गुरुवार, 16 मई 2019

"अप्प दिपो भवः" का संदेशवाहक बुद्ध

"अप्प दिपो भवः" का संदेशवाहक बुद्ध
आज महात्मा बुद्ध का जन्म दिवस है। बुद्ध का अंतिम उपदेश में उन्होने अप्प दिपो भवः सम्मासती का जिक्र किया  जिसके अनुसार अपने दिये खुद बनो स्मरण करो कि तुम भी एक बुद्ध हो, बुद्ध का अर्थ वो महामानव से लगाया गया जिसे जीवन के उद्देश्य का भलीभांति ज्ञान हो चुका हो।धर्म ग्रंथ बताते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा प्रवचन बुद्ध के ही रहे है। पैतीस साल के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय पर धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो कुछ भी कहा था वह अकाट्य रहा। उनका कहा सुना उनके शिष्यों ने त्रिपिटक में संग्रहित किया जिसमें विनय सुत्त और अभिधम्म पिटक प्रमुख हैं। बुद्ध ने अपने गुरु विश्वामित्र, अलारा और उद्दाका रामापुत्त के पद चिन्हों में चलते हुए अपने विचारों को प्रस्तुत किया जिसके प्रमुख कारक उनके अनुयाइयों ने विश्व विस्तार किये जिसमें कि चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अनात्मवाद आदि थे, पूरे बौद्ध दर्शन के तीन मुख्य सिद्धांत थे जिसमें अनीश्वरवाद, अनात्मवाद, और क्षणिकवाद था,जिसकी वजह से बौद्ध धर्म अपनाने वाला हर व्यक्ति पूरी तरह से यथार्थवाद को पालन करता था। अनीश्वरवाद में बुद्ध ने जहां ईश्वर की सत्त्ता को नकार दिया और प्रतीत्यसमुत्पाद को समझाया उन्होने बताया कि कारण और इसकी वजह से होने वाली कार्यों को ही प्रतीत्यसमुत्पाद कहा गया गया, प्रकृति खुद कर्ता को कर्म करने के लिए उचित अवसर उत्पन्न कराती है।उसी से यह कार्य चक्र चलता रहता है। उनके अनुसार ना कोई उत्पत्तिकर्ता है और ना ही  कोई इस दुनिया को चलाने वाला है, प्रकृति खुद बखुद स्वतः परिवर्तन करके इस श्रंखला को आगे बढ़ाती है। दूसरे सिद्धांत के अनुसार अनात्मवाद के अनुसार बुद्ध ने स्पष्ट कर दिया कि आत्मा जैसा कुछ भी इस दुनिया में नहीं है। जीवन चेतना का प्रवाह माना गया है। चेतन मन और चेतन शून्य स्थिति को बुद्धने जन्म और मॄत्यु का पर्याय बताया। तीसरा सिद्धांत क्षणिकवाद था जिसमें बुद्ध ने कहा कि ब्रह्माण नश्वर और क्षणिक है, स्थायित्व यहाँ नहीं पाया जाता है। तत्वों से यौगिक और यौगिक से जीवन का प्रारंभ बताया गया। परिवर्तनशील जीवन निर्माण में विकास का क्रम विशेष स्थान प्राप्त किया। शरीर को मात्र ज्ञान प्राप्त करने के लिए माध्यम बताने वाले बुद्ध का आज जन्म दिन है। सिद्दार्थ से बुद्ध की यात्रा में प्राप्त अनुभव ने राजा को महात्मा के रूप में विश्व विख्यात कर दिया। बुद्ध जैसा वैज्ञानिक विचार सही मायनों में विश्व में कभी कभी पैदा होता है। भारत को इस बात का गर्व होना चाहिए कि बुद्ध इस माटी का सपूत बन जन्म लिया।
बुद्ध के सिद्धांतों के आधार पर बौद्ध दर्शन की रचना हुई इसी के साथ थेरवाद, वैभाषिकम सौत्रान्त्रिक, माध्यमिक शून्यवाद, योगाचार विज्ञानवाद का गठन किया गया। बौद्ध धर्म अनुयाइयों ने जितने भी संप्रदाय और उप संप्रदाय बनाये सबका  प्रतीत्यसमुत्पाद मानना था। बुद्ध ने अपने अनुयाइयों को सुगठित करने के लिए चत्वारि आर्य सत्यानि की घोषणा की जिसमें दुख, समुदय अर्थात दुख का कारण, निरोध अर्थात दुख का निवारण और मार्ग जिसमें उन्होने निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग की विवेचना की। इन मार्गों में  सम्यक दृष्टि, संकल्प, वचन, कर्म, आजीविका, व्यायाम, स्मृति, और अंततः समाधिक को प्रमुख रास्ते माना दुख से दूर होने के लिए। बुद्ध का पंचशील सिद्धांत काफी प्रचलित रहा जिसमें हर बुद्ध अनुयाइयों को इस सिद्धांत का पालन करना जरूरी बताया गया। इस सिद्धांत का प्रथम सिद्धांत हिंसा ना करना, चोरी न करना, व्यभिचार ना करना, झूठ ना बोलना, और नशा न करना, जिसे पालि भाषा में पानातिपाता वेरमणी, अदिन्नादाना वेरमणी, कामेसु मिच्छाचारा वेरमणि, सुरा मेरय मज्ज, पमादठ्ठाना वेरमणि बताया गया है।