुप के एस्सेल ब्रांच का सर्विस कालोनीज का प्लान,सब धरा का धरा रह गया.इतना ही नहीं अंबानी,अडानी,पतंजलि,टाटा के आने वाले समय में प्लांट डालने की बात किये परन्तु इनके साथ मध्यप्रदेश के मंत्रियों और अधिकारियों ने कोई इच्छा नहीं दिखाई.इस समिट में शायद इनकी तरफ से कोई पहल की जाये.एसोशियेटेड चैबर्स कामर्स एंड इडस्ट्रीज आफ इंडिया के अनुसार मध्यप्रदेश में देरी की वजह से इन तीनों इस्वेस्टर्स मीट में  लगभग लगभग एक लाख करोड ली लागत बढी और इसकी वजह से लगभग ३०० इन्वेस्टर्स ने अपने हाथ खींच लिये और उसमें से ५० से ज्यादा फीसदी इन्वेस्टर्स अन्य राज्यों में अपना इन्वेस्टमेंट करने में कामयाबी हासिल की.जिसकी वजह से मध्यप्रदेश आर्थिक रूप से अन्य राज्यों की तुलना में पांच दर्जा नीचे खिसक गया.मध्य प्रदेश में हुये घोटाले और देरी की वजह से इन्वेस्टर्स के दिलो दिमाग में एक गहरी दुविधा पैदा कर दी है.वो चाहकर भी खुद को यह नहीं समझा पा रहे हैं कि क्या इस बार कुछ चमत्कार हो पायेगा. या पिछली बार की तरह आर्थिक बलात्कार ही उन्हें भोगना पडेगा.
            इस सब रामलीला का मंचन तो सफल होता है किंतु इसमें कभी फूड पार्क के सुनहरे सपने दिखाये जाते हैं.कभी पांच मिलियन टन का दूध उत्पादन करके हरियाणा जैसे राज्यों को पीछे करने का सफेद झूठ बोला जाता है.कभी सर्विस कालोनीज के सपने दिखाये जाते हैं कभी आटोमोबाइल्स इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में इनवेस्टमेंट के चलते एक बार में एक लाख से अधिक युवाओं को रोजगार दिलाने के रोचक और आभासी डायलाग इसी रामलीला के मंच से बोले जाते हैं.किंतु परिणाम सिफर होता है.इसके पीछे हमारे सरकारी दफ्तरों में जिस लालफीताशाही की परंपरा वाली रावणीय विचारधारा पोषित हो रही है.मंत्रियों की नजर राज्य के फायदे की बजाय खुद के फायदों पर अधिक हो जाये तो.सरकारी कामों में लेट लतीफी,एक विभाग से अन्य विभागों का सामन्जस्य ना स्थापित हो पाना,आदि प्रमुख कारण है जो लाल जाजम बिछाने के बाद भी मध्यप्रदेश के उद्योगों में इन्वेस्टर्स अपना अनुदान करने के लिये अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं.यही तो सबसे बडी कमी है जिसे हम पिछली तीन बैठकों में दूर नहीं कर पाये.शायद इस बार भी इन्ही कारणों से बहुत कुछ प्रभावित होने की संभावना इंदौर सम्मिट की अधिक है. मध्य प्रदेश को चाहिये कि यदि उसे इस क्षेत्र में आगे बढना है तो अपनी लेट लतीफी को इससे दूर ही रखना होगा.वायदे तो बहुत किये जाते हैं परन्तु तीन चार दिन की सम्मिट के बाद जब एमओयू जमीनी रूप से अपने जूते रगडना शुरू करता है वो इन्वेस्टर्स को गंवारा नहीं होता.इसलिये इस बार सरकार को ध्यान में रखना होगा कि अपने इन्वेस्टर्स को भगवान के दर्जे के अनुसार लेकर उनका स्वागत करें.उनका साथ योजनाओं के चालू होने तक बस नहीं बल्कि योजनाओं के फलीभूत होने तक प्रदान करें.
अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७



मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

आओ आपस में हमलें करें

आओ आपस में हमलें करें
कभी कोई बस से इस्लामाबाद की यात्रा करता है. कभी कोई विशेष रेल चलाता, कभी कोई मजार में जाकर कसीदे पढता है कभी कोई जन्मदिन की बधाई देने बिना देश को सूचित किये दुश्मन देश के पीएम के साथ सेल्फी सेशन कराता है.कांग्रेस इस मामले में कुछ हद तक ठीक था कि उनके संगठन यूपीए के प्रधानमंत्री जी अपने कार्यकाल में पाक की धरती में कदम तक नहीं रखे.,हमारा देश भी अजीब है कभी आतंकी हमलों के लिये वहां की जांच कमेटी बुलाने के लिये पडोसी को आमंत्रित करता है. कभी विदेश मंत्री काश्मीर को अभिन्न अंग बता कर संयुक्त राष्ट्र संघ में पडोसी को समझाइस देता है. कभी हमारे प्रधान मंत्री जी पडोसी देश को आपस में लडने की बजाय गरीबी से लडने की समझाइस देते हैं. पठानकोट ,ऊरी और दोबारा पठानकोट, कभी पंजाब कभी तटीय इलाके में संदिग्ध घटनाये और लोगों के काफिलों का आना,देश को अपने अंतर्राष्ट्रीय संकट की एक अजीब सी महक आने लगती है. एक तरफ पाकिस्तान के प्रमुख सैन्य तैयारियों का जायजा लेते हैं तो दूसरी तरफ वहां के रक्षा मंत्री दोनों देशों के बीच बिना परमाणु हथियारों के समझौते की नीति को अपनाने की पहल करते हैं.कभी बालीवुड का मुस्लिम समुदाय के अभिनेता इस मामले में अपनी टांग फंसा कर मीडिया की सुर्खियां बनते हैं. तो कभी खिलाडियों का पाक दौरा रद्द हो जाता है. कभी कूटनीतिक तरीके से दक्षेश का सम्मेलन रद्द कर दिया जाता है. कभी चीन हमें सतलुज के पानी को रोकने की कोशिश करके अपने दुश्मन होने के संकेत देता है.
      हमने सर्जिकल स्ट्राइक क्या कर दी पडोसी दुश्मन देश जो आतंक का गढ है वो युद्ध विराम के चीथडे उडाकर सेना को अपना निशाना बना लिया. पंजाब बार्डर से सटे गांवों को इस लिये खाली करा लिया गया और सेना की निगरानी में खेती की जाने लगी मानो पैसठ के युद्द की पूरी तैयारी कर ली गई हो.देश का मीडिया पुराने सेना के अधिकारियों से पुनः लाहौर फतेह करने के आंकडे और अनुभव देश में बांटने लगा.कभी कबूतर कभी गुब्बारों से पडोसी देश हमारी सेना को धमकियां भेजने का फिल्मी स्टाइल वाला काम करने के लिये ऐसे विवष हुआ कि मुझे लगा कि खिसियाती हुई बिल्ली कुछ नहीं कर पा रही है तो खंबा नोचनें के लिये उतारू हो रही है.प्रधानमंत्री के द्वारा बराक ओबामा के बाद संयुक्त राष्ट्र अमीरात के प्रिंस को गणतंत्र दिवस के मुख्य आतिथ्य के लिये आमंत्रित करके अरब को भारत में उपनिवेशीय ताकत के रूप में आमंत्रित करने की तरह ही है.अब देखना यह है कि वो मुस्लिम होकर मुस्लिम देशों के लिये ज्यादा वफादार बनते हैं या फिर भारत के साथ खडे होकर मुस्लिम देशों के तथाकथित आतंकवाद को नकेल कसने में कुछ नये कदम उठाने की कोशिश करता है.चीन का हाल उस मध्यस्थ की तरह हो चुका है जो सफेद नकाबपोश दुश्मन का है. एक तरफ भारत को लाली पाप देकर अपने मकसद को हल करने के जुगाड में हमेशा विश्व स्तर पर मित्रता का स्वेत पत्र लिखता है और दूसरी तरफ पडोसी दुश्मन देशों के जरिये पाक अधिकृत काश्मीर और उससे सटे हुये चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान के रास्ते अपनी शक्ति को भारत के विरुद्ध प्रगाढ करने की पुरजोर कोशिश कर रहे है. मेड इन जापान,कोरिया और अन्य देशों के माल का आयात तो देश को तकनीकि रूप से मजबूत करता है परन्तु मेड इन चाइना के उत्पादों का आयात करना,वहां की कंपनियों को अपने देश में व्यापार करने का निमंत्रण देना क्या संदेश देता है.
