मंगलवार, 23 मई 2017

नक्सलवाद : आंतरिक सुरक्षा के लिये मीठा जहर

नक्सलवाद : आंतरिक सुरक्षा के लिये मीठा जहर
सुकमा में हुई दर्दनाक घटना भारत के राज्यों के लिये कोई नई नहीं थी। इसके पूर्व भी नक्सलवाद ने हमारी आंतरिक सुरक्षा को तार तार करने की कोशिश की है। देश में हर दिशा में जवान शहीद हो रहे हैं। परन्तु हम इसके लिये सिर्फ आतंकवाद की तरह ठोस कदम उठाने की बात करके कुछ समय के बाद मौन होने के आदी हो चुके हैं। आज हमारे देश में सरकारी व्यवस्थाओं के साथ भारी भरकम बजट है। पर वह इस मामले में नगण्य है। पुलिस और सेना के जवानों की मौत का बढना, रेल संचालन में  नक्सलवाद से उत्पन्न छति, स्थानीय इलाकों में नक्सली कर्फ्यू और इसकी वजह से समाज में होने वाली छतियां लगातार जारी है।राजनीतिज्ञों की मंहगी बैठकें भी इसका हल क्यों नहीं निकाल पाती हैं। यह प्रश्न तब से लेकर आज तक उसी तरह बरकरार है। कभी कभी तो लगता है कि  कम्यूनिस्ट अगर ना होते तो नक्सलवाद का उद्भव ही ना होता। साठ के दसक में चारू और कानू सान्याल जैसे कम्युनिस्टों के अनौपचारिक आंदोलन की वजह से नक्सलबाडी स्थान से इसका उदय हुआ। दोनों चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग से काफी प्रेरित होने के कारण मजदूरों और किसानों के लिये सशस्त्र क्राति का  प्रारंभ किया। इतना ही नहीं सरसठ सन के समय पर तो नक्सलवादियों ने कम्यूनिस्ट क्रांतिकारियों की अखिल भारतीय समन्वय समिति भी बनाई थी। बाद में खुद को इन्होने कम्यूनिस्ट पार्टी से अलग कर लिया। समय दर समय के बाद ये संगठन अब  वैधानिक राजनैतिक पार्टी के रूप में काम भी करने लगे। इसकी मार आंध्राप्रदेश, छत्तीसगढ, उडीसा , झाडखंड और बिहार में सबसे अधिक पडी और आज भी जारी है।
आज के समय पर राज तंत्र का हाल यह है कि आरक्षण हाबी है, सरकारी नौकरियों में दलाली फल फूल रही है, कृषि नीतियां किसानों की आत्महत्याओं का नाच देख रही हैं। छोटे उद्योगें को बडे उद्योगें ने निगल लिया है। उदारीकरण मजबूरी बन गया है। तब भी हम नक्सलवाद की आंतरिक विषमता को मारने का प्रण लेने साहस कर ही बैठते हैं। हमारा तंत्र गरीबों के लिये कहीं ना कहीं मीठे जहर के रूप में जिस तरह काम कर रहा है वह नक्सलवाद के लिये भोजन बन कर पहुंचता है। आज के समय में नक्सलवाद माओवाद और आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक रूप ले लिया है। बस्तर में उनकी समानांतर सरकार, माफियाओं की चीन द्वारा प्रायोजित  माओ सरकार से ज्यादा खतरनाक है यह सरकार। हमारे देश को छोडे तो श्रीलंका में , म्यामार में, नेपाल में, जो कुछ देखने को मिल रहा है वह गृह युद्ध, दमन चक्र, माओवादी हिंसा, सब सत्ता पाने के लिये कटे मरे जा रहे हैं, और और तो और भोले भाले पिछडे युवकों को अपनी सेना में शामिल कर रहे हैं। सत्ताधारियों की दोमुही हिंसा ही नक्सलवादियों को  रक्तहिंसा करने के लिये प्रेरित करती है। इसके पीछे जितने कारण हैं वह सब शासन की नीतियों पर आधारित हैं अनापेक्षित महत्वाकांक्षाओं का बढना,शोषण की हद को पार करना, विषमता, योजनाओं का गोल मोल होना,लचीली कानून व्यवस्था, मंहगी शिक्षा और किताबी ज्ञान को बढाना, जनता में प्रतिकार का आभाव सहित ना जाने कितने अप्रत्यक्ष कारण हैं जो नक्सलवाद को गरीबों के मन , पिछडों की ताकत में घोलने का काम करते हैं। हम आदिवासियों और पिछडों को अभावग्रस्त स्थिति में छोड कर  वेदांता, टाटा और एनएमडीसी जैसी कंपनियों को उत्खनन की इजाजत दे रहे हैं। स्थानीय आदिवासी खुद और सरकार के बीच अपने सम्मान और आजीविका के लिये संघर्ष का आंदोलन नक्सलियों की मदद से छेड देते है। नक्सलियों के कंगारू कोर्ट और उनके निर्णय जिसमें  दोषी को ताबडतोड सजा दी जाती है, भले वो देश की सेना और राजनीतिज्ञ ही क्यों ना हो, ज्यादा प्रिय लगता है। प्रेसर बंब, आरडीएक्स विस्फोटक, बारूदी सुरंगों के इस्तेमाल में नक्सलवादियों की मदद ये आदिवासी युवा ही करते हैं। यह तो एक उदाहरण है।
यदि हम चाहते हैं कि नक्सलवाद कम हों तो जरूरी है कि राजनैतिक ताकतों को हर वर्ग के प्रति ईमानदार होना होगा। हर वर्ग के अधिकारों और सुखद भविष्य की चिंता करनी होगी। कानून व्यवस्था और न्याय को त्वरित करना होगा। आदिवासियों और पिछडों की साक्षरता को जीविकोपार्जन से जोडना होगा। ग्रामीण धारा से जुडे छोटे उद्योगों को विकसित करना होगा। प्राकृतिक संपदा को  बिचौलियों से बचाना होगा। छद्म राजनैतिक घरानों पर रोक लगानी होगी जिसके चलते व्यक्तिगत राजनैतिक स्वार्थ वश किसानों पिछडों मजदूरों आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है। उन देशों से पूरी तरह से संबंध तोडना होगा जो देश की आंतरिक सुरक्षा को नक्सलवाद माओवाद, आतंकवाद जैसे औजारों से छिन्न भिन्न करने की फिराक में रहते हैं। जो सामने से गले लगते हैं और पीछे से छूरा घॊंपते हैं। हमारे समाज से अगर शोषितों का वर्ग कम होगा तो नक्सलवाद खुद बखुद गुठने टेक देगा। यदि हमारी सरकारें  सबको जीने और समान विकास करने का अवसर ईमानदारी से प्रदान करे तो ऐसी आंतरिक सुरक्षा विरोधी विचारधारायें और रक्तिम हिंसात्मक आंदोलन दम तोड देंगें।
अनिल अयान सतना

९४७९४११४०७

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