शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

मध्यान भोजन निगलते जहरीले अजगर.



सरकारी स्कूल कई मायनों मे हमेशा बदनाम रहे है इसमे से दो प्रमुख वजहों मे पहली ,खराब परीक्षा परिणाम का रोना और दूसरा मध्यान भोजन मे अनियमितता का रोना. पहली अव्यवस्था का सिर्फ़ मई से जून तक ही रोना रहता है. परन्तु मध्यान भोजन का केश तो हर रोज ही समाचार पत्रों की शुर्खियों मे बना रहता है.और यही इसकी नियति है. अब क्या किया जाये. जिस घटिया भोजन को ये नन्हे मुन्हे बच्चे पचा नही पाते वह भोजन किस तरह इस स्व सहायता समूहों की और शिक्षा विभाग की पेट की आग बुझाता है. यह समझ के परे है. क्या इन्हे अपच नहीं होता  है. क्या इनको हाजमोला की गोलियों की आवश्यकता नहीं पडती है. ना जाने किस मिट्टी से बने है ये जहरीले अजगर. मध्यान भोजन का विचार मेरी समझ के परे है. इसका क्या योगदान है बच्चों को स्कूल  मे लाने हेतु आकर्शित करने मे. बच्चे खाना खाने की लालच मे स्कूल पढने आयेगे.और पूरे दिन भर पढ कर जायेगे. ऐसा सम्भव नहीं है. इस तरह के उपाय सिर्फ़ गरीबी रेखा के नीचे बसर कर रहे लोगो के लिये कारगर हो सकते है परन्तु उससे ऊपर यह अप्रभावी हो जाते है. और जो बच्चे इसका लाभ लेने आते है उनमे से शतप्रतिशत मे थोडा कम सिर्फ़ मध्यान समय मे भोजन ग्रहण करने ही विद्यालय आते है. फ़िर अपने घरवालों के साथ काम मे वापिस चले जाते है.यही तो रोना है इस प्रणाली का जिसके चलते. पढाई लिखाई के नाम पर कितने करोडों का बजट पानी मे बहा दिया जाता है और परिणाम सिर्र शून्य ही आता है. जिस कक्षा तक मध्यान भोजन की योजना लागू है वहां परिणाम बनाया जाता है ताकि किसी की वेतन इंक्रीमेंट ना रुके.ये भी सच है कि इस तरह की योजनाओं का परिणाम यह होता है कि बच्चों के कंधों मे बैग की बजाय सिर्फ़ हाथों मे थाली गिलास और कटोरी होती है. जब मै सोहावल ले शिक्षा महाविद्यालय मे अपनी सेवायें दे रहा था तब मैने महसूस किया कि महाविद्यालय के पीछे बने एक शासकीय प्राथमिक विद्यालय की स्थिति यही थी वहां बच्चे सिर्फ़ और सिर्फ़ भोजन ग्रहण करने ही आते थे.और शिक्षिकाय़ॆं भी सिर्फ़ भोजन वितरण करवाने ही आती थी. खाना बनाने वाली सिर्फ़ ११ बजे से ३बजे तक अपनी सेवाये दिया करती थी. लगभग ये हाल सभी इस तरह के विद्यालयों का है. और इसमे बदलाव की गुंजायिस बिल्कुल भी नहीं है.
   मध्यान भोजन ने सिर्फ़ छात्र संख्या मे बढोत्तरी की है बस ना परीक्षा परिणामो मे बढोत्तरी हुयी और ना ही पढाई के स्तर मे ये तो सिर्फ़ गर्त मे ही हर वर्ष गये  है. और सरकारी योजनाये सिर्फ़ मुंह बनाकर सभी पालकों को. शिक्षा को और इस व्यव्स्था को सरे आम उल्लू बनाये जा रही है. इस योजना का सुपरिणाम जो भी रहा हो, जितना बेहतर रहा हो, परन्तु दुष्परिणाम यह रहा की बच्चो को आहार की पौष्टिकता से दूर कर दिया गया, स्कूल मे फ़ालतू के अन्य समूहों का दखल बढ गया. शिक्षकों को वैसे भी पढाने की फ़ुरसत नहीं थी अब तो एक और बहाना मिल गया. अब बच्चों को और आजाद कर दिया गया कि जाओ और खाओ पियो ऐश करो. ऐसी स्थिति मे जब बच्चे की बुनियाद ही खाने पीने और खेलने की नींव के ऊपर बनेगी तो यह तो तय है की बडी कक्षाओं मे वो शिर्फ़ रट्टू तोता की तरह हो जायेगे. यह भी सच है कि मध्यान भोजन की योजना सिर्फ़ इसलिये बनायी गयी की यदि बच्चों को स्कूल मे ही पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जायेगा तो सभी बच्चे एक समान रूप से भोजन ग्रहण करेगे और समय की भी बचत होगी. परन्तु यह योजना धरी की धरी रह गयी. अब तो भोजन मे कीडे मकोडे और अन्य जीव जन्तु मिलने लगे है. दाल से दाल और सब्जी से सब्जी गायब होने लगी है उसी तरह इस व्यवस्था के अजगरो के अन्दर का ईमान गायब होने लगा है. ये सब कभी नहीं सोचते है कि सरकार जिस बात की तन्ख्वाह इन सबको दे रही है कम से कम उस काम को तो सही ढंग से करें उसमे भी कोताही बरतने का जो जुनून इन सब तथाकथित आला अफ़सरों और स्वसहायता समूहों के द्वारा मध्यान भोजन तक को अपने जहर से जहरीला बनाने का काम बखूबी अंजाम तक पहुचाया जा रहा है वह योजनाओं मे झाडू लगाने और पूरे समाज मे आने वाली पीढी को बेवकूफ़ बनाने के अलावा कुछ भी नहीं है. इस योजना मे जो भी बजट खर्च करने के  लिये आता है वो सिर्फ़ कुछ प्रतिशत ही खर्च होता है. बाकी तो सब इस अजगरों की पेट की आग बुझाने के लिये भी कम पड जाता है. राशि आवंटन से लेकर अनाज आवंटन तक, फ़िर अनाज को कच्चे से पकाने तक मे सिर्फ़ और सिर्फ़ निगलने की प्रक्रिया होती है और इसी तरह ये शतरंज का खेल शह और मात के साथ हर साल चलता रहता है. राजधानी से स्कूल तक यह योजना भी अपना रूप स्वरूप बदल लेती है.या ये कहूं कि सिर्फ़ और सिर्फ़ मुखौटे लगा लेती है, तो गलत नहीं होगा. इन सब परिस्थितियों के चलते यदि सरकार यही मध्यान भोजन का अनाज सिर्फ़ उन बच्चों को दे जो पूरे दिन उपस्थित होते है और सीधे अनाज ही मुहैया कराये तो इस तरह के कारनामों मे कुछ तो लगाम लगेगी. नही तो वह दिन दूर नही होगा जब डसने वाले सांप जो आज भोजन निगल रहे है वो आने वाले कल मे बच्चों को ही निगल जायेगे.

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