मंगलवार, 14 मार्च 2023

अंतर्मन की आवाजें हैं कविताएँ

 अंतर्मन की आवाजें  हैं कविताएँ


विश्व कविता दिवस इक्कीस मार्च के अवसर पर


कविता कब और कैसे जन्म लेती है, कविता की सांद्रता को महसूस करके देखिए, कविता महर्षि बाल्मीकि के उस श्लोक से जनमी होगी जो क्रोंच पक्षी के मैथूनरथ होने के समय पर शिकारी के तीर से भेदने के पश्चात उत्पन्न पी़ड़ा का उन्वान बनी होगी। कवि गोपाल दास नीरज ने कहा कि कविता का सौंदर्य मानव हृद्य से कवि बनने की पराकाष्ठा तक की यात्रा में है। उनके अनुसार आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य, मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य। हमारे अंतर्मन की भावभंगिमाएँ जब अपने सर्वोच्च शिखर में पहुंच जाती है, मन उद्विग्न हो जाता है जब कविता की धारा बह निकलती है। कविता की उत्पत्ति ही यह निश्चित करती है कि व्यक्ति कितनी पीड़ा व अवसाद को महसूस कर रहा है, वह किस हद तक अंतर्मन से टूट रहा है। उसने कितना कुछ सहा है। 


आम जन के हृदय से कविता क्यों नहीं निकलती है। क्योंकि उसके पास किसी घटना, किसी वस्तुस्थिति को अनुभव करने, एहसास करने और आँख मूँदकर महसूस करके एकात्म होने का समय ही नहीं है। लिखने की परंपरा त्वरित परंपरा है। इसमें सोचने समझने की लंबी प्रक्रिया नहीं होती है। कोई कवि अचानक ही कोई दृश्य देखकर खुश होता है, दुखी होता है, या फिर क्रोधित होकर आक्रोश से भर जाता है। कविता का उद्भव ही भावों का तीव्र प्रवाह होता है। इस प्रवाह के प्रभाव में जो कुछ लिख जाता है वह काव्य हो जाता है। यह काव्य यदि तुकांत हो गया, लय बद्ध होगया, रसयुक्त हो गया, छंद बद्ध हो गया, गेय हो गया तो कविता पैदा हो गई। वह काव्य यदि इन बंदिशो को तोड़कर मुक्त हो गया तो निबंध हो गया। कहानी, व्यंग्य और नाटक उपन्यास का रूप ले लिया।


कवि हृदय होना भी ऊपर वाले का उपहार होता है, हर किसी को यह उपहार या वरदान नहीं मिलता है, लेकिन जिस मानव मन को यह नसीब हो गया, उसको दुख-सुख बाँटने का सबसे बड़ा साधन लिखना ही लगता है, उसे कोई साथी मिले ना मिले कोई फर्क नहीं पड़ता, कविता लिखना अर्थात विचलित मन की शांति की पराकाष्ठा है। इस पराकाष्ठा में एक चेतन मन की अवचेतन मन अर्थात चित्त से मिलन होता है। वो सब कागज में उकेरता चला जाता है जो मन के धरातल में उपस्थ्ति है। इस उपस्थित भावों का वेग शब्दों के रूप में कागज पर लिखावट बनता चला जाता है। तुकबंदी से शुरू हुई यात्रा शब्दों की जादूगरी के जरिए आगे बढ़ती है। यह यात्रा विभिन्न भाव पक्ष और कला पक्ष के माध्यम से कवित्व को चरम पर ले जाती है। कविता का प्रवाह अंतर्मन से बाह्य वातावरण को आंदोलित करते का काम करता है। कविता की सार्थकता सिर्फ आपबीती को शब्द देना नहीं है बल्कि आपबीती से होते हुए जगबीती को धारण करना है। कविता एक ओर जहाँ लिखने और पढ़ने वाले को संतोष देने का काम करती है वहीं विभिन्न विद्यरूपताओं को भी सामने लाती है। कविता अपने अंदर यदि समंदर की खामोशी को समेटे हुए है तो नदी के तेज प्रवाह को भी धारण किए हुए है। कविता लिखना हृदय और मस्तिष्क की साधना है। ताकि दिलोदिमाग की कसक को उकेरा जा सके।


