शनिवार, 14 जनवरी 2017

"गांधी-मोदी-खादी"-एक नई मुनादी

"गांधी-मोदी-खादी"-एक नई मुनादी
स्वच्छ भारत के मोनो में एक चश्मा लगा देने से लोकप्रियता का ठिकाना नहीं था.तभी आपका खादी पहनकर फोटो खिंचाने की परंपरा की शुरुआत आखिरकार चरखे के पीछे सूत कातने की मुद्रा ने सबके मुंह बंद कर दिये.अचानक यह क्या हो गया हमारे प्रधानमंत्री जी को जिन्होने अभी अभी नोटबंदी का ट्रेलर दिया है.अब यह कौन सी नई मुनादी करने वाले हैं.हमारे प्रधानमंत्री जी तो वैसे भी एक जादूगर से कम नहीं हैं. कभी गांधी के विदेश में पुतले का अनावरण करते हैं.कभी रातो रात नोटों को बंद करने की घोषणा करते हैं.कभी ब्रिक्स सम्मेलन में सभी को खादी की जैकेट पहना देते हैं.कभी दस लाख का पाली सूट पहनकर अमेरिका के राष्ट्रपति की अगुवाई करते हैं.आप अपने राज्य की महिलाओं को चरखा बांट सकते हैं. आप यह सब कर सकते हैं क्योंकि आप हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं.आप गांधी जी के पैतृक राज्य से ताल्लुकात रखते हैं.आपका भी तो गांधी जी के साथ कुछ ना कुछ तो रिश्ता तो बनता ही है.जिसका पालन करने के लिये आप उत्सुक हैं.आप हम देश वासियों को इतने सरप्राइज देते आ रहे हैं कि अब तो आपका एक एक्सन हमारे अंदर के कोने कोने को हिला देता है.आपका चरके के साथ आना भी इसी अंदेशे को मन में उपजा ही देता है.कभी कभी लगता है कि आपके रंग मौसम की तरह बदल रहे हैं.आप जिस राजनैतिक पार्टी से संबंधित है उसमें गांधी को कांग्रेस से जोडकर देखा जाता है.गांधी की सोच कांग्रेस की सोच,गांधी के कपडे और उपयोग का सामान भी कांग्रेस का ही है.तो फिर आप इस तरह से कांग्रेसी सामान का उपयोग अचानक कैसे करने लगे यह समझ के परे था.जब स्व.गोडसे की गांधी वध क्यों पुस्तक फेरा तो समझ में आया कि कहीं ना कहीं विचारधारा का अंतर इतना ज्यादा गहरा क्यों हैं.
जब तुषार गांधी यह कहते हैं.आपके दिल में गोडसे और हाथ में चरखा है तो मन कहीं निराशा से भर जाता है.जब खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय सक्सेना कहते हैं कि हमने यह तस्वीर तब की प्रकाशित की थी जब प्रधानमंत्री जी ने महिलाओं को चरखा बांटा था.यह नियमित बदलाव है पहले भी हमने कई बार आयोग के कैलेडर में गांधी जी की तस्वीर को नहीं प्रकाशित किया.उस समय तो कोई पहाड नहीं टूटा.सब कुछ किया जा सकता है क्योंकि सरकार जब आपकी है तो हम मंत्रालय भी आपका है.किंतु कहीं ना कहीं कई सवाल मन को कचोटते हैं.चरखा वितरण के समय की यह तस्वीर क्या आपको विश्व पुरुष अर्थात गांधी जी की जगह पर पहुंचा सकती है.एक तरफ आपकी फंडिग जब अधिक्तर उन पूंजीपतियों को जाती है जिनका खादी से कोसों तक कोई संबंध नहीं है. जबकी दूसरी तरफ आपकी जुबां में गांधी और खादी, आपके तन में खादी, आपके व्यवहार में गांधीवादी सोच का प्रदर्शन है तो फिर आप गांधीवादी क्यों नहीं है.क्या आप मौके के अनुरूप समय सापेक्ष आवश्यकतानुसार गांधी की विचारधारा और उनके जीवन के तथ्यों का इस्तेमाल करके राजनीति को अपने पक्ष में रखना चाहते हैं.यह सच है कि नोट बंदी के बाद आप युवाओं के स्टेटस सिंबल बन चुके हैं.आपने खादी के मार्केट में तहलका मचा दिया है.किंतु आपके शासन काल में अधिक्तर हमारे पुराने सिंबल्स का संबल आपने खत्म कर दिया है.सूचना प्रसारण मंत्रालय के कैलेंडर में परिधान मंत्री शोभा बढा रहे हैं.
