सोमवार, 19 नवंबर 2018

ना दैन्यं ना पलायनम का संदेश देते कविवर "अटल" बिहारी

ना दैन्यं ना पलायनम का संदेश देते कविवर "अटल" बिहारी

आग्नेय परीक्षा की इस घडी में / आइये अर्जुन की तरह उद्घोष करें/ ना दैन्यं ना पलायनम
आग्नेय परीक्षा की इस घडी में/ आइये अर्जुन की तरह उद्घोष करें/ ना दैन्यं ना पलायनम- अटल बिहारी बाजपेयी
ना दीन बनूँगा और ना ही पलायन करूँगा,अंत तक लडता रहूँगा.एक सफल जीवन जीने का यही संदेश है,
विगत दिनों नागपुर की यात्रा के दौरान पता चला कि अटल बिहारी बाजपेयी नहीं रहे। मन में एक विचार कौंधता रहा कि अगर मृत्यु जीवन का अटल सत्य है। अटल भी भारत के लिए अटल सत्य रहे। जब अपने पुराने समय में लौटता हूँ तो मै उस समय पाँचवीं मे पढ़ रहा था जब अटल जी तेरह दिन के लिए प्रधानमंत्री बने थे। फिर तेरह महीने के लिए प्रधानमंत्री और फिर हम सब जानते हैं। कालेज के समय में जब मैने एनसीसी लिया तो उस समय पर हमने समूह गान गया उसके बोल थे- कदम मिलाकर चलना होगा। बाधाएं आती है आएं। छाए काल की घोर घटाएँ। कदम मिलाकर चलना होगा। अटल जी के व्यक्तित्व की व्याख्या करती ये पंक्तियाँ उनके राष्ट्रधर्म का प्रतीक रहीं। उसके बाद जब पाठक मंच से मै जुड़ा तो उनकी एक पुस्तक आई ना दैन्यं ना पलायनम। इस पुस्तक में उनकी बहुत सी कविताएं साक्षात्कार और उनका कविधर्म की व्याख्या थी। अटल जी का अटल भारत और और अटल राष्ट्रप्रेम उन्हें अपने कर्मपथ पर अटल बना दिया। वो जब तक रहे अटल रहे। उस पुस्तक में जो मैने उनके बारे में जाना उनके बारे में इंटरनेट के खोज से वो कहीं ज्यादा था। उन्होने स्वाधीनता विनोवा भावे,कवियों राष्ट्रभाषा आदि पर बहुत सी कुंडलियाँ लिखी है. चिंतन के स्वर में अंतर्मन की वेदना, सत्यनिष्ठा ,स्वराज, की कवितायें चतुष्पदी और कुंडलियों में बंधी हुई है. आपातकाल के स्वर में आपातकाल के भयावह दॄश्यों को पँक्तियों की भाव भंगिमाओं में संजोया गया है. जिसमें अनुशासन पर्व ,अंधेरा कब जायेगा, भूल भारी की भाई, मीसामंत्र महान. विविध स्वर में समाजिक विसंगतियों, पर्वों,पर्यावरण, वृद्धों तथा अन्य विषयों पर कवि ने कलम चलायी है.राष्ट्र स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और १९३९ सन से कविता के प्रति झुकाव को भी पाठकों के सामने लाया है. अटल जी ने संपादक के रूप में राष्ट्र धर्म,पांचजन्य,दैनिक स्वदेश, चेतना, वीर अर्जुन, आदि पत्रों को सम्हाला है, मृत्यु या हत्या, अमरबलिदान , कैदी कविराय की कुंडलियाँ, अमर राग है, मेरी इक्यावन कवितायें, राजनीति की रपटीली राहें, सेक्युलरवाद, शक्ति से क्रांति,न दैन्यं न पलायनम, नई चुनौतियाँ नया अवसर है।
अटल जी को साहित्य विरासत के रूप में श्याम लाल वाजपेयी वटेश्वर पिता जी और अवधेश वाजपेयी बडे भाई से मिला था. प्रसाद,निराला,नवीन, दिनकर,माखनलाल चतुर्वेदी जैसे कवियों, जैनेंद्र, अज्ञेय,वॄंदावन लाल वर्मा, तसलीमा नसरीन, जैसे लेखकों भरत,जगन्नाथ मिलिंद रामकुमार वर्मा जैसे नाटककारों के मुरीद है. समाजिक समरसता के लिये उनकी विचारधारा उच्चकोटि की है. उनकी एक कविता युगबोध में भी राष्ट्र कवि, निराला, दिनकर के, क्रमशः साकेत ,राम की शक्ति पूजा, और उर्वशी को विशिष्ट प्रकार से उद्धत किया। एक कवि होने के नाते मुझे लगता है कि अटल जी की कवितायें एक व्याकरणिक छंद बद्धता के मर्म को स्पष्ट करती है. परन्तु आज के समय पर प्रताडित आम जन सर्वहारा वर्ग, शोषित लोगों की पीडा का बखान करने में प्रतिनिधित्व करती नजर आती है. अटल जी भी उमर भर चिंतन की अल्प अवधि की समस्या से घिरे रहे। अटल जी जीवन कवित्व और राजनीतिज्ञ के रूप में हम सबके सामने रहा। संपादक के रूप में उनके संपादन से जितनी भी पत्रिकाएँ निकली वह हमारे पत्रकारिता के इतिहास में अमर हो गईं। उनकी कविताएँ अनुशासन पर्व की मुनादी बन गई।
