मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

तलाक की राजनैतिक जग्दोजहद

तलाक की राजनैतिक जग्दोजहद.
बहुत दिनों से तीन तलाक के कहन पर काफी घमासान मचा हुआ है.देश में संप्रदाय में शामिल और गैर संप्रदाय के लोग जानबूझ कर अपनी बयान बाजी करने पर उतारू हो रहे थे.विशेष रूप से मुस्लिम संप्रदाय में प्रचलित यह प्रथा,उसका संवैधानिक अस्तित्व और स्त्री स्वतंत्रता पर काफी उद्बोधन दिये गये.महिला सशक्तीकरण के नाम पर महिला संगठनों ने और महिला नेत्रियों ने इस मुद्दे को उछालने वालों पर काफी फब्तियां कसी.मुद्दे के परे जाकर कुछ मुस्लिम बाहुल्य इलाकों को इस पर जबरन घसीटने की कोशिश भी मीडिया के द्वारा की गई.चर्चाओं का बाजार गरम रखने के लिये एक से एक विशेषज्ञ बुलाये गये.परन्तु यह परिणाम नहीं निकाला जा सका कि क्या तीन तलाक कह देन भर से मुस्लिम संप्रदाय से परिवार विघटित हुये या फिर मात्र सरियत में लिखे होने की वजह से इसका राजनैतिक फायदा उठाया गया.यह सब सोचने का विषय था कि हमारे आस पास कितने मुस्लिम परिवार इस तीन तलाक कहने बस से जीवन भर के लिये अलग हो गये.क्या हमारा समाज उन परिवारों को दोबारा जोडने के लिये कोई पहल नहीं किया.इस पर कभी कोई चर्चा नहीं की गई.ना ही इस विभेदनकारी शब्द की समाज में या समुदाय में होने वाले प्रभावों की प्रायोगिकता की जांच करना उचित समझा गया.
      वास्तविकता तो यह है कि हर धर्म और संप्रदाय में पति पत्नी के बीच के संबंधों को बनाने और विच्छेदन के लिये अपने अपने तरीके से नियम कानून बनाये गये हैं.मुस्लिम पर्शनल ला बोर्ड कहीं ना कहीं इस मामले को अपने संज्ञान में हमेशा से रखता चला आया है.जो उस संप्रदाय के लिये आला कमान और सांप्रदायिक कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिये मदद करता है,.इस्लाम में अरबी शब्द तलाक के लिये यह कहा गया कि कोई भी पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक कहकर अलग रहने के लिये कह सकता है.लेकिन इसमें यह भी कहा गया कि यह तीन बार तलाक के जरिये अलग रहने की स्थिति तीन माह अर्थात तीनमाहवारी के अंतराल में ही संभव है.जिसे कुरान में तलाक हलाला कहा गया(कुरान:६५:१)और यह कानून साउदी अरब में बहुत पहले से चला आ रहा है.कितु पहले दो बार तलाक देने के बाद यदि उनके परिवार और मौलवियों के सानिध्य में उनकी काउंसिलिंग करके पति पत्नी दो बारा भी साथ में तीन माह के अंतराल के बाद रह सकते हैं. किंतु सिया और सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय इस मामले में भिन्न मत रखते हैं.सुन्नी संप्रदाय का यह मानना है कि तीन बार तकाल कह देने बस से कोई भी पति पत्नी को एक बार में अलग नहीं कर सकता .बल्कि उसे अपने मौलवियों और अपने परिवार के बुजुर्ग लोगों से काउंसिलिंग करके साथ में रहने की इस्लाह भी पालन करना होता है.इसे ही. तीन महीनों की यह अवधि विचार करने के लिये होती है इसे ही इस्लाम में इद्दाह और इद्दत कहा जता है.शिया मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक का कोई भी प्रावधान नहीं रखा गया.उनके यहां दो गवाहों की मदद से और पारिवारिक सलाह मसविरे के जरिये मामले को सुलझाने का प्रयास किया जाता है.और अंततः जब मामला नहीं सुलझता तो उन्हीं गवाहों और मौलवियों की उपस्थिति में तलाक मान लिया जाता है.इसमें यह जरूरी नही है कि पति पत्नी का सारा जीवन यापन का खर्च वहन करे.महिलाओ के द्वारा भी तलाक के लिये मैरिज कांटेक्ट को खारिज करने का प्रावधान गाजी और गादी के सामने संज्ञान में लाने के बाद  इस संप्रदाय में रखा गया जो कई मुस्लिम देश मान रहे हैं
      मुस्लिम संप्रदाय में सिया और सुन्नी के अलग प्रावधानों के बीच तलाक के तीन स्टेप्स बताये गये.(कुरान सुरा.३/६५/३३/ (अलनिसा/अल अजब/अलतलाक आदि.) तलाक की शुरुआत,इस्लाह,और अंजाम तक पहुचाना. शिया में अल्पकालिक निकाह को अनुमति है जबकि सुन्नी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं रखा गया. तलाक के लिये महिलाओं(खुला दरार और अगादी) और पुरुषों को बराबरी के अधिकार सरियत में दिये गये. तो फिर हम यह क्यों कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय में महिला सशक्तीकरण की बात नहीं की गई.और वहां सिर्फ पुरुषवादी सोच हावी है. सवाल यह है कि हम अपने मुद्दे को इतना धर्म और संप्रदाय के ग्रंथों के तथ्यों के आधार पर देख्ते हैं.इस लिये इस तरह के मुद्दे सिर्फ धार्मिक विश्वास को राजनैतिक मिलावट के स्तर तक लाने की तरह है. संप्रदाय कोई भी हो किंतु स्त्री और पुरुष दोनों के सामाजिक और पारिवारिक अधिकारों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया है.

अनिल अयान सतना.

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