      हमारी सरकार कहीं ना कहीं चीन को भी अपना मित्र बनाने के लिये मजबूर है और गाहे बगाहे उसकी करतूतों के बावजूद उसको दुश्मन मानने के लिये परहेज करना दोयम दर्जे का अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार ही तो है.हम हमेशा यह मानते चले आये हैं कि दुश्मन का मित्र भी दुश्मन ही होता है. यदि हम पाकिस्तान को दुश्मन मानने के लिये राजी हैं चीन को भी दुश्मन मानने के लिये परहेज क्यों करते हैं.क्या हम चीन से डर रहे हैं क्या हम सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा चीन के द्वारा सैकडों किलोमीटर कब्जा कर चुके चीनी सेना के कब्जे वाले भारत के टुकडे को अलग नहीं करा सकते हैं.हम इस बात से डर रहे हैं कि कहीं चीन और पाकिस्तान दोनो मिलकर भारत को चारो तरफ से घेर लें तो भारत की मदद अमेरिका भी शायद नहीं करेगा. पाकिस्तान तब तक नहीं बाज नहीं आयेगा जब तक हम चीन को तवज्जो देते रहेंगें.चीन के बढते कदम पाकिस्तान के लिये छद्म युद्ध का रास्ता बनाने में भरपूर मदद करता रहेगा.यह सच है कि प्रायोगिक रूप से भारत काश्मीर की पीछे पाकिस्तान के ऊपर युद्ध नहीं कर सकता है.कहना जितना सरल है उसे उतारना उतना की कठिन.कहीं ना कहीं भारत को इस युद्ध को करने के बाद वैश्विक विरोध और मुश्लिम देशों की कट्टरता को भी झेलना पडेगा. अब तो हमारे देश को चाहिये कि वो ऐसा रास्ता खोजे की सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे.अर्थात रूस और प्फ्रांस जैसे देश का साथ लेकर इस समस्या का समाधान करना.
अनिल अयान सतना

९४७९४११४०७आओ आपस में हमलें करें
कभी कोई बस से इस्लामाबाद की यात्रा करता है. कभी कोई विशेष रेल चलाता, कभी कोई मजार में जाकर कसीदे पढता है कभी कोई जन्मदिन की बधाई देने बिना देश को सूचित किये दुश्मन देश के पीएम के साथ सेल्फी सेशन कराता है.कांग्रेस इस मामले में कुछ हद तक ठीक था कि उनके संगठन यूपीए के प्रधानमंत्री जी अपने कार्यकाल में पाक की धरती में कदम तक नहीं रखे.,हमारा देश भी अजीब है कभी आतंकी हमलों के लिये वहां की जांच कमेटी बुलाने के लिये पडोसी को आमंत्रित करता है. कभी विदेश मंत्री काश्मीर को अभिन्न अंग बता कर संयुक्त राष्ट्र संघ में पडोसी को समझाइस देता है. कभी हमारे प्रधान मंत्री जी पडोसी देश को आपस में लडने की बजाय गरीबी से लडने की समझाइस देते हैं. पठानकोट ,ऊरी और दोबारा पठानकोट, कभी पंजाब कभी तटीय इलाके में संदिग्ध घटनाये और लोगों के काफिलों का आना,देश को अपने अंतर्राष्ट्रीय संकट की एक अजीब सी महक आने लगती है. एक तरफ पाकिस्तान के प्रमुख सैन्य तैयारियों का जायजा लेते हैं तो दूसरी तरफ वहां के रक्षा मंत्री दोनों देशों के बीच बिना परमाणु हथियारों के समझौते की नीति को अपनाने की पहल करते हैं.कभी बालीवुड का मुस्लिम समुदाय के अभिनेता इस मामले में अपनी टांग फंसा कर मीडिया की सुर्खियां बनते हैं. तो कभी खिलाडियों का पाक दौरा रद्द हो जाता है. कभी कूटनीतिक तरीके से दक्षेश का सम्मेलन रद्द कर दिया जाता है. कभी चीन हमें सतलुज के पानी को रोकने की कोशिश करके अपने दुश्मन होने के संकेत देता है.