कविता का सौंदर्य कितना गहरा हो सकता है यह कवि के लेखकीय कौशल और पाठक की उस कविता के प्रति अंतर्भाव पर निर्भर करता है। कविता छंद बद्ध हो, या छंद मुक्त यदि उसमें सच को धारण करने की छमता है तो कविता को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है, पढ़ा जा सकता है और मनन किया जा सकता है। कविता से आंदोलन, और क्रांति पैदा करने की आशा करना भी सही माना जा सकता है। इतिहास गवाह रहा है कि कवियों की कलम से निकली कविताओं ने गीत का रूप लेकर आंदोलन के मुख्य स्वर के रूप में सामने रहीं। कविता ने हिन्दी ही नहीं बल्कि अन्य भाषाओं को विश्व पटल मे जन जन तक पहुँचाया है। विश्व कविता दिवस सन उन्नीस सौ  निन्नायनवे के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में सुनिश्चित हुआ। कविता का महत्व विश्व शांति और सौहार्द में बना रहे इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ इस दिवस को मनाता है। वैश्विक शांति के लिए कविता भी एक माध्यम बन सकती है एक कारक हो सकती है। यह विश्व ने स्वीकार किया। यह स्वीकृति तो भारत ने पहले से दे रखी है। भारतीय इतिहास और परिदृश्य में यदि नजर ड़ालें, और पुराने इतिहास के पन्ने पलटने पर देखा जा सकता है कि स्वतंत्रता के पूर्व भारतीय राजव्यवस्था में यदि रत्नों की बात की जाती थी तो कवियों का वर्चश्व रहा है। कवियों ने वीरगाथाएँ भी गई है, भक्ति की बागडोर भी सम्हाली है, कवियों ने प्रकृति वर्णन भी किया है और कवियों ने आन्दोलन भी खड़ा करने में चाणक्य के रूप में उपस्थिति दर्ज की है। 


कविताएँ और शब्दों की कसीदाकारी का हुनर जितना पुराना होता जाता है, भावों की गहराई शब्दों के साथ उतरती चली जाती है। इसमें तुरपाइयाँ नहीं होती है, इसमें बुनावटें होती हैं, इसमें एक एक शब्द एक एक रेशे के समान अपनी अहमियत रखता है। कविताओं की आवश्यकता इसलिए भी है ताकि हम आत्म अवलोकन कर सके, जग अवलोकन कर सकें, और अवलोकन के बाद की यात्रा पूरी करते हुए काव्य को जन्म दे सकें। काव्य ब्रह्म का रूप माना गया है, इसको साधनों के माध्यम से साधना जरूरी है, शब्दों की जादूगरी विध्वंशक ना हो जाए इसलिए नियंत्रण की आवश्यकता भी है। हर परिदृश्य की अपनी सीमा है, सीमा पार करने के बाद कविता का सृजन दोषपूर्ण बन जाता है। इस सीमा रेखा को पहचानना कवि की सूझ बूझ पर निर्भर करता है। समर्थ होना एक पहलू है और विवेकशील होना दूसरा पहलू। दोनो पहलुओं के बीच में से कविता की उत्पत्ति हो यह समय की माँग है। आवेग के वेग में संवेग बनाए रखना जरूरी है। वर्तमान समय की माँग है कि हम जहाँ रह रहे हैं वहाँ की आवोहवा को परखते हुए कवि का दायित्व पूरा किया जाए। साहित्य में शब्द शक्ति बनी हुई हैं, जो पूर्व प्रदत्त हैं, लक्षणा में बात न करके अविधा में बात करना आवश्यक है। अन्यथा आपने द्वारा रचित साहित्य शासकों के सौजन्य से विष उत्सर्जी साहित्य की श्रेणी में घोषित कर दिया जाएगा। आपके लेखन पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया जाएगा और आपको कलम रखने को मजबूर कर दिया जाएगा। 


हर कलमकार को इस बात का भान होना चाहिये कि हम जिस देश के नागरिक है उसकी नागरिकता खतरे में ना आ जाए, विश्व कविता दिवस में इसका अवलोकन, खुद के लेखन को खंगालने का समय है। यहाँ पर कविता के माध्यम से भाईचारे, निरपेक्षता, संस्कृति संरक्षण की बात की जा सकती है, किन्तु प्रगतिशीलता और राष्ट्रविरोधी स्वर के रूप में पहचान स्थापित नहीं की जा सकती है। शासक यदि मुखर है तो बुद्धिमानी इसी में है कि कविता का सीधा होना बौद्धिक अपराध की श्रेणी में आएगा। कलमकार बौद्धिक अपराधी घोषित कर दिया जाएगा। आपका बुद्धिजीवी होना, बुद्धि का वमन करना, और आपका कवि होना आपके लिए श्राप हो जाएगा। कविता से विष निकलना है  या अमृत यह तो अमृत काल के कलमधारी कवि को सुनिश्चित करना है। इस अवसर पर विश्व कविता दिवस की आत्म अवलोकन हेतु शुभकामनाएँ देते हुए इतिश्री करता हूँ।


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