शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

कुर्सियाँ वही रहीं सवारियाँ बदल गईं

कुर्सियाँ वही रहीं सवारियाँ बदल गईं

देश के हृदय प्रदेश में विगत दिनों समाप्त हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं, सारे कयास जो लगाए गए थे वो अब साकार भी हो गए और निराकार होकर कई उम्मीदवारों के मन में विद्यमान भी हैं। यह पहला अवसर है कि मध्य प्रदेश की विधान सभा में गठबंधन से सरकार बनने जा रही हैं, इसके चलते गठबंधन के लिए कांग्रेसी दल के महानुभाव अपने विधायकों की गुणा गणित बिठाने में लगे हुए हैं। इन सबके बीच राजनीति में एक कहावत हमेंशा सभी सरकारों ने साकार किया कि इस सरकार की कुर्सी में कोई भी बैठे वो अपने हिसाब से चाहे जितना वायदे करता रहा हो किंतु कुर्सियों का दोष माना जाता है, जो भी मुख्यमंत्री बनता है वो इसी कुर्सी के पावों के जंजाल में फंस ही जाता है, अब देखना यह है कि आगामी सरकार की रणनीति इस कहावत के साथ कितना न्याय कर पाती है। इस चुनाव में जीतने वाले भाजपा के वो उम्मीदवार जरूर दुखी होंगें जिनके मन में मंत्री पद की ललक लालसा विद्यमान थी, कांग्रेस के वो उम्मीदवार और ज्यादा दुखी होंगे जिनकी हार सुनिश्चित हुई तो हुई किंतु सरकार कांग्रेस गठबंधन की बनने वाली है। कुछ भी अब आने वाला वक्त बताएगा कि आने वाले पाँच साल गुजरे हुए पंद्रह सालों पर भारी पड़ते हैं या फिर उसके भी पीछे भ्रष्टाचार के मामले में और पिछले पंद्रह सालों को पुनः दुहराते हैं। क्योंकि राजनीति में चाहे कोई जितना सुधार की बात कर ले वो अपने संगठन से परे जाकर काम नहीं कर सकता, मध्य प्रदेश की जो स्थिति शिवराज सरकार के पंद्रह साल के पहले दिग्विजय सरकार के थे वो नासूर जनता को बखूबी पता है।
इस चुनाव में  जिस प्रकार की परिस्थितियाँ राज्य में थी वो भाजपा के लिए घर का भेदी लंका ढ़ाए वाली थी, ऐसी स्थितियों के लिए राज्य सरकार खुद दोषी मानी जा सकती है, केंद्र में राज्य सरकार की राजनैतिक पार्टी होने की वजह से यह दोष कुछ ज्यादा ही हो सकता है। विचार मंथन जारी हो चुका है हाईकमान खुद जानता है कि पार्टी की हार के पीछे जनता का परिवर्तत उतना जिम्मेवार नहीं है जितना कि भितरघातियों का विद्रोह प्रदर्शन और अप्रत्यक्ष विरोधी पार्टी को समर्थन देना, उनका प्रचारप्रसार करना शामिल रहा, पार्टी का मानव धर्म, धर्म राज में  और राजधर्म जातिधर्म के गुणा भाग में लिप्त हो चुके थे, समय के साथ साथ अंतिम पंच वर्षीय में सरकार मन की बात और दिल की बात करने में व्यस्त हो चुकी थी, जनता के विश्वास को कुचलने का कई बार आरोप ग्रहण करने वाली सरकार ने जनता को एससी एसटी, हिंदू मुसलमान, क्रिस्चन, अगड़ा पिछड़ा, के साथ साथ आने वाले समय में आरक्षण को खुद की बुनियादी नींव तक बताने में मंच से परहेज ना किया, व्यापम घोटाला हो, पेड़ न्यूज का मामला हो, नेताओं के बिगड़े बोल हों, जीएसटी में विशंगतियाँ हों, राम मंदिर को राजनैतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करना हो, विभिन्न जातियों के महापंचायत का आयोजन हो, कांग्रेस