गुरुवार, 23 मई 2019

आगामी "मोदी सरकार" की चुनौतियाँ


 आगामी "मोदी सरकार" की चुनौतियाँ
      लोकसभा चुनाव के परिणाम निकले चौबीस घंटे भी नहीं हुए हैं, पूरा देश मोदीमय हो चुका है, पूरा देश मोदी ब्रांड को अपने देश के प्रधान के रूप में आरूढ़ होते देखना चाहता है। इस लोकसभा चुनाव ने देश के इतिहास को फिर से जागृत कर दिया है। इस पिछले पाँच सालों का घर घर मोदी का तिलिस्म अभी भी बरकरार है। पिछले पंच वर्षीय सरकार का तिलिस्म यही है कि लोग एनडीए और भाजपा को भूलकर नरेंद्र मोदी को याद रखे हुए हैं।इसी का परिणाम रहा है कि भाजपा ने जिस सीटों  में पिछले चुनाव में हार गई थी उन सीटों में मोदी की राजनैतिक चुनावी टीम ने बहुत पहले से काम करना शुरू कर दिया था भाजपा के आंतरिक विरोधी सुरों के बीच भी अमित शाह की टीम ने जमीनी स्तर पर काम किया। दस लाख के ऊपर के चुनावी बूथों के माध्यम से जहां भाजपा ने जन जन से संपर्क साधा वही जिन एक सौ बीस सीट पर भाजपा नहीं जीती थी उन सीटों में से अस्सी पार सीटों में जमीनी काम करके पुनः चुनाव लड़ा गया और जीता गया। हर जिले में क्लसटर सम्मेलन, यूथ सम्मेलन, सोशल मीडिया के लिए मोबाइल ऐप की सुविधा, सोशल मीडिया ब्रांडिग के लिए लगातार पार्टी का इनवेस्टमेंट और उन दिग्गजों ने साथ दिया जो संघ से जुड़े होने के बाद भी भाजपा के राजनैतिक सहयोगी बने रहे। देश में सातो चरणों के पहले भाजपा और विरोधी कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने जिस तरह की हुंकार भरी थी उस तरह से लग रहा था कि विपक्ष इस बार के चुनाव में सम्मान जनक स्थान बना पायेगा किंतु इस बार की कहानी ही कुछ अलग रच गई। अच्छे अच्छे दिग्गज अपने सम्राज्य को खत्म होते देखते रह गए। ऐसा लगा जैसे कि भारतीय राजनीति के इतिहास में मोदी की सुनामी ने खामोशी बिखेर दी हो। हर दल की आशाओं के पर आने वाले चुनावी परिणामों को पूरा का पूरा देश और अन्य दल मुंह बाए देखते रहे।
      चुनाव के पहले कांग्रेस और अन्य दलों ने जिस तरह घेराबंदी की गई। मोदी सरकार की रैलियों के वायदे और अधूरे वायदों की रामकहानी, विदेश यात्राओं के लेखा जोखा और खर्च का हिसाब किताब, नोट बंदी का प्रभाव, किसानों की विभिन्न राज्यों में आत्महत्या करना, अन्य पार्टी शासित राज्यों की आर्थिक स्थिति और केंद्र के पक्षपाती रवैये की बाते, आतंकी हमलों की बातें सर्जिकल एयर स्ट्राइक के सबूतों को मांगने की बात, आरक्षण, राममंदिर के निर्माण का मुद्दा, काले धन की वापसी, रसूख कर्जदारों की फरारी, अड़ानी और अम्बानी के साथ मोदी सरकार की मित्रवत लाभ प्रदान करना,  मंत्रियों के बड़बोले बोल, कांग्रेस शासित सरकारों को अस्थिर बनाकर भाजपा की सरकार बनाने की कवायद, विभिन्न विरोधी मुद्दों को लेकर जम्मू काश्मीर की धाराओं के लिए सरकार के वायदे और वायदों का वायदों तक सीमित रह जाना, एक देश एक टैक्स, और उस टैक्स में भी टैक्स देना, दक्षिणभारत में भाजपा की स्थिति, जैसे बहुत से मुद्दे थे जो पिछली पंचवर्षीय में काफी छाए रहे। इसके चलते मोदी सरकार को विरोध झेलना पड़ा। इस विरोध के परिणाम स्वरूप देश में परिवर्तन की लहर उठी तो पर वह मजबूत नेतृत्व ना पाकर धराशायी हो गई। पिछली सरकार के कार्यकाल में विश्वविद्यालयों में देश द्रोह, सुप्रीम कोर्ट में सरकार के अनावश्यक दबाय, योजना आयोग को नीति आयोग में परिणिति, सिने प्रेमियों बुद्धिजीवी वर्ग को देश में असुरक्षा का भय, देश में हिन्दुव शक्तियों का उग्र होना और अन्य धर्मों में लव जेहाद, पकोडे से लेकर चाय की बातें, बेरोजगारों को पकोड़े तलने का सुझाव, मोदी का विरोधियों के घर में पहुँचकर रैलियों के दौरान निकम्मा शाबित करने का साहस, देश में सवाल पूँछने को देश द्रोह के समकक्ष बनाने का राजनैतिक दांव पेंच, विभिन्न साहित्यकारों की हत्या जो वामपंथी विचारधारा के थे, और जो सरकार के विरोध में खड़े हुए, विभिन्न मीडिया ब्रांड को सरकार के प्रचार प्रसार के लिए दबाव बनाना और दबाव के असफल होने पर चैनलों और पत्रकारों को के पेशे को संकट में खड़े करना जैसे बहुत से मुद्दे थे जो इस पंच वर्षीय में छाए रहे। देश की जनता के सामने से ये मुद्दे हटाए नहीं जा सकते हैं। इन सबके बावजूद देश ने एक मत होकर आगामी पंच वर्षीय सरकार के रूप में मोदी सरकार को देखना चाहती है।
