सोमवार, 19 नवंबर 2018

"पालकी लिए हुए कहार देखते रहे"

"पालकी लिए हुए कहार देखते रहे"
समय की धरातल में अपनी पदचाप छोड़ने वाले गीतकवि नीरज अंततः चिरयात्रा के पथिक बनकर वहाँ चले गये जहाँ से सिर्फ यादें लौटकर आती हैं। गीत परंपरा के मूर्धन्य गीतकारों में सोम ठाकुर, गोपाल दास सक्सेना नीरज, मुकुट बिहारी सरोज, चंद्रसेन विराट की पंक्ति रिक्त हो गई। गीतों के स्वर्ण युग की दस्तक जैसे अचानक विलुप्त सी हो गई।दिनकर के द्वारा साहित्य की बाँसुरी की उपाधि से नीरज विभूषित ही सिर्फ नहीं थे बल्कि उनके गीतों की तानें बाँसुरी के समान सुमधुर और सुवासित मार्ग का विचरण करते हुए हम सबके मन में आहिस्ता आहिस्ता घर करती जाती थी। समाज के द्वारा मिली गरीबी ने उनहें टॊड़ने की नाकाम कोशिश की, वो गरीबी के लबादे को ओढ़कर और अमीर होते चले गये। उनकी कलम साहित्य रस को उड़ेलने के लिए अभिमुख होती चली गयी। नीरज के ९ दशक से ज्यादा अवसर मात्र और मात्र काव्य यात्रा में गतिशील रहे। उन्होने बताया की व्यक्ति शराब के नशे में भी गीतों को साध सकता है। शब्द ब्रह्म है और ब्रह्म की उपासना करना भी तपस्या है। इस तपस्या में जो सफल हो गया वो इस गीत गंगा में भिगो कर अमर हो जायेगा। यह सच है कि जिंदगी मौत से पराजित हो गयी किंतु नीरज की काव्य पंक्तियाँ बार बार अपनी प्रतिध्वनि कानों तक पहुँचा रही हैं।
एक शिक्षक के रूप में वो जितना धैर्यवान थे वैसे ही वो कवि के रूप में भी धैर्यवान रहे। व्यावसायिकता ने उन्हें जब मुम्बई की दहलीज तक ले गई तो उन्होने गीतों की भाषा और अदब को बनाए रखने की कोशिश की। इस अदब में जब वो खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे तो बालीवुड़ की दुनिया को अलविदा कहकर हमेशा के लिए काव्य मंचों की खातिर खुद को समर्पित कर दिया। उन्होने लगभग बीस कृतियों की रचना की तो इस तरह की हर कृति में अलग अलग रचनाएँ रही। लिखना उनके लिए जीवन जीने के लिए सांस लेने की तरह था। शराब की लत की बावजूद उन्होने अपने लेखन में गंभीरता और कल्पनाशीलता की मोहिनी सूरत बनाने में जीवन खपा दिया। सतना की धरती ने नीरज को अपना स्नेह दिया, साहित्य मर्मज्ञों ने नीरज जी को रात्रि से लेकर सुबह तक कई बार सुना, एक रचना को कई कई बार तक श्रोताओं की पंक्ति में बैठे साहित्यकारों की फरमाईस में उन्होने सुनाया। आज वह सब याद आ रहे हैं, यूसीएक का कवि सम्मेलन हो, या टाउन हाल के साहित्य समारोह सभी में नीरज की आवाज दीवारो के पोर पोर में घर कर गई। व्यावसायिकता के दौर में भी कवि सम्मेलनों की मर्यादायें कभी अमर्यादित होने का दुश्साहस नहीं कर सकी। वर्तमान कविसम्मेलनों की तुलना में उस समय के कवि सम्मेलन समाजिक और सुरुचिपूर्ण होते थे जो विरासत थे।उनका सतना आना और सतना के लिए अपने व्यवसायिक और व्यावहारिक जीवन के बीच समान्जस्य बनाना खुद में निपुणता ही है।
उनकी रचनाओं में गीतिका, गजलों,गीतों और दोहों ने भावों का इंद्रधनुष श्रोताओं के सामने खड़ा किया। उनकी कविताओं की हर पंक्ति में अजेय कवि जिंदा रहा। उनके गीतों के हर बंध में मनोबल को सर्वोच्च शिखर तक पहुँचाने की बात की गई। सपनों के बिखरने के बाद भी नए सपने की तलाश में जाने वाले पथिक के रूप में उन्होने पाठकों और श्रोताओं को हमेशा ही ललचाया है। अश्लीलता को शब्दों की चार दीवारी से कोशों दूर फेंकने वाले नीरज ने आम जन की व्यथा कथा को जीवंत कर दिया। समाज की विशंगतियों पर उन्होने अपने दोहों के माध्यम से और संकेतात्कम रूप से वो सब लिखा जिसे आम मंचीय कवि सुनाने और पढ़ने से परहेज करते हैं। उन्होने अपने दोहों में मानव जीवन का दर्शन, व्यक्तित्व का दर्शन, मानव व्यवहार, और उस आत्क दर्शन की बात की जिसे पढ़ने के बाद अपनाने की चेष्टा हर कोई करता है। तालियों की लालसा के परे उनका काव्य पाठ श्रोताओं की कुछ पंक्तियों तक अनवरत चलता रहा। फिल्मों में उन्होने चुनिंदा गीत लिखे लेकिन जितने भी लिखे वो सदाबहार गीतों की श्रेणी में आज भी मौजूद हैं। गीतों में हर रस को उन्होने स्थान दिया। करुणा से लेकर श्रंगार, आवेश से लेकर कैब्रे, स्लो मोशन से लेकर तन बदन में आग लगा देने वाले गीत भी उनके खाते में आज भी ब्याज कमा रहे हैं।
आज नीरज चले गये। कहार पालकी लिए खडे उनके निकलने का इंतजार करते हुए  किंतु वो तो अपनी चिर यात्रा में तैयार होकर निकल गये। सब कारवां देखते रह गये। कहारों के हाथों में सिर्फ रह गया तो वह था गुबार। गीतों का एक स्वर्ण युग समाप्त हो गया। गीतकारों की वो उतर प्रदेशी नवाबी ठाठ समाप्त हो गई। वो बंडी और लुंगी लगाये मुस्कुराता हुआ कभी ना बूढा होने वाला हमेशा जवान रहने वाले गीतों की वो विरासत हम सबको सौंप करके चला गया जो अतुलनीय धरोहर है। समय ने साहित्य और फिल्म जगत दोनों को एक साथ चकमा देकर एक कोहिनूर छीन कर ले गया। अब शायद उस तरह के कवि सम्मेलन भी न मिले उनके पद धूलि में चलने वाले डा विष्णु सक्सेना की काव्य पंक्तियाँ कहीं न कहीं उनकी धरोहर को ढोती रहेगी। हम नीरज को याद रखेंगें यह वायदे से ज्यादा साहित्य में लिखे जा रहे गीतों की माँग है। जब भी हमें सदाबहार स्वर्णयुगीन गीतों को सुनना होगा। हम सोम ठाकुर से होते हुए नीरज और चंद्रसेन विराट तक आ ही पहुँचेगें। समय की जाजम में सबके अपने सलीब हैं उसके जिस सलीब को हमने अपनाया और मनोयोग से सुना था वो है नीरज जी। वैसे तो साहित्य की उर्वरा धरा युगों में गीतकारों को पैदा करती रहेगी किंतु नीरज का जाना शायद वाचिक परंपरा में गीतों की खान और गीतों की जुबान का मौन हो जाना है।
अनिल अयान,सतना

९४७९४११४०७

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