शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

बसंत के बहाने निराला की याद

बसंत के बहाने निराला की याद
जब फूलों  पर बहार आजाये, गेहूं की  बालियां नृत्य कर्ने लगे, आमों के पेडों में बौर करलव करने लगे, तितलियां फूलों पर मोहित होले लगे तब मानिये कि बसंत आ गया है। माघ का महीना आये और पंचमी के दिन उसका अर्ध्य पूर्ण हो तो मानिये बसंत है। ऋषियों की पंचमी का उद्धरण बसंत में ही उल्लेख होता है। सूर्य से लेकर धरा तक, मनुष्य से लेकर पशु पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। मां सरस्वती का जन्मदिवस के रूप में भी यह दिवस मुख्य रूप से मनाया जाता है। हर कला का साधक इस दिन को अपने आराध्य का दिन मानता है। इसी दिन पृथ्वीराज चौहान की आंखें मोहम्मद गौरी ने फोड़ा था।यह घटना ग्यारह सौ बानवे ईश्वी ही है। और इसी दिन ही अमर विभूति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म दिन भी आता है। इस दिन जहां एक ओर मदनोत्सव  मनाया जाता है भगवान श्री कृष्ण और काम देव की पूजा होती है। कामशास्त्र में सुवसंतक नाम के उत्सव की चर्चा इसी समय के लिये किया है। अर्थात इसी दिन बसंत पृथ्वी पर अवतरित हुआ था। सरस्वतीकंठाभरण में यह लिखा है कि यह बसंतवार का दिन है। इसी दिन काम देव के पंचशर -शब्द, स्पर्श,रूप, रस, और गंध को आमंत्रित किया जाता है। चैंत्र कॄष्ण पंचमी को बसंतोस्तव का अंतिम दिन रंग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
मां सरस्वती सृजन की अधिष्ठात्री देवी है। पुराणों में लिखा है कि बसंत को ऋतु राज कहा गया। देवो के अलावा साहित्य महामानव,छंदशास्त्री, महाप्राण कवि निराला के जनमदिन को हम सब बसंत पंचमी के दिन ही तो मनाते हैं।डा रामविलास शर्मा ने लिखा कि जब निराला को पता चला दुरालेलाल भार्गव बसंत पंचमी को अपना जन्मदिन मनाते हैं तो उन्होने निश्चय किया कि वो भी अपनी आराध्या के उत्सव के दिन अपना जन्म दिवस मनायेगें। बसंत उनके गीतों छंदों में झूमता है। अवतरित होकर बसंत अपना वरद हस्त उनकी रचनाओं में रखने में सफल होता है। वो लिखते हैं कि - फूटे रंग बासंती गुलाबी/ लाल पलास, लिए सुख,स्वाबी/  नील स्वेतशतदल. सर के जल/ चमके है केशर पंचानन में।" रक्त संचार में भी बसंत का आवेश समाजाता है। कबीर हो नानक हों सूर हो मीरा हो किसी ना किसी रूप में बसंत का वर्णन अपने शब्दों में करके मां सरस्वती का आराधन किया है। वो बसंत ही था जब निराला की कविता तुलसी दासमें रत्नावली को शारदा सरस्वती के रूप में पल्लवित किया। निराला की मां वाणी वंदना में देवी सरस्वती से भारत की स्वतंत्रता को साकार और संस्कार युक्त बनाने का वर मांगते हैं। वो मुक्ति की इच्छा के साथ प्रार्थना कुछ ऐसे करते हैं- नव गति, नव लय, ताल, छंद नव,/ नवल कंठ, न्व जलद मंद्र रव/ नव नभ के नव विहग वॄंद को। नव पर नव स्वर दे।" "भारति, जय,विजय करे,कनक शस्य कमल धरे"।
बसंत ने जो अमर संगीत प्रकृति के माध्यम से दिया है। वो कला और सौंदर्य को और पुष्पित किया है। निराला बसंत दूत के रूप में दैदीप्तमान रहे।निराला ने जीवन भर आभाव रस पिया किंतु भाव उनके अभावों के बीच पोषित होता रहा। रविवार को जन्म होने के साथ उनका नाम सूर्यकांत रखा गया था। उनके अंदर प्रकाश पुंज, उष्मा,और तेज विद्यमान था। उनकी जीवन शैली हमेशा अभिषापों को झेलने वाली ही रही। वो अक्खड, स्वाभिमानी, परदुख कातर बन कर जीवन भर रहे। निराला एक शैली, एक छंद, एक काव्य का नाम बन गया। निराला ने जीवन को सशक्त त्रिभुज के रूप में जिया। निराला ने राम के असहाय और शक्ति के आराधन के छण को पकड़ा और राम की शक्तिपूजा की रचना की।छायावाद के के चारो स्तंभों में निराला ने ही कविता के सबसे ज्यादा और स्तरीय पाठक पैदा किये। वो भक्ति से शक्ति की बात करते हैं। वो धर्म से आध्यात्म और आध्यात्म से एकात्म की बात करतेहैं। निराला के विवाद और विवाद के बीच से निकलते निराला अपने आप को सूर्य की भांति कांतिमय बनाये रखने में सफल रहे।

अनिल अयान,सतना

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