शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

जातिगत आरक्षण के कोल्हू में पेरी जाती जनता

जातिगत आरक्षण के कोल्हू में पेरी जाती जनता

आरक्षण, आरक्षित वर्ग, आरक्षित नेता, आरक्षित पद, आरक्षित लाभ आदि आदि ना जाने कितने तमगे हैं जो हमारे देश में विभिन्न प्रकार के वोटरों को प्रदान किए जाते हैं। ये सुविधा संविधान के निर्माताओं के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कुछ सालों के लिए प्रदान की गई थी और देखिए कि आज सत्तर दशक होने के बाद भी यह कोढ़ देश में अपना आधिपत्य जमाये हुए है। कोढ़ इसलिए क्योंकि यह आरक्षण जातिगत आधार पर देश के नागरिकों को सरकारों के द्वारा परोसा जाने लगा। पंचवर्षीय योजनाएँ बदली किंतु इस सुविधा को असुविधा बनाने की जुगत और मजबूत करने की कोशिश करती गई।समय के साथ इस आरक्षण की जड़ें और गहरी होती चली गई, जातियाँ,समुदाय और धर्म कमजोर से मजबूत और धनी होते चले गए किंतु आरक्षण की सुविधाभोगी बनने में  उन्हें गर्व महसूस होने लगा। आर्थिक रूप से कई गुना मजबूत लोग भी आरक्षण के तवे में सेंकी गई रोटियों को निगलने के लिए सिर झुकाए तैयार खड़े नजर आए। सरकारों ने आरक्षण को चुनावी दुधारी औजार की तरह इस्तेमाल करने की आदत डाल ली। समय गुजरने के साथ साथ इस तलवार से जातिगत समीकरण भी साधा जाने लगा और दूसरी तरफ आरक्षित जातियों और वर्गों का वोटों की गणित को भी अपने पक्ष मे रखने का रवैया अख्तियार किया जाने लगा। आरक्षण को विगत कई सालों से स्टॆटस सिंबल बनाकर राजनीति में राजनैतिक पार्टियों ने इस्तेमाल किया। कौन सी पार्टी किन जातियों को आरक्षण प्रदान करेगी वो ही उन जातियों के लिए गॉड फादर की तरह बनती चली गई। आरक्षण की आग को बुझाने की बजाय जो इस सत्ता में आया वो इसे और हवा दिया, उसमें कपूर और घी डाला गया, मिट्टी का तेल और पेट्रोल डाल कर समाजिक सौहार्द को खत्म करने की साजिश भी रचने में परदे के पीछे से पूरी तरह से सहयोग करती रही।
आरक्षण का उद्देश्य’ जो संविधान में निश्चित किया गया, उसके परे वर्तमान में आरक्षण का प्रभाव समाज में दिख रहा है, किसी भी बच्चे के पैदा होने के पहले से आरक्षण लागू हो जाता है, उसके पैदा होने, उसकी परवरिस, उसकी शिक्षा, उसकी नौकरी, उसकी शादी ब्याह, उसके बाल बच्चों के पोषण,जीवन यापन और मरने के बाद आगामी पीढियों तक के लिए आरक्षण लागू हो जाता है, आरक्षण के अलावा दी जाने वाली योजनाओं के लाभ सब आरक्षित वर्ग के लिए ही बने हुए हैं, आर्थिक आधार पर कमजोर तबका चाहे वो किसी भी वर्ग जाति धर्म का हो वो इस आरक्षण से कोसों दूर है, पढ़ाई, नौकरी, प्रमोशन, और सेवानिवृति को लेकर तक आरक्षण की गाड़ी मौजूद है। सरकारों के रवैये ने कार्यपालिका में क्रीम और डिशीजन मेंकिंग पोस्ट तक के लिए आरक्षण को ढ़ाल बनाया हुआ है। आने वाली नश्लों को बर्बाद करने का पूरा जिम्मा आरक्षण से आगे आने वाले अधिकारियों ने ले रखा है जिनके पास पहुँच तो है किंतु उस क्षेत्र का अनुभव बहुत कम है। जितनी भी सरकारे हैं वो आरक्षित वर्गों के सहारे चुनाव जीतने की कोशिश करती हैं, यह देखा जाता है कि विधायिका के किसी स्तर के चुनाव में आरक्षित जातियों के उम्मीदवारों की दावेदारी और आर्थिक स्तर सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों की तुलना में अधिक होता है, अब तो आरक्षण को खत्म करना दिवास्वप्न की तरह है। वो दिवास्वप्न जो कभी पूरा नहीं किया जा सकता है। क्योंकि आरक्षण यदि खत्म तो राजनीति और सत्ता अपाहिज की तरह निस्तोनाबूत हो जाएगी। राजनैतिक पार्टीयाँ निहत्थी हो जाएगी। आरक्षण की आग ने कितने ही तबको की बस्तियाँ नष्ट कर दी हैं, इसके चलते कितने ही विभागों के अधिकारियों के जेबों का वजन हमेशा बढ़ता रहता है।
