बुधवार, 29 मई 2019

कोचिंग संस्थान और हमारे नौनिहालों का भविष्य


                                                            कोचिंग संस्थान और हमारे नौनिहालों का भविष्य
      अमूमन हर शहर में कोचिंग संस्थान के नाम पर सैकड़ों की तादाद में शिक्षा की अवैध दुकानें खुली हुई हैं। अधिक्तर संस्थान स्कूल के शिक्षकों और शिक्षकों के समूह के द्वारा चलाये जा रहे हैं। इन कोचिंग सेंटर्स को चलाने के लिए शायद ही कोई मालिक किसी अधिकारिक अनुमति का पालन करता होगा। यहां तक कि जिस स्कूल में वो शिक्षक और शिक्षक समूह पढ़ा रहे होते हैं वहां तक से कोई अनुमति नहीं होती हैं। कोचिंग सेंटर्स का मालिक कौन है यह अभी तक शासन प्रशासन निश्चित नहीं कर पाया है। टैक्स के नाम पर इन संस्थानों को नगर निगम और इन्कम टैक्स विभाग से औपचारिक संबंध होजाता है। यहां तक की शिक्षा विभाग के पास भी इतनी जानकारी नहीं होती कि स्कूली शिक्षा और उच्चा शिक्षा के कितने कोचिंग संस्थान हर शहर में चलाए जा रहे हैं। और ये संस्थान किस विभाग से ताल्लुकात रखते हैं, कोचिंग संस्थानों में मुख्यतः दो प्रकार के संस्थान आते हैं पहला वो संस्थान है जो अनौपचारिक रूप से संचालित किया जाता है और इसके बाद किसी नाम से बैनर लगा कर उसे प्रचारित किया जाता है। दूसरा किसी बड़े संस्थान की स्थानीय फ्रेंचायजी जिसमें नियंत्रण उस संस्थान का मुख्य कार्यालय करता है। कोचिंग संस्थानों में छात्र संख्या निर्धारण, पढ़ने पढ़ाने के लिए बनाए जाने वाले क्लास रूम्स का आकार प्रकार, अन्य सुविधाये, आने जाने और वाहन की व्यवस्थाओं, सुरक्षात्मक दृष्टि से उपयोग होने वाले मापदंड क्या होंगें यह कोई निर्धारित नहीं कर रहा है। सिर्फ टैक्स के नाम पर देय शुल्क ही इन संस्थानों का कर होता है। किंतु इसके बाद इन पर नजर रखने वाला कोई आधिकारिक कमेटी नहीं है। इनके लिए कोई जमीनी तौर पर क्रियान्वयन नियम कायदे कानून नहीं है, इसी वजह से वर्ष भर में विभिन्न कोचिंग संस्थानों में कोई ना कोई दुर्घटनाएँ बच्चॊं के साथ घटती रहती है।
      विगत दिनों सूरत में कोचिंग संस्थान में हुए अग्नि कांड, कोटा और इंदौर भोपाल दिल्ली अलाहाबाद में संचालित मंडियों की तरह कोचिंग संस्थानों में आये दिन कुछ ना कुछ होता ही रहता है, कहीं शारीरिक मानसिक शॊषण का शिकार वो बच्चे होते हैं जो अपने कैरियर को सही दिशा देने के लिए यहां आए होते हैं, कोटा में ऐसी घटनाएँ कई कोचिंग संस्थानों में घटित हुईं जिसमें कांपटीटिव परीक्षाओं में सफल ना हो पाने की वजह से दूर दूर से आये बच्चे हताश होकर आत्महत्या करके अपनी इह लीला समाप्त कर लिए। कोचिंग संस्थानों में कहीं ना कहीं पढ़ाने वाले टीचर्स का प्रोफेशनल व्यवहार, माता पिता की बढ़ती अपेक्षाएँ, माता पिता के द्वारा इनवेश्ट किया जाने वाली मोटी रकम और जल्दी सफलता प्राप्त करने की जग्दोजहद बच्चों को जल्दी हताश कर देती है और वो पलायनवादी सोच का शिकार हो जाता है। इसके चलते जब वो अपनी मेहनत में सफल नहीं हो पाता तो वो हारकर मौत को ही अपना अंतिम रास्ता बना लेता है। कोचिंग के नाम बहुत से प्रश्न मन में उठते होंगे, जिसमें सबसे बड़ा प्रश्न यह है जो विषय विशेषज्ञ इन कोचिंग सेंटर्स में पढ़ाते हैं वो अधिक्तर किसी ना किसी बड़े नामी गिरामी स्कूल, कालेज से संबंधित होते हैं, इन स्कूल कालेजों के विद्यार्थी भी इन कोचिंग सेंटर्स में आते हैं, आखिरकार ऐसा क्या ज्ञान इन कोचिंग सेंटर्स में बच्चों को दिया जाता