विश्व में बौद्ध धर्म को बुद्ध के अनुयाइयों ने दो प्रधान शाखाओं में बांट दिया जिसमें हीनयान अर्थात उत्तरीय और महायान अर्था दक्षिणी। इनके बीच में तुलनात्मक अध्यन किया जाए तो समझ में आयेगा कि हीनयान के ग्रंथ पालि में हैं और बौद्ध सिद्धांतों का मौलिक प्रतिपादन करते नजर आते हैं वहीं महायान शाखा में बौद्ध सिद्धांतॊं का प्रतिरूपांतरण कर दिया गया। इसकी वजह से बौद्ध दर्शन यहाँ पर आकर अपनी मौलिकता से भिन्न हो जाता है। क्षेत्र के अनुसार बौद्ध धर्म भी कई भागों में बंट गया जिसमें चीनी बौद्ध धर्म, दक्षिणी पूर्वी बौद्ध धर्म, तिब्बती बौद्ध धर्म, और पश्चिमी बौद्ध धर्म प्रमुख थे।एक तरफ बुद्ध ने बौद्ध धर्म में बुद्ध धम्म और संघ को त्रिरत्न की संज्ञा दी वहीं दूसरी तरफ उनकी शिक्षा लेने के बाद बुद्ध के अनुयाई बौद्ध भिक्षुक और बौद्ध उपासक के रूप में बंट गए जो कहीं ना कही बौद्ध धर्म के विघटन का कारण बना। ्बौद्ध दर्श की तर्क संगत विवेचना, उसके विश्व शांति में योगदान की चर्चा, वौद्ध दर्शन की वर्तमान समाजिक आवश्यकता, बौद्ध दर्शन को धीरे धीरे क्षीण करने के पीछे उत्पन्न हुए कारण और उसका निदान कैसे संभव है। इन सब विषयों पर भी बातचीत करना बहुत आवश्यक है। भारत में बौद्ध धर्म के विस्तार  कितना और कैसा हुआ, उसमें क्या क्या अड़चने आई  हैं। बौद्ध धर्म. अन्य धर्मों के सापेक्ष कितना तटस्थ है मानव कल्याण के लिए कैसे मदद करता है इन विषयों में भी प्रकाश डालने की आवश्यकता है।
बुद्ध आत्मा परमात्मा स्वर्ग नरक और पुर्नजन्म की धारणाओं को अनुयाइयों के मन से बाहर निकाल देते हैं, अर्थात पूर्णतः वैज्ञानिक सोच को स्थापित करने वाला दर्शन देते हैं,  बुद्ध को वैज्ञानिक कहा जाये तो गलत नहीं होगा। बुद्ध भारत के लिए क्यों जरूरी हैं उनकी पद्धतियाँ किस तरह हमारे लिए जरूरी है यह जानने और मनन करने की आवश्यकता है। ह्मारे देश में जब कबीर को नकारने काप्रयास किया जाता है तो बुद्ध की क्रांतिकारी और वैज्ञानिक सोच पर भी तथाकथित विद्वान प्रश्न खड़ा कर देते हैं। बुद्ध का मानना था कि दृष्टा ही दृश्य है। अर्थात आबजर्वर इस द आबजर्वड। बौद्ध धर्म में वैज्ञानिकता और कर्मवाद ही उसे हिंदू और जैन धर्म से अलग करता है। बौद्ध धर्म में आत्मवलोकन को विपश्यना के रूप में स्थापित किया गया। जिसमें अनुयाई आत्मावलोकन करने के लिए स्वतंत्र होता है। बुद्ध आज के समय में आडंबर, चमत्कार अंधविश्वास के खिलाफ खड़े हैं, बौद्ध भिक्षुओं की स्थिति, जाति विहीन समाज और कर्म प्रधान समाज में बुद्ध वैज्ञानिक सोच को सामने लाते हैं, बुद्ध की अष्टांगक मूल्य इशानियत को बचाने के लिए कारगर है। बुद्ध का पंचशील सिद्धांत अपराधों को ख्त्म करने के लिए कारगर होते हैं। यथार्थवाद और वैज्ञानिक दर्शन को केंद्र मानकर यह दर्शन बुद्ध को बार बार याद करने के लिए जरूरतमंद बनाते है।  बुद्ध एक बात में तो अडिग रहे कि आप अपने जीवनमें खुद के दीपक बने जिससे आपने अंतस में निहित ज्ञान को प्राप्त कर जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग प्रसस्त करें। लेकिन इन सबके बावजूद यह देखा गया कि भारत ही नहीं बल्कि विश्व में पाई जाने वाली जन संख्याका अवलोकन किया जाए तो वर्तमान समाज में बौद्ध धर्म में बौद्ध मठों की स्थितियाँ, महिलाओं के प्रवेश की वजह से बौद्ध भिक्षुको के चार चरित्र में आने वाले परिवर्तन, बौद्ध धर्मावलंबियों के मतों में विभेद और अनुयाइयों के द्वारा बौद्ध दर्शन को अपनी सुविधानुसार परिवर्तित करना भी बुद्ध के विचारों के साथ अन्याय है। बुद्ध आज ही बस नहीं बल्कि भविष्य में भी सार्वकालिक बने रहेंगें ऐसी आशा से हम सब परिपूर्ण हैं।

अनिल अयान सतना

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