आपकी इस आदत से सबको ऐसा महसूस होने लगा है कि आप अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं.सक्सेना जी भले ही यह कहे कि आपके कार्यकाल में खादी आयोग की आय में चौतीस फीसदी का इजाफा हुआ है.आपकी वजह से उनका आयोग हस्ट पुष्ट हुआ है.इस लिये आयोग ने आपकी फोटो से जनता को आकर्षित करने का प्रयास किया है, परन्तुहम सबको पता है कि स्वतंत्रता के पश्चात खादी के विचारों को आपने मात्र कपडे के रूप में देखा है, कांग्रेस हो या भाजपा खादी मात्र गांधीवादी सोच के परे सिर्फ परिधान के रूप में उपयोग की गई.यह खादी भक्ति और गांधी भक्ति इतनी क्यों की जा रही है यह किसी से छिपा नहीं है.नैतिक बल में आप हो ना हो किंतु गांधी की बराबरी नहीं कर सकते हैं.आपके गांधी के साथ भाईपट्टीदारी वाले,पैतृक राज्य वाले संबंध हो सकते हैं.किंतु आप जिस पार्टी से संबंध रखते हैं वो धुर गांधी और गांधीवाद के विरोधी रहे हैं.पर अचंभा इसलिये भी है.कि विरोध भाजपा को ज्यादा करना चाहिये कि आप गांधीवादी आचरण में ढल रहे हैं किंतु विरोध कांग्रेसी और गांधीवादी संगढन ज्यादा कर रहे हैं क्योंकि वो सब जानते हैं कि आप अपनी सत्ता की मजबूती के लिये गांधी के नाम काम और धाम का दोहन कर रहे हैं.हां यह तो हैं कि राजनीति में जब सब जायज है.तो यह कार्य आपका सम्मान के योग्य है ही.भले ही गलियारे में विरोधी कितना भी शोर मचायें.काश आप असली मायनों में गांधी के साथ भाई पट्टीदारी निभाएं और उन्हें दिल से दिमाग तक लोगों के अंतस में प्रवेश करने में मदद करें.वही आपकी सही मायनों में गांधी भक्ति होगी.
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

रविवार, 1 जनवरी 2017

"नियमों की खुदाई" करते रेत माफिया

"नियमों की खुदाई" करते रेत माफिया
इसी रविवार को नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा का प्रारंभ किया गया जो ११ मई तक चलने वाली है. इसके जरिये संस्कारधानी से यह मिशन आगामी आने वाले समय में विकास की राह प्रशस्त करेगा.नर्मदा को हरियाली चूनर पहनाने की यह पहल अनोखी और आश्चर्यचकित करने वाली है.क्योंकि इसके पीछे भी बहुत से ऐसे कारक हैं जो कहीं ना कहीं इस मिशन में बाधक सिद्ध होंगें.हमारे देश में वर्ष भर बहने वाली ऐसी अनेकानेक नदियां हैं. गंगा के लिये समूचा मंत्रालय इसी कार्य के लिये कार्यरत है.किंतु परिणाम बहुत सुधारात्मक ढांचा नहीं बना पाया.देश भर को छोडिये हमारे महाकौशल और विंध्य में नदियां अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहीं हैं. नदियों से जुडने वाली आस्थायें इनके घाटों को मनुष्यों की भीड से सामना करने के लिये मजबूर करती हैं.उज्जैन की स्थिति सिंहस्थ के बाद हम सबके सामने है.हम चाहकर भी नैसर्गिक सौंदर्य को बचा नहीं पा रहे हैं.