रविवार, 8 सितंबर 2013

ध्यान कुटिया में ज्यादा ध्यान का परिणाम; आशाराम

ध्यान कुटिया में ज्यादा ध्यान का परिणाम; आशाराम
आसाराम की गिरफ्तारी को लेकर जिस तरह का ड्रामा हुआ और वे तमाम राज्यों में खुलेआम घूमते रहे, उसके बाद क्या सामान्य जांच के जरिए पीड़िता को न्याय मिल जाएगा या फिर इसके लिए सीबीआई जांच करवानी चाहिए? इस पर पूर्व सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह का कहना है कि सीबीआई के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है, यदि कोई गवाह ही अपनी जबान नहीं खोलेगा तो सीबीआइ क्या कर लेगी? उनके अनुसार, भारत का कानून इतना लचीला है कि गवाह बड़ी आसानी से खरीदे जा सकते हैं, साथ ही गवाहों की सुरक्षा का कोई कानून यहां नहीं है। यदि यह केस भी चंद्रास्वामी और चारा घोटाले की तरह लंबा खिंचता है तो निश्चित रूप से यह मामला प्रभावित हो सकता है। आसाराम की गिरफ्तारी को लेकर जहां तमाम संगठन और आम जनता सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थी, वहीं उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने इसके खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं।कभी निकट रिश्तेदार की मौत, तो कभी बीमारी का बहाना, यहां तक कि प्रवचन में व्यस्तता भी उन्हें गिरफ्तार होने से नहीं बचा पाई। गिरफ्तारी वाले दिन तो वह अपने ही आश्रम में भूमिगत हो गए थे। गिरफ्तार होने से पहले आसाराम और उनके बेटे नारायण साइं पूरे दिन कोई न कोई बहाना बनाते रहे। नारायण साइं ने मीडिया को बताया कि उनके बापू को ट्राइजिमीनियल न्यूरॉल्जिया नामक बीमारी है। इस बीमारी की वजह से उनके चेहरे में दर्द रहता है और वे पिछले १३ साल से इस बीमारी से ग्रसित हैं।सत्ता पक्ष और विपक्ष पर बाबा का दबदबा इस तरह से भी समझा जा सकता है कि जिस कांग्रेस हुकूमत वाले राजस्थान के जोधपुर में उन पर यह गंभीर आरोप लगता है, वहां से वे बड़ी आसानी से निकलकर भाजपाई मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात, फिर कंग्रेसी मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण के महाराष्ट्र, फिर भाजपाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश की लगातार यात्रा करते रहे लेकिन पुलिस उन्हें बजाय गिरफ्तार करने के वीआइपी ट्रीटमेंट देती नजर आई। बाबा के बचाव को लेकर जब भाजपा भी सवालों के कठघरे में खड़ी हो गई तो नरेंद्र मोदी की तरफ से आननफानन में भाजपा नेताओं को आसाराम के संबंध में मौन साधने का आदेश जारी हुआ। भाजपा नेताओं के बयान से हुई किरकिरी को दूर करने के लिए उन्होंने आसाराम पर इशारों ही इशारों में सवाल उठाए लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दरअसल जिस आसाराम को तमाम राज्यों की भाजपाई सरकार मुख्य अतिथि के रूप में पूजती रही हो, उनके लिए अचानक गंभीर आरोपों से घिरे आसाराम न तो निगलते बन रहे थे और न ही उगलते। उधर कांग्रेस भी इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी। यही कारण था कि राहुल गांधी को बबलू और सोनिया गांधी को विदेशी मैडम बताने वाले बाबा से सीधे-सीधे पंगा लेने की बजाय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शुरू से यही रट लगाते नजर आए कि कानून अपना काम करेगा हालांकि आसाराम की गिरफ्तारी के बाद उनके तेवर कुछ सख्त हुए और उन्होंने लोगों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की कि यौन उत्पीड़न मामले की निष्पक्ष जांच होगी और संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होगी।आज से पहले भी यहाँ देखा गया है की भारत देश में कथा वाचक और ढोंग से परिपूर्ण अन्य प्रजाति के मनुष्यों को जो धर्म के नाम पर व्यापार करते है उन्हें यहाँ की महिलाए और अन्य सभी वो लोग जो धर्मं को मानवीयता से श्रेष्ठ समझते है दिन रात पूजते है और इतना विश्वास करते है की अपनी जान और अस्मिता भी देने से कोई परहेज नहीं करते है . आज के समय में मीडिया भी कही ना कही  इन्हें पब्लिक फिगर बनाने और पब्लिक के बीच में अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिए बहुत इस्तेमाल करते है. और इनको गिराने का  काम भी कहीं ना कही यही चैनल करते है. आशाराम जैसे बहुत से केश मैंने अपने आसपास देखा है परन्तु इसका परिणाम क्या होता है. भोली भली जनता कुछ महीने के बाद आई गयी मान कर फिर से यही शुरू कर देती है यहाँ बाबा ना सही तो कोई और बाबा. बाबा रामदेव का खुल कर मुखरित होना और फिर संतो का बेबाकी से बोलना कहीं न कही आशाराम को मुसिबत में डालेगी ही. परन्तु यहाँ यह भी सच है की आज यदि हम थोडा सा जागरुक होकर धर्म को समझे तो आज के समाया में किसी की जरूरत नहीं है सब धर्मशास्त्रो में वर्णित है और रहे बात शांति की तो वह हमारे कर्मो से बनती है ना की बाबाओ के शरण में जाने से. उनकी शरण में जाकर सिर्फ बीच मझधार का जीवन हे जी सकते है और कुछ नहीं . मीडिया को चाहिए की इस के आलावा भे देश के अन्य मुद्दे है उसे भी पब्लिक से जोड़े अन्यथा वो भी कही न कही धर्म के साथ बलात्कार कर रही है और जनता के साथ भी.

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