      हमने सर्जिकल स्ट्राइक क्या कर दी पडोसी दुश्मन देश जो आतंक का गढ है वो युद्ध विराम के चीथडे उडाकर सेना को अपना निशाना बना लिया. पंजाब बार्डर से सटे गांवों को इस लिये खाली करा लिया गया और सेना की निगरानी में खेती की जाने लगी मानो पैसठ के युद्द की पूरी तैयारी कर ली गई हो.देश का मीडिया पुराने सेना के अधिकारियों से पुनः लाहौर फतेह करने के आंकडे और अनुभव देश में बांटने लगा.कभी कबूतर कभी गुब्बारों से पडोसी देश हमारी सेना को धमकियां भेजने का फिल्मी स्टाइल वाला काम करने के लिये ऐसे विवष हुआ कि मुझे लगा कि खिसियाती हुई बिल्ली कुछ नहीं कर पा रही है तो खंबा नोचनें के लिये उतारू हो रही है.प्रधानमंत्री के द्वारा बराक ओबामा के बाद संयुक्त राष्ट्र अमीरात के प्रिंस को गणतंत्र दिवस के मुख्य आतिथ्य के लिये आमंत्रित करके अरब को भारत में उपनिवेशीय ताकत के रूप में आमंत्रित करने की तरह ही है.अब देखना यह है कि वो मुस्लिम होकर मुस्लिम देशों के लिये ज्यादा वफादार बनते हैं या फिर भारत के साथ खडे होकर मुस्लिम देशों के तथाकथित आतंकवाद को नकेल कसने में कुछ नये कदम उठाने की कोशिश करता है.चीन का हाल उस मध्यस्थ की तरह हो चुका है जो सफेद नकाबपोश दुश्मन का है. एक तरफ भारत को लाली पाप देकर अपने मकसद को हल करने के जुगाड में हमेशा विश्व स्तर पर मित्रता का स्वेत पत्र लिखता है और दूसरी तरफ पडोसी दुश्मन देशों के जरिये पाक अधिकृत काश्मीर और उससे सटे हुये चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान के रास्ते अपनी शक्ति को भारत के विरुद्ध प्रगाढ करने की पुरजोर कोशिश कर रहे है. मेड इन जापान,कोरिया और अन्य देशों के माल का आयात तो देश को तकनीकि रूप से मजबूत करता है परन्तु मेड इन चाइना के उत्पादों का आयात करना,वहां की कंपनियों को अपने देश में व्यापार करने का निमंत्रण देना क्या संदेश देता है.
      हमारी सरकार कहीं ना कहीं चीन को भी अपना मित्र बनाने के लिये मजबूर है और गाहे बगाहे उसकी करतूतों के बावजूद उसको दुश्मन मानने के लिये परहेज करना दोयम दर्जे का अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार ही तो है.हम हमेशा यह मानते चले आये हैं कि दुश्मन का मित्र भी दुश्मन ही होता है. यदि हम पाकिस्तान को दुश्मन मानने के लिये राजी हैं चीन को भी दुश्मन मानने के लिये परहेज क्यों करते हैं.क्या हम चीन से डर रहे हैं क्या हम सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा चीन के द्वारा सैकडों किलोमीटर कब्जा कर चुके चीनी सेना के कब्जे वाले भारत के टुकडे को अलग नहीं करा सकते हैं.हम इस बात से डर रहे हैं कि कहीं चीन और पाकिस्तान दोनो मिलकर भारत को चारो तरफ से घेर लें तो भारत की मदद अमेरिका भी शायद नहीं करेगा. पाकिस्तान तब तक नहीं बाज नहीं आयेगा जब तक हम चीन को तवज्जो देते रहेंगें.चीन के बढते कदम पाकिस्तान के लिये छद्म युद्ध का रास्ता बनाने में भरपूर मदद करता रहेगा.यह सच है कि प्रायोगिक रूप से भारत काश्मीर की पीछे पाकिस्तान के ऊपर युद्ध नहीं कर सकता है.कहना जितना सरल है उसे उतारना उतना की कठिन.कहीं ना कहीं भारत को इस युद्ध को करने के बाद वैश्विक विरोध और मुश्लिम देशों की कट्टरता को भी झेलना पडेगा. अब तो हमारे देश को चाहिये कि वो ऐसा रास्ता खोजे की सांप भी मर जाये और लाठी भी ना टूटे.अर्थात रूस और प्फ्रांस जैसे देश का साथ लेकर इस समस्या का समाधान करना.
अनिल अयान सतना
९४७९४११४०७