आम जनता के लिये नियम बने के बने रह जाते हैं. जनता उन्हें मानती भी है. परन्तु नदियों से जुडा एक और व्यापार है जो वैध और अवैध रूप से फल फूल रहा है.सरकार के पास उसकी खातिर कोई ठोस रण्नीति नहीं है.या सरकार की नीतियों को ये माफिया नदी के रेत के साथ खोद रहे हैं.इन सबके पीछे कौन जिम्मेवार है.यह सोचने का विषय है.हम सब जानते हैं कि आज कांक्रीट के शहर खडे करने के लिये रेत के विभिन्न प्रकारों की शहर को बहुत जरूरत है.सरकार इस पर लगाम कैसे लगायेगी.दोनो एक प्रकार से एक दूसरे के पूरक है.अगर रेत के उत्खनन को रोका जाता है तो नदियों का विस्तार बढता है.और अगर इस उत्खनन को बढाया जाता है तो नदियों का प्राकॄतिक अस्तित्व खतरे में आ जाता है.रेत का अवैध धंधा और इससे जुडे माफिया गिरोहो के लिये जितने नियम कायदे बनाये गये हैं वो महज देखने के लिये ही समझ में आते हैं.उनकी पूर्ति मात्र खानापूर्ति बनकर रह गयी है.अब इस दरमियां यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि नर्मदा के बहाने जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस यात्रा को प्रारंभ किया जा रहा है उसके संबंध रेत माफियाओं के साथ चोर चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करने की तरह ही संरचित हो रहे है.
अब मध्य प्रदेशसरकार को यह देखना होगा कि इस यात्रा का हस्र रामपथ यात्रा की तरह ना हो.क्योंकि अनिल दवे जी ने अपने राजनैतिक कैरियर के साथ साथ अपनी पुस्तक नर्मदा समग्र में लिखा है.कि नर्मदा को खतरा अपने ही रहनुमाओं से हैं.नर्मदा में खनिज संपदा के साथ साथ रेत का अथाह भंडार मौजूद हैं.जबलपुर से कटनी के बीच में इसका दोहन अधिकाधिक हो रहा है.इसकी प्रमुख वजह यह भी है कि सतपुडा और विध्यांचल पर्वत श्रेणियों से यह नदी रेत की अथाह मात्रा अपनी तली में समेटे हुये है.यही वजह है कि महाकौशल और विध्य में इस रेत के माफियाओं का सम्राज्य भारत के प्रमुख रेतमाफियाओं की सूची में टाप टेन में है.प्रशासन खुद अगर इन माफियाओं का संरक्षण करे तो फिर कैसे नर्मदा को नैसर्गिक सुंदरता प्रदान की जायेगी,.वर्तमान में तगाडियों और फावडों को किनारे करके अंधेरी रात में और सुबह के भोरंभोर में आधुनिक मशीनों के जरिये रेत के साथ नियमों की खुदाई भरपूर की जा रहीहै.इस बीच में माननीय मुख्यमंत्रीजी का यह कहना कि यह यात्रा अपने उद्देश्यों की पूर्ति करके रहेगी.इसका राजनैतिकीकरण नहीं होगा.बाला बच्चन जी का समर्थन और संकेतात्मक रूप से इस प्रकार के ब्रेकर्स के प्रति सरकार को सचेत करवाना भी इस सेवा यात्रा के लिये एक महत्वपूर्ण चुनौती बनकर उभरेगी.उद्देश्य तो बेहतर हैं किंतु इसकी पूर्ति के लिये चाहिये कि माफिया और उनके गुर्गों को ठिकाने लगाया जाये ताकि वो नियमों की खुदाई ना करके नदियों की नैसर्गिक सुंदरता हो बचाये. आज आवश्यकता है कि माननीय मुख्यमंत्री जी की इस यात्रा को सामाजिक और पर्यावरण सुधार के नजरिये से लिया जाये.