      सामान्यत जो नीति रही है कि हमारे लोकतंत्रीय ढ़ांचे में निचले स्तर से विजयी उम्मीदवार अपना मुखिया चुनते हैं, किंतु इस बार के संसदीय चुनाव में तो मोदी सरकार के उम्मीदवारों ने अपने काम के आधार पर खुद के लिए वोट नहीं मांगें, उन सबने देश में मोदी को मुखिया बनाए जाने के लिए खुद के लिए वोट मांगें, मोदी जी के कहने पर वो खुद को चौकीदार तक स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए। इस चुनाव में ऐसा लगा कि मोदी जी खुद के पीएम के प्रभाव से एक आभामंडल बनाये और इसके प्रभाव से अपनी पसंद के सारे उम्मीदवारों को जीत का मुकुट पहनाने में सफल भी रहे, इस चुनाव के दौरान भी हर चुनाव की भांति जाति धर्म संप्रदाय क्षेत्र को लेकर उम्मीदवार खड़े किए गए, इन्हीं कारकों को विरोध का मुद्दा मानकर जनता के बीच में खूब उछाला गया और विपक्ष के द्वारा इसको खुद के लिए वोट प्राप्त करने का माध्यम बनाया, महागठबंधन जैसे प्रयास किये गये किंतु पूरा का पूरा सूपड़ा साफ नजर आ रहा है। इस चुनाव का परिणाम यह भी समझ में आता है कि आने वाले समय में उन सरकारों पर कई राजनैतिक खतरे दस्तक देने वाले हैं जहाँ गैर भाजपा सरकार है। राज्यों को धीरे धीरे अपने पक्ष में लाने के प्रयास किये जाएगें। साम दाम दंड भेद, लालच, पद प्रतिष्ठा, की चाणक्य नीति का इस्तेमाल करके भाजपा शासन स्थापित करने की पुरजोर कोशिश होगी। इस सरकार के बैठते ही भारत अपने विरोधी देशॊं के लिए खतरा बन जाएगा। विश्व में भारत की छवि और प्रभावकारी होगी।
      अब देखना यह भी है कि क्या आने वाले समय में उपर्युक्त पैराग्राफ में लिखी गई चुनौतियों से सरकार खुद को बचा पाएगी। देश में हिंदुत्व और राममंदिर के मुद्दे क्या विलुप्त हो जाएगें, क्या भगोड़े कर्जदारों की घर वापसी होगी, क्या अखलाक और कलबुर्गी, पानस्रे, दाभोलकर, और वापपंथियों की हत्याओं का सिलसिला जारी रहेगा, अभी भी सरकार वही बचकानी चाय पकोडे की बाते करेगी। क्या अभी भी सेना की उपलब्धियों को सरकार खुद की उपल्ब्धियों के रूप में प्रचारित करेगी, क्या लोक तंत्र का चौथा स्तंभ सरकार के सामने घुटने के बल चलने के लिए मजबूर हो जाएगें, सरकार की आगामी पंचवर्षीय में भाजपा के किन नेताओं की बिदाई होगी और किन नेताओं को सत्ता सुख भोगनने को मिलेगा, उन सभी महारथियों का क्या होगा जो देश में असुरक्षा की बात करते हैं, जो देश में इस सरकार को दीमक मानते थे, क्या संसद में विपक्ष पूरी तरह से कठपुतली बनकर सरकार के हाथों का खिलौना बन जाएगा। यह सब यक्ष प्रश्न फिर से उभर कर खड़े हैं, सरकार को इन पर पुनः विचार करने ली आवश्यकता होगी। जीत का जश्न तो एक तरह हैं लेकिन इस चुनावों में बदले रंग से साथ नये वायदे जो परोसे गए हैं उनको सरकार कितना पूरा कर पाती हैं इसकी भी परीक्षा है। सरकार में संघ और अनुसांगिक संगठनों का कितना हस्ताक्षेप बढ़ेगा यह भी सरकार की दशा और दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करेगी। देश को आर्थिक दबाव और मंदी से सरकार कैसे उबारती है,यह भाजपा के मुखिया द्वय को सोचना होगा, बेरोजगार युवाओं का क्या होगा, उनके लिए जीवनयापन का क्या माध्यम तय होगा, देश में विदेशी नीतियों में आतंकवादी देशों के साथ भारत का व्यवहार कैसा होगा, चीन और अमेरिका के साथ भारत अब किस तरह पेश आएगा,यह सब इस सरकार को सोच विचार करके अंजाम तक पहुँचाना होगा। इस बार भारत की जनता को नरेंद्र मोदी से पहले से ज्यादा उम्मीदें हैं। इन उम्मीदों को हवा में उड़ाकर हवा हवाई करना है या फिर जमीनी काम करके जनता को दिखाना है यह तो आने वाला वक्त ही अपनी गवाही देगा।
अनिल अयान सतना

       

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