शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

क्या करें जब अपने ही विभीषण हो जाएं

क्या करें जब अपने ही विभीषण हो जाएं
भारत की सरकारें बदलती हैं पर आतंकवाद और आतंक का पर्याय कभी नहीं बदलता है। धर्म के नाम पर आतंकवादी, दहशतगर्द अपने तथाकथित जेहाद को अंजाम देने के लिए सरेआम कत्लेआम करते हैं। यह कत्लेआम या तो सेना और सेना के जवानों के ऊपर बंब ब्लास्ट करके, या फिर वाहनों को अपहरण करके, या फिर जान माल को नुकसान पहुंचाकर, या फिर पूरे इलाके को अपने कब्जे में लेकर भारत को अपनी मांगों को मनवाने के लिए मजबूर करने की शाजिश रची जाती है, जम्मू और काश्मीर समस्या जितना ज्यादा पाकिस्तान से संबंध रखती हैं उतना ही चीन भी इस में आँख गड़ाए बैठा रहता है। जब से भारत ने अपनी आजादी पाई है तब से आज तक भारत और पाकिस्तान के युद्ध, और भारत के साथ चीन के हुए युद्ध इस बात के गवाह रहे हैं कि जम्मू काश्मीर भारत के लिए वो गले ही हड्डी बन गई है जिसको ना निगल पा रहे हैं हम और ना ही उगल पा रहे हैं हम, इस मध्यस्थ स्थिति में हमारी अर्थव्यवस्था के सहयोग से चलने वाले जम्मू और काश्मीर शासन हमारा ही विरोध करते हैं। वहाँ पर चाहे जिसकी भी सरकार हो वो भारत की नीतियों का विरोध हमेशा से करती रही हैं। कभी यह विरोध खुले आम किया जाता रहा है और कभी यह विरोध आवाम के द्वारा और जेहादियों की मदद से किया जाता रहा है। सरकारें वोट तंत्र की राजनीति के चलते कुछ ऐसा फैसला लाने में असफल रही हैं कि काश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाए या पूरी तरह से भारत के साथ संविलियित कर लिया जाए।
कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की सरकार हर शासन काल में रक्षा मंत्रालय कहीं ना कहीं पर सरकारों के इसारों पर काम करने के लिए मजबूर रहा है। सरकार की तरफ से सेना की कमानों को इतनी आजादी नहीं दी गई कि आपातकालीन स्थिति पैदा होने पर वह खुद कोई सुरक्षा हेतु निर्णय ले सके। कहने को भारत में सुरक्षा एजेंसियाँ, और खूफिया एजेंसियाँ बहुत से बनी हुई हैं। वो अपने तरीके से खूफिया जानकारियाँ और सुरक्षा से संबंधित जानकारियाँ जुटाने के लिए काम भी कर रही हैं। किंतु इस तरह के एलर्ट को हमारे सरकारी नुमाइंदों ने उतना संजीद्दा नहीं लिया जितनी संजीदगी के साथ लेना चाहिए। इसी का परिणाम रहा है कि जम्मू काश्मीर में सरे आम विरोध के काले झंड़े दिखाए जाते हैं, आतंकवादियों के संगढ़नों के द्वारा युवाओं को आतंकवादी बनाया जाता है। उन्हें कैंप में ले जाकर पूरी तरह से सैनिकों की तरह ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें सेना के विरोध में तैयार किया जाता है। उन्हें जम्मू काश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने और इस मिशन में अपने को कुर्बान करने के लिए कुरान की आयतो की दुहाई दी जाती है। उन्हें भावनात्मकर रूप से मजबूर किया जाता है कि वो आतंकी संगठन के सैनिक बनकर भारत के विरोध में कत्ले आम करें। पूरी लड़ाई भारत और पाकिस्तान के बीच में लड़ाई की जड़ बने जम्मू और काश्मीर को अपने एकाधिकार में लेने की है। हालांकि इस मामले में पाकिस्तान का साथ देने के लिए विश्व के कई अमुक राष्ट्र भारत के विरोध में खड़े हैं, मध्यस्थता की मलाई खाने की जुगत मॆं लगे रहते हैं किंतु किसी भी तरह भारत इस स्थान को छॊड़ना नहीं चाहता, और पूरी तरह से इस स्थान पर आधिपत्य भी नहीं जमा पा रहा है।