हमें यह ध्यान रखना होगा कि इस तारतम्य में अमरकंटक से नर्मदा के लिये चलाई जा रही यात्रा के अंतिम पडाव तक के नागरिकों को अपने स्तर पर कुछ ना कुछ पहल करना ही होगा.माननीय मुख्य मंत्री जी से हमारी यह अपेक्षा यही है कि उन्हें आपरेशन थियेटर में काम करने वाले सर्जन की तरह निर्दयी होना चाहिये ताकि रेत माफिया चाहे उनसे अगर  अप्रत्यक्ष रूप से तालुकात रखें या किसी विरोधी पार्टी से जुडाव रखे, दो ही स्थितियों समान सजा देने में उन्हें अपने कदम पीछे ना हटाना पडे .उनका यह प्रयास जितना सराहनीय है उतना ही कांटॊ भरा  है. बस यह मान लीजिये एक आग का दरिया है और दूब के जाना है.इसमें उनके सहयोगियों का सहयोग बहुत जरूरी है.साथ ही साथ उनसे जुडे प्रशासन का सहयोग भी इस यात्रा के उद्देश्यों को पूरा करने में मदद करेगा.वास्तविकता तो तब सामने आयेगी जब रेत माफियाओं और प्राकृतिक सौंदर्य को नष्ट करने वाले वन माफियाओं का नदी के किनारों से कब्जा हटेगा.इस अभियान की सफलता भी तभी है जब यात्रा से एक जागरुकता फैले जिससे नर्मदा ही नहीं बल्कि अन्य जीवन प्रदान करने वाली नदियां माफियाओं के चंगुल से मुक्त हों और हरित धन धान्य से परिपूर्ण हो. नर्मदा की तरह सोन,केन,मंदाकिनी और अन्य प्रचुर जल वाली नदियों के लिये उसके पर्यावरण हेतु एक पहल की आवश्यकता जितना समाज से हैं उतना ही प्रशासन और सरकार से है.
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७  

अखिलेश अनुपस्थित, टिकट व्यवस्थित

अखिलेश अनुपस्थित, टिकट व्यवस्थित
बुधवार को मुलायम सिंह ने अंततः तीन सौ पच्चीस सीटों में उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर चुके हैं. अभी भी अठहत्तर प्रत्यासियों की सूची के जारी होने का इंतजार किया जा रहा है.अखिलेश का झांसी में उसी दिन प्रचारप्रसार करना और उनकी अनुपस्थिति मे टिकट वितरण की घोषणा करना.समाजवादी पार्टी के पुराने समाजवाद के नये रूप का संखनाद है.जिसमें इतना सब कुछ होने के बाद भी मुलायम सिंह ने खुद को केंद्र में बनाये रखा है.चुनाव होने को अभी कुछ महीने शेष हैं.किंतु सुप्रीमों का विश्वास उन उम्मीदवारों में अधिक दिखा है जिनका अपराध जगत से ज्यादा सरोकार रहा है.अतीक अंसारी और रामपाल यादव प्रमुखता के साथ शामिल कियेगये. इतना ही नहीं उन लोगों को भी सम्मानित स्थान मिला है.जिसको अखिलेश ने सरकार से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.हालां कि यह तो तय है कि जब अखिलेश विधान परिषद के सदस्य हैं जिसका कार्यकाल २०१८ तक है. तो उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति ज्यादा मायने एक दृष्टिकोण से नहीं रखती किंतु अगर हम और दृष्टिकोणों से देखें तो समझ में आयेगा कि अखिलेश सरकार का पांच साल और उसके बाद मुलायम सिंह जी का सत्ता मोह समाजवाद की नई अवधारणायें गढने में कामयाब हो रहाहै. दोनों में एक समानता यह है कि दोनों ने गठबंधन का विरोध किया और बहुमत के लिये एक मत हैं. किंतु सवाल यह है कि बहुमत किन उम्मीदवारों का होगा.क्या आपराधिक नेतृत्व का वर्चश्व होगा.क्या उस समाजवादी गुट का वर्चश्व होगा जिसका मतभेद अखिलेश सरकार से है.क्या अखिलेश का चेहरा अब समाजवादी पार्टी के लिये हानिकारक है.ये गूढ प्रश्न गर्भ में छिपे हुये हैं.
