सोमवार, 19 नवंबर 2018

अपमान का घूंँट

लघुकथा
अपमान का घूंँट
रामपाल जी बहुत ही सीनियर शिक्षक और बहुत अच्छे संचालक भी हैं। सभी उनका सम्मान करते हैं। आज स्वामी विवेकानंद जयंती स्कूल मे मनाई जा रही थी परंतु साजिशन उनको संचालन न देकर किसी अवस्थी जी को संचालन दिया गया।। कार्यक्रम की सारी तैयारी पूरी हुई सांसाद और समाज सेवी राय साहब मुख्य अतिथि के रूप मे  मंच तक आ गये। अध्यक्ष जी का इंतजार होने लगा । ऐन मौके पर पता चला कि अध्यक्षता करने वाले ज्वाइंट डायरेक्टर आज नहीं आ पाएगें। फौरन स्थानीय जाने माने शिक्षाविद को अध्यक्षता सौंपी गई। राय साहब बोले "क्या देरी है भाई।। कार्यक्रम शुरू करवाएँ।" इतने मे संचालन करने वाले अवस्थी जी नदारत हो गये। रामपाल जी ने अवस्थी जी से चर्चा किये तो पता चला कि स्कूल के पूर्वछात्र और वर्तमान मे जाने माने गुंडे ने यह कहा है कि अगर इसको अध्यक्षता सौंपी तो सबकी खैर नहीं। कार्यक्रम की ईंट से ईंट बजा दूंँगा।
तिवारी जी बोले- प्रिंसिपल सर ,अब किसे आप बनाएगें अध्यक्ष? कोई विकल्प नहीं है। अवस्थी जी ! क्यों स्कूल की बदनामी करवा रहें हैं जाइये संचालन करिए।
प्रिंसिपल ने भी अवस्थी जी को यही बात बोला
अवस्थी की की डर के मारे सिट्टी पिट्टी गुम थी।
आखिरकार रामपाल जी ने संचालन का रिस्क लिया। कार्यक्रम सम्मान पूर्वक समाप्त हुआ। विघ्नसंतोषी गुंडा रामपाल जी को देख कर उल्टे पैर लौट गया।
  रामपाल जी बाहर की गोमती मे चाय का अंतिम घूंट खत्म करने ही वाले थे। वो गुंडा फटफटिया अचानक रोकते हुए बोला-
"गुरू जी को प्रणाम करता हूँ।आपके बहुत अहसान है मुझ पर। आप मुझको घर से सोटा मारते हुए लाते थे। पढाया लिखाया मुझे ,मै ही काबिल नहीं बन पाया, पर ये बताइये कि आपने मेरी धमकी के बाद भी संचालन क्यों किया? आपको मेरी गुंडई का भय नहीं है क्या?
आप बहुत तीस मार खाँ बने हुए थे। "
रामपाल जी का हाथ पकड़ते हुए अपने सिर पर उसने रखा और कहा "आप थे तो कुछ नहीं बोला, कोई और होता तो बजा कर रख देता। आशीर्वाद बनाए रखिएगा इस अभागे पर।"रामपाल जी अपलक उसके संवादों को सुनते रहे। चरण छूकर वो तूफान की तरह उनका सम्मान छीनते हुए  फटफटिया से रफूचक्कर हो गया।।।
अनिल अयान।।।

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