है जो स्कूल की पचास मिनट की कक्षाओं में ये शिक्षक नहीं दे पाते है, कुल मिलाकर सीधा सा उत्तर है कि कोचिंग से बच्चों को इक्स्ट्रा केयर, ज्यादा अटेंशन, मार्क्स बेनीफिट्स, और पैरेंटस के दबाव का हल मिल जाता है। समाज अगर स्कूल में बच्चों को मोटी फीस देने के बाद भी स्कूल के टीचर्स के द्वारा चलाई जाने वाली कोचिंग में ज्यादा भरोसा करता है तो निश्चित ही ये कोचिंग संस्थान छोटे फायदों के लिए बच्चों को कैप्चर करने हेतु कुकुर मुत्तों की तरह फलेंगे और फूलेंगें। एक मानक निश्चित होना चाहिए कि किस स्तर को पूरा करके कोई भी शिक्षक ट्यूशन क्लासेस को कोचिंग संस्थान में बदला जा सकता है यह नहीं होना चाहिए कि कोई भी ऐरा गैरा आये और एक कमरे में कोचिंग संस्थान का बोर्ड लगाकर मीडिया में विज्ञापनों के माध्यम से खुद को रातो रात हाइलाइट कर दे।
      यदि टीचर्स सही ढंग से अपने अपने विद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षण कार्य करें, और संस्स्थान एक स्तरीय वेतनमान दे तो ये कोचिंग संस्थानों की अवधारणा लगभग खत्म हो जायेगी। इन कोचिंग संस्थानों के बहाने जो सफलता का लॉलीपॉप दिया जाता है वो कहीं ना कहीं वो आकर्षण होता है जो बच्चों को थोक के भाव में आकर्षित करने के लिए विवष कर देता है। सबसे बड़ी दुविधा की स्थिति यह  है कि जब पैरेंट्स किसी स्कूल में बच्चे को दाखिल कराने जाता है तब जितनी पूँछताछ करता है उसकी दस प्रतिशत भी कोचिंग संस्थानों में नहीं कर पाता क्योंकि वो एक ऐसा बाजार है जहाँ बच्चें पहले ही मंत्र मुग्ध हो चुका होता है। अब प्रश्न उठता है कि कोचिंग संस्थानों की अवधारणा को खत्म होना चाहिए, ऐसे शिक्षको पर स्कूल कालेजों का कड़ा नियंत्रण होना चाहिए कि  ये शिक्षा की प्राइवेट मंडियाँ बंद हों इसके लिए विद्यालयों और महाविद्यालयों को इन शिक्षको को उचित वेतनमान देना पड़ेगा, जिन संस्थानों में फ्रेंचायजी के रूप में कोचिंग संस्थान चलाए जा रहे हैं, उसमें  वाहन पार्किंग, सुरक्षा व्यवस्था, क्लास रूम और बच्चों की संख्या का निश्चित मापदंड होना चाहिए। जो बच्चे संस्था में आ रहे हैं उनके लिए मेडिकल चेकब, लाइफ इन्स्योरेंश आदि की व्यवस्था भी कोचिंग संस्थान को करना चाहिए। कोचिंग संस्थानों को क्रियान्वित करने के लिए जिला स्तर पर स्क्रीनिंग कमेटी बननी चाहिए, जिसमें कलेक्टर, नगरनिगम या नगर पालिका आयुक्त, जिला शिक्षा अधिकारी, की अनुमति अनिवार्य हो, कोचिंग संस्थानों को मान्यता प्राप्त बनाने के लिए इन अधिकारिक स्क्रीनिंग कमेंटी से नो आब्जेक्शन सिस्टम को विकसित करना होगा। कोचिंग संस्थान खुलने से पहले यह जरूरी है निश्चित किये गए मानदंडों पर वो पूरी तरह से खरा उतर सके, दूसरा सबसे बडा दायित्व समाज का भी है कि वो अपने बच्चे को  किसी भी इस तरह के संस्थान में भेजने से पहले पूरी तरह से जाँच परख कर ले, सारी जानकारियाँ लेकर फिर निश्चित करे कि किस संस्थान में हमारा बच्चा सुरक्षित है, और सही दिशा में उसे मार्गदर्शन मिलेगा। बच्चे की जान जोखिम में नहीं होगी। तभी इस तरह की दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है, थोक मंड़ी की तरह खुल रहे कोचिंग संस्थानों में लगाम लगाने के लिए भी हर शहर में स्क्रीनिंग कमेंटी का बनना और एप्रूवल लेना जरूरी होना चाहिए जिससे नियमित नियंत्रण भी बना रहेगा और हमारी पीढी सुरक्षित हो सकेगी।

अनिल अयान,सतना
९४७९४११४०७


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