हमारे सतना से चुनाव प्रसार के लिये युवा प्रतिनिधियों का जाना और चुनाव प्रभारी के दायित्व को प्रापत करना यह साबित करता है कि मुलायम सरकार की तरफ झुकाव अधिक है.अखिलेश सरकार के वैचारिक विरोध का प्रचार प्रसार अन्य राज्यों के साथ मिल बैठकर बांटा जा रहा है.बहर हाल इस सूची का प्रभाव मायावती और भाजपा के उत्तरप्रदेशियों पर ज्यादा पडेगा.सभी दलों को यह पता है कि उत्तरप्रदेश का यह चुनाव हर दल के लिये वर्चश्व की लडाई है.इस राज्य में अपने दल की सत्ता हर राजनैतिक दल देख रहा है. किसी दल का वास्तविक बहुमत प्राप्त कर पाना आग के दरिया को डूबकर पार करने की तरह होगा.समाजवाद ने जिस तरह पिता और पुत्र के वैचारिक कलह को अपने अंदर पिरोया है वह राजनीति के लिये हानिकारक है.उपचुनावों के माध्यम से अखिलेश की वापसी.सूची में खुद अखिलेश का नाम ना होना.अपराधिक राजनैतिक लोगों को चुनाव में सम्मानित उम्मीदवारों की सूची में शामिल करके मुलामय सिंह ने समाजवादी पुराने रूप को नये लबादे में लपेटने का काम किया है.अखिलेश क्या अब पार्टी के नाम पर उन उम्मीदवारों के प्रचार में जायेंगें जिनसे उनका धुर विरोध रहा है.क्या वो अपने पिता के नक्शेकदम में चलने के लिये विवश होंगें मात्र पार्टी की सफलता के लिये. यह अंतर्दवंद जरूर इस चुनाव में नया मोड लायेगा.जिस तरह का रुख पिता ने पुत्र के विरोध में पार्टी के मंच के माध्यम से अपनाया है और उन लोगों का टिकट काट दिया है जो अखिलेश के खास हैं। वह यह संकेत तो दे रहा है.कि सत्ता अगर सपा की आती है तो निश्चित ही मुख्यमंत्री के चेहरे में बदलाव लहर जरूर दिखाई देगी.अब यह लहर पार्टी के लिये लाभदायक होगा या हानिकारक।
समाजवादी पारटी की पहले से ही यह नीति रही है कि वो पुराने चावलों पर ज्यादा यकींन करती रही है.जिनके पास से दल बल आने वाले कल में दिखाई देगा.और जीत की महक आयेगी.समाजवाद के नाम पर पुराने चावलों की टीम किस स्तर से यह चुनाव लडेगी यह आने वाला वक्त बतायेगा क्योंकि इस बार भाजपा का केंद्र में होना समाजवादी पार्टी के लिये नाकों चने चबवाने वाली स्थिति पैदा करेगा.अंतःकलह पार्टी की वैचारिक बुनियाद को वैसे भी हिला चुका है.वर्तमान के उन विधायकों का टोला जिनकों टिकट नहीं मिला है.वह किस ओर मुंह मारता है वह जरूर विदूषक की भूमिका निभायेगा.कुल मिलाकर विदूषक के रूप में उत्तर प्रदेश के अंदर हर उस पार्टी की भूमिका है, जिसका काम जनता को वैचारिक मोह से पाश में बांध सके।जो बांध ले जायेगा.वो वोट की गणित को अपने हवाले करने में कामयाब होगा.एक तरफ हर हर मोदी घर घर मोदी वाले भाजपाई हैं और दूसरी तरफ तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार वाली बहन जी है। इस बीच में ये पिता पुत्र एक मोड लाने के लिये आतुर दिखाई पड रहे हैं। दृश्य जरूर दिलचश्प होने वाला है,
