रविवार, 6 अगस्त 2017

गर्व है आजाद भारतीय होने पर

गर्व है आजाद भारतीय होने पर
वंदेमातरम सुजलाम सुफलाम मलयजशीतलाम शस्य श्यामलाम मातरम की परिकल्पना करने वाले बंकिम दा आज खुश होंगें की वंदनीय भारत माता अपने स्वतंत्रता के सात दशक पूर्ण कर चुकी है। सन १७५७ से शुरू हुआ विद्रोह जो मिदनापुर से शुरू हुआ वह  बुंदेलखंड और बघेलखंड में १८०८-१२ के समय पर अपने शिखर में था। अंततः सन अठारह सौ सत्तावन जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का वर्ष माना जाता है। फिर उसके बाद चाहे बंग भंग आंदोलन हो या फिर बंगाल का विभाजन, चा फिर भगत चंद्रशेखर आजाद युग रहा हो। चाहे करो या मरो वाला अगस्त आंदोलन की बात की जाये। या फिर दक्षिण पूर्व एशिया में आजाद हिंद आंदोलन और आजाद हिंद फौज की भूमिका हो। सब इस स्वतंत्रता से अटूट रूप से जुडे हैं। आज के समय में कितना जरूरी हो गया है ,समझना कि आजादी के मायने क्या है. जिस तरह के संघर्ष के चलते अंग्रेज भारत छॊड कर गये और भारत को उस समय क्या खोकर यह कीमती आजादी मिली यह हमे हर समय याद रखना होगा. आज  ७० वर्ष के ऊपर होगया है भारत अपने विकसित होने की राह सुनिश्चित कर रहा है. वैज्ञानिकता, व्यावसायिकता, वैश्वीकरण के नये आयाम गढ रहा  है. आज के समय समाज, राज्य, राष्ट्र और अन्य विदेशी मुद्दे ऐसे है जिनके चलते स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान में पानी फिरता नजर आ रहा है. ऐसा महसूस होता है कि पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज अपने राजनेताओं के गुलाम हो गये है भारत के हर राज्य अपनी जनसंख्या बढाने में लगे हुये है. पहले जहाँ भारत की प्राकृतिक संपदा और मानव संसाधन समुचित थे यहाँ के विकास के लिये आज के समय में भारत को हर क्षेत्र में आयात ज्यादा और निर्यात कम करना पड रहा है, भारत ने जितना विकास किया और विकास दर बढाई है उतना ही भारत की मुद्रा स्फीति की दर में गिरावट हुई है. आज भारत विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आने के लिये जगदोजहद करने में लगा हुया है. आज जो भी राज्य और केंद्र की कुर्सी में बैठ रहा है वह सब अपने राजनैतिक समीकरण बनाने में लगे हुये है.आज के समय में भारत का संविधान भी सुरक्षित नहीं है.इसके साथ साथ भी खिलवाड करने , बलात्कार करने से राजनेता बाज नहीं आरहे है, आज के समय में भाषा गत मुद्दे, क्षेत्र के मुद्दे,जाति धर्म के मुद्दे इस तरह छाये हुये है कि उसके सामने देश को प्रगति और विकास के विचार विमर्श करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है.आज सिफ भारत को भौतिक रूप से आजादी मिल गयी है परन्तु सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक, आजादी के सामने भारत आज भी पाश्चात सभ्यता के पीछे घिघिया रहा है.
  राजनैतिक स्थिति यह है भितरघात से बचने की कोशिश में खुद भी भितरघाती बन जाते है. आजादी के बाद आज के समय मे एक सर्वहारा वर्ग से पूँछे की बाबा तुम्हे आजादी के पहले और बाद में क्या अंतर दिखाई पडता है तो चाहे किसान हो, मजदूर हो, बुजुर्ग हो, या कामगार हो वह सब यही कहेंगें कि पहले साहूकारों से, बिचौलियों से कर्जा लेकर अपना जीवनयापन करते थे आज सरकार घर आकर जबरन कर्जा दे जाती है. और फिर मार  मारकर वसूल करती है. आज पाश्चात सभ्यता का प्रभाव है कि दो पीढियाँ एक साथ टेलीविजन का मजा नही ले सकती है. आज के समय में सब कारक उठे है परन्तु आज के समय  में सिर्फ चारित्रिक अवमूल्यन इस तरह हुआ है कि ऐसा लगता है हर रिश्ते बेमानी से है. आज के समय मे आरक्षण की आग इस तरह फैली हुई है कि आज के समय में आरक्षित जातियाँ ही इसका दुरुपयोग करने में लगी हुयी है. अन्य जातियां भी आरक्षण की रेवडी चाटने के लिये आंदोलन और सरकारी नुकसान करने ली चेष्टा में लगी हुयी हैं। आज के समय बौद्धिक आजादी के नाम पर लोग अन्य जातियों धर्मों को गाली देने में अपनी शान समझते है. आज लोकतंत्र में तंत्रलोक मिलता नजर आरहा है. और पब्लिक प्रापर्टी को लोग अपने घर की जागीर समझ कर अतिक्रमण करने में उतारू होगये है. आज के समय सिनेमा और खेल दोनो सेंसर और डोपिंग टेस्ट की कगार में खडे हुये है. पूरा देश अपनी आजादी के गुमान और गुरूर में इतना मादक होगया है कि उसे ना अपने अतीत के संघर्ष की फिक्र है और ना इस बात का भान है कि भविष्य में भी कोई उसे फिर किसी तरीके से अपना उपनिवेश बना सकता और वो कुछ भी नहीं कर सकता है. आज के समय में भारत के पडोसी ही दुश्मन बने हुये है,. और तब पर भी भारत उनसे भाई चारे की बाँह फैलाये गले लगाने के लिये आतुर नजर आता है. इतने वर्ष होने के बाद भारत आज भी वैचारिक रूप से गुलाम है. बस गुलाम बनाने वाले अपना नकाब बदल लेते है.