अटल जी का राजनीति में प्रवेश तब हुआ जब स्व. जयप्रकाश नारायण ने जन संघ का सोपान प्रारंभ किया। अटल बिहारी का प्रारंभिक समाजवादी जीवन उस समय घुटने टेक लिया जब उन पर संघ के प्रचारक और पूर्णकालिक स्वयंसेवक होने का राष्ट्रप्रेम अपने अभीष्ट रूप में था। सत्ता के मोह को त्याग कर चरित्र के लिए सत्ता को किनारे कर देने वाले अटल जी ने विपक्षी और विरोधी के महीन अंतर को समझा भी जाना भी और माना भी। उन्होने कांग्रेस के स्व. राजीव गांधी के उस सहयोग को कभी नहीं भूला जिसमें राजीव जी ने अपने प्रधानमंत्री काल में अटल जी के किडनी के इलाज के लिए पुरजोर सहयोग किया था। अटल जी कवि होने के साथ साथ प्रखर राजनीतिज्ञ, विदेश मंत्री के रूप में मोरार जी देसाई के पंचवर्षीय योजना में अपना स्तंभ गाड़ने वाले विशेष जन प्रतिनिधि रहे। उदीयमान भाजपा को वर्तमान भाजपा के रूप में लाने के लिए उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है। अटल जी की विदेशी नीति के कुछ उदाहरण तो मैने अपनी आंखों से देखे। जिसमें पोखरण में परमाणु परीक्षण, संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी भाषा का प्रयोग करके इतिहास कायम करना, विदेशों में भी वही बंगाली अंदाज से धोती कुर्ता और कोटी का पहनना, पाकिस्तान के साथ बस यात्रा और फिर कारगिल युद्ध में विदेशी सहयोग को नकारते हुए अपने विरोधी पाकिस्तान से खुद ही निपटने के लिए तैयार होना विशेष उदाहरण है। काश्मीर की माँग में अटल का पाकिस्तान माँगना भी इतिहास में दर्ज रहा। सन एकसठ में पाकिस्तान के अस्तित्व को खत्म करने की बात, सन तिरसठ में चीन से कब्जे की जमीन को वापिस भारत में मिलाने की बात, सन उनसठ में तिब्बत पर सरकार की साफगोई भी उनकी विदेशी निपुणता का प्रतीक रहा।
अटल जी का राजनीति में पूर्वाग्रह भी काफी कारगर सिद्ध हुए। इसका एक उदाहरण तत्कालीन मंत्री यशवंत सिन्हा और जशवंत सिंह के मंत्रालयों में फेर बदल का अनुमान तेरह महीने के बाद वाली सरकार में देखने को मिला। बिल क्लिंटन की भारत यात्रा और आगरा भारत पाक मैत्री सम्मेलन, बाघा बार्डर के बहाने एक दिन के लिए लाहौर तक चले जाना, फिर भारत नई दिल्ली से इस्लामाबाद तक बस सुविधा कुछ पडो़सी मुल्कों के साथ मैत्री संबंधों में प्रगाढ़ता को हम सबके सामने रखते हैं। हालाँकि उसके बाद कारगिल युद्ध की विभीशिका से भी अटल जी का राजनैतिक सोच ने ही सेना की मदद की किंतु यह तय था कि अटल जी यदि राजनीति में न होते हो कवि जरूर होते। इस बात से भी कोई गुरेज नहीं है कि भाजपा ने अटल आडवानी और जोशी की तिकडी को यूपीए की सरकार के बाद भाजपा से नेपथ्य में खड़ा कर दिया। कोई पूँछताँछ नहीं ली गई और अटल जी का अंतिम जीवन काल एकाकी और एकांतवास की तरह गुजरा।अटल के सिद्धांतों वाली राजनीति अब इस देश में देखने को न मिली और ना मिलेगी।कविवर अग्रज अटल जी का साथ छूट गया भौतिक रूप से साहित्याकाश से। इमरजेंसी की उनकी कविताएं मर्म तक को झगझोर देती हैं। राजनीति ने उनकी लेखनी को अल्प विराम दिया। भाजपा चाहती तो अटल जी के अवदान को स्वर्णाक्षर से इतिहास मे दर्ज करने मे योगदान उनके जीते जी कर सकती थी।पर अब बहुत देर हो गई है अनुमानतः। अटल जी का तन मन और जीवन वचन सब कवितामय रहा। बहुत कुछ कहना चाहता हूं पर अभी अटल जी के अटल लेखन को उनकी इस और मेरी पसंदीदा कविता मे एक कविता रखकर एक रचनाकार अपने अग्रज रचनाकार को याद रखने के लिए कृतसंकल्पित है। अटल जी की एक कविता जो शुरू से मन को छूती रही वो थी- यक्ष प्रश्न।।
जो कल थे,/वे आज नहीं हैं।/जो आज हैं,वे कल नहीं होंगे।/होने, न होने का क्रम,/इसी तरह चलता रहेगा,/हम हैं, हम रहेंगे,/यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।/सत्य क्या है?/होना या न होना?/या दोनों ही सत्य हैं?/जो है, उसका होना सत्य है,/जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।/मुझे लगता है कि/होना-न-होना एक ही सत्य के/दो आयाम हैं,/शेष सब समझ का फेर, /बुद्धि के व्यायाम हैं।/किन्तु न होने के बाद क्या होता है,/यह प्रश्न अनुत्तरित है।/प्रत्येक नया नचिकेता,/इस प्रश्न की खोज में लगा है।/सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।/शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।/यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें/तो इसमें बुराई क्या है?/हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,/धर्म की अनुभूति,/विज्ञान का अनुसंधान,/एक दिन, अवश्य ही/रुद्ध द्वार खोलेगा।/प्रश्न पूछने के बजाय/यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।- अटल बिहारी वाजपेयी। इसी के साथ एक अग्रज कवि को एक अनुज कवि की शब्दपूरित श्र्द्धांजलि

अनिल अयान

९४७९४११४०७

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