अनिल अयान
सतना
९४७९४११४०७
ayaananil@gmail.com

"राजनैतिक चंदा" फायदे का धंधा

"राजनैतिक चंदा" फायदे का धंधा
हमारे देश में राजनीति के लाडले दल खूब मौज उडा रहे हैं.आजकर नोट बंदी के चलते "अज्ञात स्त्रोत" दलों का मालिश पुराण लिखने में व्यस्त हैं। भारत में इस दिनों जिस तरह राजनैतिक चंदे की रकम में इजाफा हुआ है.वह सरकार के लिये चिंता का विषय होना चाहिये.एक तरफ आम जन को नकेल कसने का दायित्व अगर सरकार निर्वहन कर रही है तो दूसरी तरफ अपनी ही विरादरी के साथ पट्टीदारी निभाने की रीति समझ के परे है।कहने को हर दल देश को पारदर्शी और निष्पक्ष सरकार देने का दावा करता है.किंतु सत्ता में आने के बाद उसकी भाई पट्टीदारी अन्यदलों के साथ ऐसे प्रारंभ होजाती है, जैसे चोर चोर मौसेरे भाई हो गए हों.दिल्ली में आप सरकार के द्वारा अपने वार्षिक चंदे का व्योरा अपनी वेबसाइट से हटाने का निर्णय कहीं ना कहीं चोर की दाडी में तिनके का संकेत हैं.ऐसा नहीं है इसमें सरकार के रूप में काबिज भारतीय जनता पार्टी दूध की धुली हुई है.आकडे बताते हैं. कि दो हजार तेरह से दोहजार सत्रह तक भाजपा के राजनैतिक चंदे में अन्य दलों की तुलना में तीन गुना ज्यादा बढोत्तरी हुई है. और एक सौ छप्पन प्रतिशत तक दलगत बढोत्तरी हुई हैऔर कांग्रेस भी एक सौ पैतीस प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है..मोदी सरकार ने दो हजार पंद्रह सोलह में इस चंदे की आवक को चौरासी प्रतिशत तक कम करने का संकेत दिया है.राजनैतिक चंदे का अज्ञात स्त्रोत वाकयै सरकार के लिये और भारत की अर्थव्यवस्था के लिये गले की हड्डी बन चुके हैं.वास्तविकता यह है कि एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ने राजनैतिक दलों को चंदा देने वाले चुनावी ट्रस्टों को आडे हाथों इस लिये लिया क्यों कि ये चुनावी ट्रस्ट राजनैतिक दलों और कंपनियों के बीच के संगढन के रूप में काम करने के साथ साथ दोहजार तेरह से आजतक लगभग पौने दो करोड चंदे के रूप में कंपनियों के द्वारा कमाकर नब्बे प्रतिशत राजनैतिक दलोंमें वितरित कर भी दिये.परन्तु चुनाव आयोग के पास इन ट्रस्टों की कोई साफ सुथरी रिपोर्ट नहीं है.पारदर्शिता के लिये बनाये गये ये ट्रस्ट बनाये तो गये थे लाभकारी परिणाम देने के लिये परन्तु ये राजनैतिक दलों के लाभ के अड्डे बन गये.