के ऊपर कींचड़ उछालना हो, घोषणाओं का अंबार खड़ा करने से लेकर उन्हें भूलने की बीमारी हो, सड़क से लेकर पानी तक का हाहाकार हो,नोटबंदी हो, या फिर बेरोजगारों को पकोड़ा तलने और चाय बेचने का सुझाव देने की बात हो, कमर टोड़ती मँहगाई, कहीं ना कहीं मतदाताओं को रिझाने की बजाय दूरियाँ बनाने के लिए मुख्य कारण बनती रही। सरकार का औद्योगिक संस्थानों और उद्योग पतियों के प्रति रूझान, बैंक घोटाले, केंद्र का न्यायपालिका और कार्य पालिका मेंअनावश्यक दखल सभी इसमें घी की तरह काम करते रहे।
इन सबके बीच अगर पिछले पांच सालों के पूर्व के दस सालों की बात की जाए तो शिवराज सरकार को जनता पसंद करती रही, उनकी विभिन्न घोषणाओं, कन्याओं की परवरिश से लेकर उनकी शिक्षा और रोजगार के लिए सरकार की योजनाएँ कहीं ना कहीं काबिले तारीफ काम था, बाबूलाल गौर के समय से लेकर मध्य प्रदेश की तस्वीर जितनी तीव्रता से बदली गई थी वो भी देखने लायक थी, दिग्विजय सरकार की दी गई सौगातों को शिवराज सरकार के प्राथमिक दस सालों में आम जनताको बरी कर दिया, बिजली समस्या, रोड़ से लेकर गांवों को जोड़ने की पहल करना, विभिन्न योजनाओं के द्वारा युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना, इंदौर, भोपाल, और उज्जैन की तस्वीर को मध्य प्रदेश का व्यवसाय केंद्र बनाना भी इस सरकार की उपलब्धियाँ थी, शिक्षा विभाग से लेकर स्वास्थ्य विभाग, सेवा विभागों से लेकर कार्यपालिका तक इस सरकार के कामों से संतुष्ट नजर आई थी, किंतु पाँच साल जो गुजरे वो इस सरकार की साख को खत्म करने के लिए काफी थे, मोदी सरकार के दिग्गज नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियों के बीच उपचुनावों में भी इस सरकार ने अपने किए से सीख नहीं पाई, मोदी लहर से लेकर शिवराज और अमित शाह की बातों के पुलिंदे के सामने जनता ने हंस की तरह सच को खोजने परखने की पहल शुरूकर दी। इधर विरोधी दल में कांग्रेस, आप और अन्य पार्टीयों की जागरुकता ने शिवराज सरकार की जड़ों को खोदना शुरू कर दिया, पूरे देश को हिंदुत्व के रंग में रंगने की ललक ने अन्य राज्यों की अपेक्षा इस राज्य को शिवराज सरकार ने थोपने वाली रणनीति नहीं अपनाई, सरकार के साथ साथ भाजपा के अंदर के गुपचुप विद्रोह, कार्यकर्ताओं के बीच असंतुष्टि, और आलाकमान का सही उम्मीदवार का चयन ना कर पाना भी पार्टी की हार का प्रमुख कारण बनी।
कांग्रेस की जीत का प्रमुख कारण भाजपा के अहंकारी भाषणों में राहुल की हास्यास्पद उपस्थिति का होना रहा, राज्य में प्रारंभिक हार के बाद विगत पंद्रह सालों में मे राहुल गाँधी युवाओं को एकत्र करने और युवाकांग्रेस को मजबूत करने का काम किया, इधर चुनावों में भाजपा के दिग्गज नेताओं के बीच फिसलती जुबान में राहुल को केंद्र में रखकर की गई बयान बाजी ने खुद राहुल को बिना किसी ज्यादा प्रयास के जनता के बीच में लोकप्रिय कर दिया, जैसे कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ कुछ ऐसा हुआ माना जा सकता है, मतदाताओं में विशेषकर डाक मतपंत्रों, पिक पोलिंग बूथ में स्त्रीप्रधान प्रतिनिधित्व ने कांग्रेस