जातिगत आरक्षण को खत्म करना ही हमारे समाजिक हित में है और समाजिक ढ़ाचे को मजबूत करने के लिए बहुत जरूरी है, आर्थिक सर्वे के आधार पर हर जातियों के लिए गरीबी रेखा निश्चित होनी चाहिए, न्यूनतम वेतन और मासिक वेतनमान के हिसाब से आरक्षण देश को विकास के पथ में अग्रसर करेगा, इस तरह के आरक्षण में रोटी कपड़ा और मकान , बेहतर जीवन शैली जीने के लिए अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, सामान्य वर्ग और अन्य अल्प संख्यकों की वो जनता लाभान्वित होगी जिनको हकीकत में सरकार की मदद की आवश्यकता है। जिनको जीवन यापन करने  के लिए सरकार के अभिभावकत्व की महती जरूरत आज भी है। जब सरकारों की घोषणाएं सुनने में आती हैं कि हम आरक्षण खत्म नहीं कर सकते हैं, तो लगता है आप ही आरक्षण खत्म कर सकते हो, और जातिगत आरक्षण को आर्थिक आरक्षण नीतियों में परिवर्तित करना है। आरक्षण का स्वरूप बदलना है, जब आप योजना आयोग को नीति आयोग का लबादा पहना सकते हो तो फिर आरक्षण को सही तरीके से सही जगह क्यों नही लागू किया जा सकता है। चुनावों के समय में, सत्ता पक्ष का विधानसभा चुनावों में अनारक्षितों को माई के लालों के रूप देकर जातिगत आरक्षण की हुंकार भरना और उन्हें खुली चुनौतियाँ देना ही सत्ता पक्ष को मंहगा पड़ा और पहले भी मंहगा पड़ा था। लोकसभा चुनावों की नजदीकियों को भांप करके केंद्र सरकार का पुन जातिगत आरक्षण की मीठी गोली चूसवाने की योजना अनारक्षित वर्ग बखूबी जानता है। कुछ महीनों में सरकार कुंभकर्णी नींद से जाग रही है, सरकार के चार साल और छः महीने जातिगत आरक्षण की गुणाभाग और जोड़ घटाने में निकाल दिए गए।
इस आरक्षण को असंवैधानिक रूप से देखा जा रहा है, किन जातियों के आरक्षण को कम करके सरकार दस प्रतिशत आरक्षण की बात कर रही है, और इस कानून के बनने में जटिलताओं का अनुभव, विपक्ष की युक्तियँ, उनकी सरकार में आरक्षित वर्ग का विरोध, कैसे सध पाएगा। यह सब अभी सरकार के द्वारा सरकार को अगली पंचवर्षीय में काबिज करने और घोषणा को पूरी करने की राजनैतिक नीति है। मुझे लगता है कि अगर सरकार हर राज्य में आर्थिक ढ़ांचे के हिसाब से आरक्षण का प्रावधान निश्चित करे और जनता को प्रदान करे तो जातिगत नीतियाँ की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसके लिए सरकार और विपक्ष को साथ चलकर देश की जनता की आर्थिकी और देश के आर्थिक ढ़ा़चे को मजबूत करने हेतु सामन्जस्य बिठाकर निर्णय लेना होगा। इस हेतु कार्य पालिका न्याय पालिका और विधायिका के साथ साथ आर्र्थिक जनगणना का इस हेतु इस्तेमाल करना,आयकर विभाग के द्वारा सही जानकारियाँ प्राप्तकरके आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए आरक्षण नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन की आवश्यकता है। इस हेतु सरकार के द्वारा हर जगह उपयोग किए जाने वाले आधारकार्ड के माध्यम से भी काफी मदद मिल सकती है। कुछ मिलाकर सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि अगर सरकार यह घोषणाओं को अपने लाभ के हिसाब सेकरने की बजाय, पूरी तरह से तैयारी करके क्रियान्वयन करने की घॊशणा करे तो देश की जनता का उत्थान भी होगा, जनता का सरकार को समर्थन भी होगा, और अनावश्यक जातिगत गुणाभाग से निजात भी मिलेगी।

अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

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