एडीआर अब इस बात पे अड गया कि ये ट्रस्ट मूल कंपनियों में बने,एक घटना जिसमें अमुक कंपनी ने दो हजार चौदह पंद्रह और सोलह के दरमियान एक सौ बत्तीस करोड चंदे में रेवडी बांट दी.और चुनाव आयोग के पूंछने में इस कंपनी का नाम कागजातों में ही बस दिखाई पडा।अब तो स्थितियां यह है कि नोट बंदी के बाद इस तरह के केश लाजमी से हो चुके हैं.कोई चाहकर भी फिराक लेने की नहीं सोचता क्योंकि भाजपा की स्थिति अन्य राजनैतिक दलों की तुलना में सूची में सबसे आगें है.कहने को चुनाव आयोग में अठारह सौ दल पंजीकृत हैं किंतु उसमें से लगभग पांच सौ दल तो आज तक चुनाव में प्रतिभागी तक नहीं खडा करे.सरकार क्यों नहीं इन दलों और इनकी आय के स्रोत को सूचना के अधिकार के तहत नहीं ला पा रही.यह समझ के परे हैं.चुनाव आयोग ने एक सिफारिश में चंदे की रकम को बीस हजार से करके दो हजार तक करने की अनुशंसा की जनप्रतिनिधि अधिनिय उन्नीस सौ इक्यावन को भी संसोधित करने की सिफारिश की.आयकर अधिनियम उन्नीस सौ एक्सठ की धारा तेरह ए के अनुरूप जिस छूट के लालच में ये अज्ञात स्त्रोत राजनैतिक चंदे का अप्रत्याशित लाभ उठा रहे हैं.वो देश को गर्त में ले जा रहा है और दलों को अर्श में ले जा रहा है.बीस हजार से कम के चंदे में स्त्रोत की जानकारी को ना बताने वाले नियामक का लाभ लेते हुये.एक मुस्त काले धन को कई काल्पनिक नामों के खातों में वितरित करके सफेद धन में बदल कर मजे कर रहे हैं.इनकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं है.सांसदों ने जिस तरह चुनाव आयोग की सिफारिशों को नक्कारखाने में तूती की आवाज बनाकर अनसुना कर दिया.उसके चलते चाहिये कि अब आयोग ऐसे नाकारा दलों और जन प्रतिनिधियों की छटनी की प्रक्रिया शुरू करे.ताकि इनको भी आटे दाल का भाव समझ में तो आये.
क्या देश की आवाम को यह जानने का अधिकार या सूचना प्राप्त करने का अधिकार नहीं है कि जिन लायक दलोंपर विकास लोक कल्याण और प्रजातंत्र को मजबूत करने का दायित्व है.वो किन लक्ष्मी पुत्रों के अज्ञात चेहरों के दम पर एकाएक चंदा प्राप्त करते हैं.और जो सरकार जनता को ईमानदार और पारदर्शिता की नसीहत का पाठ मन की बात में पढाती नजर आती है.खुद को आरटीआई के दायरे में लाने में कतराती क्यों है और अन्य दलों के साथ भाई चारा निभाने में इतनी मसगूल क्यों है.सब दल जानते हैं कि अगर चुनाव आयोग इनका पंजीयन समाप्त कर दे तो इनको प्राप्त होने वाली आयकर छूट सुविधा समाप्त हो जायेगी.चुनाव आयुक्त नसीम जैदी कहते हैं कि डमी राजनैतिक दल और राष्ट्रीय दलों की क्षेत्रीय शाखाये.सरेआम काले धन को सफेद करने की जुगत भिडाये बैठीहै. देश के अधिकतर राजनैतिक दल दूसरे दलों की जेब टटोलने में जितनी तेजगी दिखाते हैं उतनी ही तेजगी से अपने खजाने को छिपाने की फिराक में होते हैं.मोदी सरकार से हम सबकी यह उम्मीद तो है.कि नोटबंदी की तरह दृढता दिखाकर जनप्रतिनिधिकानून के संसोधन का प्रस्ताव आवाम के हित में संसद में लाये और  सूचना के अधिकार के तरह आवाम को सुकून देने का काम करे।अज्ञात स्त्रोत की इस फैक्ट्री जिसमें काले धन के अनाज को सफेद आटे में बदलने का काम जारी है उसमें भी लगाम लगाकर देश की अर्थव्यव्स्था को सुदृण करने में कदम बढाये जब जनता को लाइन में लगाने में कोई गुरेज नहीं था तो अब अपने साथियों को लाइन में लगाने में देरी समझ के परे है।

अनिल अयान,सतना