में दिलचस्पी दिखाना, और भाजपा के राज से सत्ता परिवर्तन करना कहीं ना कहीं एक सोद्देश्य चुनावी सफलता का कारण बना विगत महीनों में माई के लालों में की विरोधी रैली में जिस तरह से विभिन्न दल के लोगों और भाजपा के सवर्ण कुल के राजनीतिज्ञों ने अपना विरोध दिखाया उसके चलते कांग्रेस के विकसित वोटरों के प्रतिशत को बढ़ने का फलने और फूलने का भरपूर मौका मिला। काम करवाने से लेकर लोगों के बीच में लोकप्रियता को देखा जाए तो भाजपा का मोहभंग एक तरफ हो रहा था और दूसरी तरफ कोई रास्ता ना दिखाई देने की वजह से कांग्रेस के पंजे को आजमाने का रास्ता जनता जो ज्यादा उपयुक्त महसूस हुआ, इन सबके बीच यह भी तय था कि इस कांटे की टक्कर के बीच अगर भाजपा कुछ ना करती अपने विरोधियों को अपने पक्ष में कर लेती, सवर्णॊं के लिए कुछ विशेष घोषणाएँ कर देती, या फिर जनमानस में समानता के लिए कुछ बयानबाजी कर देती हो भी वह सरकार बनाने के लिए बहुमत प्राप्त कर लेती।
बारह दिसंबर को राज्य में नई सुबह ने सरकार की कुर्सियों के लिए कांग्रेस की सत्ता राजघर वापसी की भोर लेकर आई, शिवराज जी के बयान से उनकी मायूसी साफ झलक रही थी, आने वाली सरकार से जनता ही नहीं पढ़े लिखे युवाओं, राज्य की बेटियों और बहनों, कर्मचारियों किसानों, बैंकरों, स्वरोजगार करने वाले लघुउद्योग के मालिकों, और आने वाली पीढ़ी के नौनिहालों की काफी उम्मीदें हैं, अच्छी अर्थव्य्वस्था हो, सड़क से लेकर पानी, हवा, पेट्रोल से लेकर रसोई गैस, युवाओं की नौकरियों से लेकर बेरोजगारों का रोजगार, स्त्रियों की सुरक्षा से लेकर उनकी जीवशैली में सुधार, कर्मचारियों की स्थिति को और बेहतर बनाने आशा, किसानों की स्थिति में सुधार और उनके कर्ज की माफी पर तुरंत निर्णय लेना और सबसे बड़ी बात घोषणा पत्र को वचन पत्र बताने वाले राहुल गाँधी जी के मार्गदर्शन आने वाले मुख्यमंत्री जी शासन में सुशासन की उम्मीद को जगाने की आशा शामिल है, वचन पत्र की पूर्ति की अवधि के बिना भी अगर वचन निभाने का कार्य आगामी कांग्रेसी सरकार करेगी तो जनमानस उसे सिर आखों में बिठाएगी, अन्यथा अगर छल कपट, धोखेबाजी, वचन को राजनीति का औजार मानकर पूर्व कांग्रेस की दिग्विजय सरकार की पंद्रह वर्षीय कार्यप्रणाली अपनाएगी तो हर राजनैतिक पार्टी जानती है आने वाले पाँच सालों के बाद भाजपा हो या कांग्रेस एक दिन तो जनता के दरबार में दान माँगने आना ही पड़ता है, वर्तमान माहौल में जनता पुरानी कांग्रेसी जमाने की अच्छाइयों के साथ कुछ नया सवेरा देखने के लिए तैयार है। आगामी सरकार को भी इस बात को स्वीकार करना होगा कि शिवराज सरकार की कमियों को दूरकरते हुए अपने कामों के माध्यम से जनता के बीच स्थान बनाए ताकि आगामी पाँच वर्ष के बाद उसे विज्ञापनों में पिछली सरकार की कमियाँ गिनाने की जरूरत ना पड़े,इसी के साथ आगामी कांग्रेस सरकार के शासनकाल को मै क्या हर युवा किसान और महिलाएँ देखने जीने और महसूस करने के लिए अगवानी करने और अवलोकन करने के लिए तैयार हैं।  

अनिल अयान
सतना

९४७९४११४०७

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