आज के समय में जरूरत है कि बेरोजगारी को कम करके आने वाली पीढी को आतंकवादी, अराजक, और डकैत बनने से रोका जाये, पलायन करने से रोका जाये. और यह प्रयास किया जाये कि नजर लग चुकी आजादी का अपने प्रयासों के सार्वभौमिक बनाया जाए नहीं तो. आज के जनप्रतिनिधि... प्रति जन निधि संचय करने में अपने आप के साथ साथ देश को भी विदेशियों के हाँथों बेंचते रहेंगें।
आजकल समय सापेक्ष जिस स्वतंत्रता की सबसे ज्यादा विध्वंसक स्थिति बनी हुई है, वह वैचारिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। समाज में हर वर्ग में इसके मायने बदले हुये नजर आ रहे हैं। हर क्षेत्र में विचारों के आदान प्रदान और इसकी स्वच्छंदतावादी नीति असफल नजर आ रही है। किसी वर्ग के लिये यह स्वतंत्रता वरदान शाबित हो रही है किसी के लिये यह अभिशाप के रूप में सामने आ रही है। इसकी वजह यह है कि उच्च और प्रतिस्पर्धी वर्ग अपने विचारों को व्यक्त करते समय अपना आप खोते नजर आते हैं।  आज के समय पर विचारों को जनता के सामने लाने से पहले लोगों के द्वारा सोचने की प्रवृति छोडी जा चुकी है। वैचारिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा बेडा गर्त राजनीति में हुई है। कुर्सी पा जाने का दंभ और ना पाने का क्षोभ राजनैतिक व्यक्तित्व की मिट्टी पलीत कर देता है। राजनैतिक फायदे के लिये ये लोग देश के विरोध में कुछ भी बोल देते हैं।भाषागत जूतम पैजार देखने को अधिक मिलती है।मीडिया द्वारा परोसे जा रहे समसामायिक विमर्श भी सिर्फ बहसबाजी का रूप लेकर दम टोड देते हैं। सार्थक और स्वस्थ विमर्श और चर्चा का युग जा चुका है। आज के समय में वैचारिक आजादी के मायने विचारों की लीपापोती और विचारों के माध्यम से निकले शब्दों को आक्रामक बनाकर प्रहार करने की राजनीति की जा रही है।
जब सन सैतालिस में देश आजाद हुआ उस समय की स्थिति और आज की स्थितियों के बीच जमीन आसमान का अंतर हो चुका है यह अंतर समय सापेक्ष है। आज के समय में भारतीय जनता पार्टी का सम्राज्य लगभग पूरे देश के राज्यों में फैल चुका है। और वैचारिक दृष्टिकोण भी इसी पार्टी के रंग में रोगन हो चुका है। आज के समय में राष्ट्रभक्ति की परिभाषा परिवर्तित होकर पार्टी जन्य हो चुकी है। राजनैतिक अवमूल्यन अगर गिरा है तो उसके प्रचार प्रसार को तीव्र करने के लिये समाज के पांचवें स्तंभ की भूमिका महती हो गई है। आज के समय में मीडिया के विभिन्न रूप भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं हैं। स्व तंत्र की स्थापना जिसके चलते सर्व जन हिताय की परिकल्पना लोकतंत्रीय ढांचे की नीव रखते समय की गई थी वह अब अपने परिवर्तित रूप में है। आज की राजनैतिक स्थिति यह है कि भगवाकरण में अन्य पार्टियों की अस्तित्व खतरे में। विगत तीन पंच वर्षीय में अन्य पार्टियों के पास राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व का आभाव है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी दलों ने अपने अपने कुनबों में कैद कर लिया है। क्षेत्रवाद के चलते देश का विभाजन कई राज्यों में हो गय है। हमारा देश टुकडों में अपना अस्तित्व खोज रहा है। भारत अपने पडोसी देशों के ही असुरक्षित है। चीन, पाकिस्तान, जैसे दुश्मन हमारी सरकार ने दोस्तों के रूप में गढा है। हमारे भितघातियों का हाल यह है कि दुश्मन देशों के साथ मिल कर हम सबकी अखंड स्वतंत्रता को खंडित कर दिया है। भारत भूमि को माता मानने वालों का कलेजा दर्द से फटा जा रहा है क्योंकि भारत आजादी के सात दशक बाद किस स्थिति में पहुंच चुका है। अंततः हम स्वतंत्र तो हैं। परन्तु स्वमेव तंत्र जन हितों की बजाय राजनैतिक हितों को सिद्ध करने में लगा हुआ है।यह हमारी आजादी के सत्तर दशकों का विधान है। परन्तु इस बात का हमें गर्व होना चाहिये कि हम स्वतंत्र भारत में पैदा हुये।
अनिल अयान

९४७९४११४०७

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