जितने भी आतंकी हमले हुए हैं उन सब में हमारी सुरक्षा व्यवस्था में बट्टा लगा है। हमारे इंतजामात को संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया गया है। इसके पीछे हमारे अपने आतंकपरस्तों, उनके संगठनों, और उनके सहयोगियों का हाथ होता है, हमारी ही जमीन में वो आतंकवादियों के संगठनों, उनके स्लीपिंग सेल्स के दहशत गर्दों को, पनाह देते हैं, उन्हें भोजन पानी से लेकर संबंधित स्थान की खूफिया जानकारियाँ मुहैया कराते हैं और ब्लास्ट, अपहरण करने में खूब मदद करते हैं, पत्थरबाजों, काला झंड़ा दिखाने वाले, सुविधा मुहैया कराने वाले, सहयोग करने वाले, उनके जेहाद को अंजाम तक पहुँचाने वाले, उनके संगठनों की ब्रांचेच को पूरे भारत में पहुंचाने वाले,उन्हें यहां की नागरिकता देने में सहयोग देने वाले हमारे ही देश के बेशर्म गद्दार हैं। कुछ धर्म के नाम पर, कुछ पैसे के नाम पर, कुछ सत्ता और सुमारी के नाम पर आतंकी संगठनों के लिए काम करना शुरू कर देते हैं। पुलवामा क्या अन्य जितने भी आतंकी हमले हुए हैं उन सब में हमलावर हमारे देश की सरजमीं की कई दिनों तक रहे, खाए और अंजाम देकर खत्म हो गए। इस सरकार के आने से सर्जिकल स्ट्राइक नाम का एक काम सेना के द्वारा किया गया। पहले की सरकारों में यह काम इस नाम से नहीं किया जाता था। जब देश की सर्वेसर्वा सरकार और जम्मूकाश्मीर की सरकार है तो फिर अलग झंडा, अलग संविधान, और अलग कानून की व्यवस्था को खत्म न कर पाने के मजबूरियों को खत्म करना जरूरी है। सर्वदलीय बैठको से लेकर अध्यादेश लाने तक, जम्मू काश्मीर को रखने या छॊड़ने की शर्तों पर हमारे अनुसार संविलयन करना चाहिए। ताकि वहां पर या तो भारत का संविधान कानून और व्यवस्था लागू हो, या फिर वो पूरी तरह से भारत से अलग हो जाए नहीं तो पाकिस्तान का हिंस्सा बन जाएं।
वर्तमान वैश्चिक स्थिति यह है कि इस गले में फंसी हड्डी को निगल ही दिया जाए या फिर उगल ही दिया जाए। जम्मू काश्मीर से भारतीय सेना हमेशा विरोध झेलती आई है। को एक बार भारत सरकार खुद विरोध क्यों नहीं जता देती हैं। सेना के लिए आर पार के युद्ध की बात या फिर ऐसी स्थितियों में सर्जिकल स्ट्राइक का रास्ता ही अख्तियार करने का अधिकार क्यों नहीं सरकार उपलब्ध करती है। बार बार पाकिस्तान के साथ मधुर संबंधों की कोशिश करना और इस्लामाबाद और लाहौर में जाकर दावतें उड़ाना, हमारे राष्ट्रीय त्योहारों में वहां के हुक्मरानों को आमंत्रित करना, बंद कर देना चाहिए। हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों के प्रमुखों को बहुत ही सम्मान से देखा जाता है। उन्हें धर्म गुरु माना जाता है। या यह बात और है कि पाकिस्तान खुद भी आतंकवाद का शिकार होता रहा है। कुल मिलाकर भारत के राजनैतिक संगठनों को इस मसले में एक तरफ का निर्णय लेना चाहिए। जम्मूकाश्मीर को अपनी शर्तों में अपने साथ रखने या फिर पूरी तरह से छोड़ने पर एक मत होना होगा।
आतंकवाद के लिए वो कानून बनाना होगा जिसमें आतंकवाद,आतंकवादी संगठनों, उनके सहयोगियों और मददगारों को कानूनन कारावास हो। इस तरह के हमलों के बाद सरकार, सेना, और सुरक्षा एजेंसियों को अपनी कमजोरियों को खत्म करने पर काम करने की आवश्यकता है, जो नेता या राजनैतिक व्यक्ति, मंत्री, संत्री और प्रशासनिक अधिकारी इन आतंकवादियों के पक्ष की बात करे उसकी भारत की नागरिकता खत्म करके देश को छॊड़ने का विधान होना चाहिए। जनता, से लेकर जनार्दन तक इस आतंकवाद के विरोध में खड़े होकर एक जुट होकर संवैधानिक, कानूनन, और सामाजिक रूप से विरोध करेंगें तो हमारी सेना को इनसे लड़ने में इन्हें खत्म करने में आसानी होगी।हमारी सरकारों को चाहिए कि पाकिस्तान ही नहीं बल्कि अन्य देशों से इस मामले में एक्शन रवैये से काम ले, सेना को ऐसी आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए सारे संवैधानिक अधिकारों से लैस करना होगा, आतंकवाद, आतंकवादी संगठनों को सह देने वाले, उद्योगपतियो, राजनैतिकों, समाजसेवियों, कलाकारों, युवा संगठनो, लेखकों को सश्रम कारावास, या फिर भारत को छॊड़कर जाने का आदेश देना होगा। जम्मू काश्मीर को अपनी शर्तों में भारत में संविलियित करने हेतु निर्णय लेना, अथवा पूरी तरह से स्वतंत्र छोड़ने का निर्णय लेना होगा। सेना के सैनिकों की सुरक्षा, उनके परिवार को हर तरह का सहयोग करने का ध्येय पूरा करना होगा। वोटतंत्र को छोड़कर सभी दलों को एक जुट होकर संवैधानिक रूप से जम्मूकाश्मीर राज्य को उनके निर्णय अनुसार संविलियित और स्वतंत्रत करने पर निर्णय लेना होगा।

अनिल अयान
९४७९४११४०७

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